लेखनी कविता ढलती हुई शाम -05-Nov-2021

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             ढलती हुई शाम ढलती हुई शाम तक जिंदगी के ना जाने कितने सौदे हुए,  रोज रोज मर मर के जीते रहे, और समझौते पे समझौते ...

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