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कविता ःधरती का संदेश ★★★★★★★★★★★ मैं हूँ हरीभरी यही सुंदरता मेरी कलकल करती नदियां सारी गुनगुन करती चलती जाती उन्मुक्त विहरते पक्षी सारे मुझमें ही आकर सिमटते जाते थल-जल के सारे ...
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