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कंधों पर ढोते-ढोते भार, राष्ट्र निर्माण कर जाते हैं। सुबह से शाम तक भूखे-प्यासे रह जाते हैं। बासी रोटी और सूखी चटनी खाकर अपनी भूख को मिटाते हैं। धूल मिट्टी में ...