प्रभु की चाह

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अपनी शरण में लीजे नाथ, मोहे अपनी शरण गह लीजे। जन्म-जन्म से दर्श की प्यासी, इच्छा पूरण कर दीजे नाथ मोहे.. हुई बाबरी वन-वन भटकी, तेरी सुरतिया मन में अटकी, ढूँढ़ ...

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