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11 मेरी ओरत मायके चली बदनसीब समझता मैं खुद को झोरु के क्यो ना पले बन्धा दिन-रात उसी की आहट की क्षुद को सम्भाल अपनी आवेश दिया कंधा मन में मेरे ...
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