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खून-ए-जिगर बहा है उनकी नैन-ए-फिगारी से, लगी है आग सीने में बुझी हुई चिंगारी से ; आती है खुशबु कभी कभी हमारी अलमारी से, दस्तखत उन खतों पे अब भी है ...
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