बुझी हुई चिंगारी से – एक ग़ज़ल – उदय विसानी

1 भाग

348 बार पढा गया

11 पसंद किया गया

खून-ए-जिगर बहा है उनकी नैन-ए-फिगारी से, लगी है आग सीने में बुझी हुई चिंगारी से ; आती है खुशबु कभी कभी हमारी अलमारी से, दस्तखत उन खतों पे अब भी है ...

×