काग़ज कलम

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जब भी मन में गुबार आया। या कोई भी विचार आया। कागज कलम दवात उठाई। मन भावों को संजोती चली। कहीं किसी ने हद पार करदी लांघ गए दर कदम मर्यादित।  ...

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