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आँखों में ख्वाब सजते हैं। फिर बनती है तदवीरें भी। श्रम लक्ष्य संयोजन होते। तब बनती है ताबीरें भी। नींद से जागे स्वप्न टूटा। यादें रहीं धुंधलाई सी। शहद पगी बचपन ...