संजय चतुर्वेदी की कविता--एक लाख लोंग ग़लत नहीं हो सकते

1 भाग

303 बार पढा गया

14 पसंद किया गया

इस अख़बार की एक लाख प्रतियाँ बिकती हैं  एक लाख लोगों के घर में खाने को नहीं है  एक लाख लोगों के पास घर नहीं हैं  एक लाख लोग  सुकरात से ...

×