सूरदास जी के पद

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जो तुम सुनहु जसोदा गोरी। नंदनंदन मेरे मंदिर में आजु करन गए चोरी॥ हौं भइ जाइ अचानक ठाढ़ी कह्यो भवन में कोरी रहे छपाइ सकुचि रंचक ह्वै भई सहज मति भोरी॥ ...

अध्याय

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