सूरदास जी के पद

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 हरष आनंद बढ़ावत हरि अपनैं आंगन कछु गावत तनक तनक चरनन सों नाच मन हीं मनहिं रिझावत॥ बांह उठाइ कारी धौरी गैयनि टेरि बुलावत कबहुंक बाबा नंद पुकारत कबहुंक घर में ...

अध्याय

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