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कविता -ओस की बूंदें ओस की बूंदें मोती के कण सा बिखरे घासों पे सुबह सवेरे झिलमिल झिलमिल चमक रहे थे। बहते वायु के सांसों से , कितने खुश थे तनिक ...
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