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लेखनी कहानी -25-Aug-2023
भाषा : हिन्दी
भाषा - कोटि - : कविता
लेखनी कहानी -17-Aug-2023
भाषा - कोटि - : शायरी
वक़्त को आते न जाते न गुज़रते देखा
किसी सुबह को शाम बनादे पगली
मुशीबत के मारे
रंग चढ़ा है इश्क़ का या खुमारी छाई है
हम फिर से तेरी राह पर चलने लगे हैं
उसकी निगाह आज यही काम कर गई
तमन्ना है हमारी
गीत बसा मन में
इस दिल की गहराई को कोई नापता नहीं
दिल में इक लहर सी उठी है अभी
सिर्फ मतलबी लोग
दिल धड़कने का सबब याद आया।
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
सितारों से आगे जहां और भी हैं
दीवाना बना डाला
मुझे याद है
तुमको अर्पित है
चुपके-चुपके रात दिन, आँसू बहाना याद है।
दिल -ए-नादां तुझे हुआ क्या है
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं ।
जब अकेला रहा तो उसकी याद आयी।
हो जाए
चौखट
पूरी कर दो आस
सूखे आंसू
फांसी लटकाओ तत्काल
नजर का टीका
सावन के दोहे
मणिपुर की घटना
किसे बताएं
जो बीत गई सो बात गई
तुमको प्यार करूंगा
नर हो, न निराश करो मन को,
साजन! होली आयी है
माँ ने बड़ी प्यार से, आँखों में लगाया था काजल
छाई घटा घनघोर
ले चल वहां भुलावा देकर, मेरे नाविक धीरे-धीरे
चांद छत पर था
मेहनत सबसे अच्छा गुण है,
प्रेम के रंग अनोखे हैं
कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
व्याकरण हो गया
परदेश में रहने वाले
खड़ा हिमालय बता रहा है, डरो न आंधी पानी से।
कलम आज, उनकी जय बोल
एक डोर में सबको जो है बांधती, वह हिंदी है।।
पाती भेजी थी
खूब मुबारक ईद
सिर्फ तुम्हारा साथ
डर लगता है
योग दिवस है आज
भोर की लालिमा
पितृ दिवस
सपनों की दुनिया
सीख लिया
तेरी कमी है
दीवाना कहता है
दुआ मांगूं
देश बन गए
अरमान तुम
शहर का सफर
समझाना है
तेरी याद सताती मां
जीवन में सत्संग
उपहार दिया
सबके लिए उदार
बदलती दुनिया
दृढ़ निश्चय
रोज जला करते हैं
परिवर्तन लाएं हम
नैतिक कर्तव्य
आगे चलता जाऊंगा
राधा कान्हा होली में
भगतसिंह से शूर
अपनों से हारा हूं मैं
पेड़ कट रहे हैं
दूर चला जाऊंगा
कयामत हो रही है
रिश्ते होते अंत
यह कहती भारत माता है
सांझ आई है
कामयाबी के शिखर पर
कैसे गले लगाऊं तुमको
सबसे विस्तृत सोच
माखनचोरी
अब दहेज का भार
गीत बनाया मैंने
लगते रिश्ते नीक
मन लुभा रही है
चूड़ियों की वो मधुर झंकार
चल रही है
कलियों की मुस्कान
जान लो
ओस की बूंद
नजरों से पैगाम करूं
तो संयम कर देख
अनुप्रास लिखूंगा
मोहब्बत हो जाए
लौट आया
नमामि मातु शारदे
नदिया और नारी
भारत में बेमिसाल
लकीरें तुम खींचों
मां शारदे
भूल जाते हैं
राखियां
नहीं बनता
आजाद हिंद के नायक
कसम उठाई थी
तन्हाई बिता भी नहीं सकते
केवल यारो कर्म
बेकरारी गज़ल है
बस तुम्हारी याद में
छोड़ दीजे क्रोध यारो
रक्तदान दोहे
पर के पत्थर
पर्यावरण बिगाड़
है रौनक अनुकूल
ढोते जा रहा हूं
मेहरबानी से डरता हूं
आज पानी है
तीन फसल के बाद
बेचते हैं
कश्ती अच्छी लगती है
याद आने लगी
वेवजह हमसे न यूं तकरार कर
मर्यादा का ग्रास हुआ
महाराणा प्रताप
फना होने से डरता हूं
नवल प्रभात
एक वृक्ष नीम से
नींद आती नहीं रात भर अब प्रिये
वह मिल जाएगा
गांव का आदमी
मुस्कान के कातिल
मैं घायल आवारा हूं
हमारी तुम्हारी गज़ल है
कली मुस्कुराने लगी
है मुमकिन नहीं
मासूम
छंद तुम्हारे नाम लिखूं
बहाना बनाना
खाली नहीं देखा
मुलाकात याद आ गई
विद्रोही चिंगारी थी
मेरे मन के कोरे कागज पर, तेरा ही नाम लिखा है
हो गए बहुत महान
सपने परे रह गए
क्यूं नहीं आता
ओ मेरे हमराज
गर्मी की तपन
रहती जहां जवानी है
कभी कातिल नहीं मिलता
देश के जवान हो
बन कर किताब आया
वो आज हमको सता रहे हैं
हिचकियों ने संदेशा दिया रात भर
हर दिन यारो योग
भूल गए
उपसंहार कर दो
मकान किसका हुआ
रात भर
नाव बन जाती है मां
प्यारी भैय्या दूज
खूब फूलता फलता जीवन
आहत वही शिकारी हो
मत कीजिए
बताओ मुझको बाबुल
बेताज चांदनी
आगे बढ़ते जाना है
याद आता है
आसपास है
फागुन में
मन से मन का मेल
याद के झरोखे से
बरसाने की नार
बरसो बादल
मीत आ जाईए
एक सिपाही होता है
दिल बहुत गुस्ताख़ है
हमारी ही जमीं अपनी बताते हो
इनका उचित निदान
राधा को घनश्याम मिला
पावन गीत नहीं होते
अखबार देखिए
अमर हुआ गणतंत्र हमारा
छीन लिया
सुहाने मौसम में
छोड़ दूं कैसे
अतिथि
हम ना मरे
आज संसार में प्यार की हार है
हिंदी दिवस के दोहे
आशिकी का भरोसा नहीं है
वो आखिरी खत
खेल ये नसीब का
गम ए जुदाई
गुमान आज जितना था मैं खो रहा हूं
गीता स्मृति
अफसाना हो जाता है
बेगम
कोई मन का आदर्श हो
पुनीत बने हैं
वादा ऐंसा कीजिए
प्यार मेरे देश में
शिकायत हो रही है
श्रृद्धांजलि जनरल बिपिन रावत
सुबह-सुबह
आधार दो
ज्यों सोने की खान
जमीन है
खिलौना है यारो
भलाई की भी अपने आप आदत जाग जाती है
भावना को तुम नया आयाम दो
मां के पांव दबाने में
इंटरनेट चलाऊंगा
होना चाहिए
संभावना है
अपनापन
पूछ लेना
जमाना
बन कर विकसित राष्ट्र, तिरंगा दुनिया पर फहराना है
धोखा आप जरूर
तुम्हारा है अलग अंदाज कह दो
प्रणय पंथ के राही
किनारे हुए
वादियां
शिकायत लोग करते हैं
लक्ष्य बनाओ
कन्या दान बनाने ए माता
आईना के मुक्तक
अमानत में
सिफारिश
सतरंगी सपनो का त्योहार
ढलती हुई शाम
पहली किरण
रंग भरा त्यौहार
लेखनी प्रतियोगिता -02-Nov-2021
फौजी का संदेश
बालदिवस
मां का आंचल
लेखनी कहानी -30-Oct-2021
कविता
तूने भृकुटी तान दी
बंधनों को तोड़ दो
जब इंसाफ नहीं मिलता
लेखिनी
परिवार परामर्श केंद्र
भाषा - कोटि - : कहानी
करवा चौथ
यह नस्वर संसार
खेल यहां
बहादुर नीरा आर्य
मर्यादा
मजबूर हैं
सम्मान होना चाहिए
मना दशहरा पर्व
मां के नवरात्रे
कन्या पूजन दोहे
आदिशक्ति मां अम्बिका
करें तेरी आराधना
अध्ययन कर लिया
नैना मेरे तरसे
दे मुझे भक्ति और शक्ति
राष्ट्र भक्ति
माता तेरे द्वार
एक तोहफा अनमोल दिया
क्या तुमको विश्वास नहीं?
कुछ अपने तो अपना होना भूल गए
अपने सुत को चीर
जहां में नसीब का।
पुकारेंगे हम
हौसलों से भरी ऊंची उड़ान लौटा दो
जमीन हथियाने की साज़िश
मत कहो लाचार होतीं बेटियां
बेटी दिवस
बेबफाई मिले टूट जाते हैं हम
आंचल अच्छा था
माँ का आंचल
मन के कोरे कागज पर
झील सी आंखें मलते हुए मर गई
है कयामत भरा ,ये तुम्हारा शहर
कसक रह गई
कहर मिल सका
भाषा - कोटि - : लेखमंथ प्रतियोगिता सितंबर 2021
संस्कार का ध्यान करो
विदाई की बातें
ख्वाहिशें अधूरी सी
भींगी पलकें आज
अब दया करो अंतर्यामी
आन बान है हिंदी
हिंदी दोहे
संतान सप्तमी के मुक्तक
लम्हें लम्हें का वो सारा हिसाब लाए हैं।
घटाओं सी उसकी जुल्फ काली
मर गया
करूँ नित्य वँदन
आवाज बन कर देख लो
पनाह में
फना होते हैं
बेइंतहा मोहब्बत
मात पिता
गुरु वंदना
करना विरोध है
तुम्हारी मुस्कान
मंजिल और रास्ता
भलाई जाग जाती है
चाह करते जा रहे हैं
दिखती दुनिया सारी है
भारत मां का दल
दिखते आसार नहीं
आदत में मर गए
आदत नहीं मिलती
रात आधी जब हो गई
बुला ले ए कान्हा
आकर भव का भार
मुक्तांजलि
खुद अपना ही कंत
बसंती मौसम में
कीजे कृपा विशेष
रसना रस की खान
कत्लगाह खोज रहा हूं
गाथा गाया करता हूं
लहू
पूरे फेरे सात
हँस होना चाहिए
कुंडली छंद
तक़दीर देखेंगे
तक़दीर कहते हैं
भारत की तकदीर
काँधा दिया न दुष्ट
धूप छाँव
आ जाओ
उसको वृद्धाश्रम भेज दिया
जीना सीख लिया
इंकार ए मुहब्बत
पता करें
पावन भादौं मास
आगोश में
कर लीजे स्वीकार
आगोश में आकर
अपना हिंदुस्तान है
राखी का त्यौहार
हर्षाई है राखी
बनाते हैं
भाई बहन का प्यार
प्यार तो त्याग है प्यार बलिदान है
जैसे गंगाजल
इक गीत तुमको दे रहा हूं
गीत तुमको दे रहा हूं
इज्जत नहीं
हमसफर नहीं होते
नई लकीरें खींचो तुम
बरसात की एक रात
भुला देते हैं लोग
मंजूर करते हैं
चल दिए
चलता समय है
एक भरोसा छला गया
अपने वीर सुभाष कहां
अनुप्रास बन कर
जज़्बात मुकम्मल कर दो
राखी का त्योहार
गा रहा हूं मैं
एक खत माँ के नाम लिखा
दूल्हा बिकता है
मदद हो गई
इक नया मधुमास बन कर
भगत हमारी शान
लगे सभी को कामिनी
पानी भूल जाएंगे
आजादी का भोर हुआ था
तिरंगा दुनिया पर लहराना है
सौरभ कटारा की शहादत
वादी ए हिंदुस्तान की
हक न मिल सका
मातृभूमि के छंद
मत सोचना
राजदुलारी
अच्छी लगी
अमर शहीद दीपक यादव
मधुमास बन कर
अदीबवान वतन है
झूलों पर
यह कह गए सुजान
कहो क्या गज़ल कहूं
अमर वीरता की ये कहे कहानी है
उसकी ले लेंगे हम जान
माता भारती के लाल का
अब ये अल्फाज़ तराजू में तोलिए साहब
भुला न देना
बधाई
बनके आ गया कहर
पाले होते हैं
कलम लिखती है
घूम रहे हैं
बड़ा नादान है दर्पण
अर्जित कीजे ज्ञान
प्यार का मौसम नहीं होता
भूल कर
पावन सावन मास
जिनके चेहरे पे अना होती है
ये नयना
इतराता है बाग
है तो है
कैसे लिखूं
मनमोहक चेहरा
मित्रों के नाम
सुप्त सागर में पड़े हैं
हमारा कर्तव्य
याद आती हो तुम
एक हलचल मचाती रहीं हिचकियां
आज बेखुदी को अपनाना सीख लिया
इंसानियत खोने लगी है
चार मुक्तक
खुशबू रखते हैं
आसमान में दो पंछी
सुहानी गज़ल
ईद मुबारक
नफरत
पहचान नहीं जाने देंगे
आजादी
खुशियां लाती है
गम़ ए जुदाई
आधुनिक आशिक
पूर्णिमा या अमावस
सिलसिले हुए
हास्य मय सफर
चरित्र
सांसों के स्पंदन से
मन की बेताबी
सुहानी शाम आई है
सुबह शाम बनाते
जमाना पड़ा
मेरे जीवन में आ जाना
मतवाले दो नैन
बुतखाना बना डाला
प्रेंम ही सत्य है
लगाना नहीं
फिसलता समय
अदाएं साथ देती हैं
इन अनजानी राहों पर
अजनवी से मुलाकात
गंगापुर
सिर्फ़ तुम्हारा साथ
साहिल
ख्वाब था
ख्वाब उकेरा ही सही
जीवन की कस्ती
भारत की पहचान
योग दोहा
दस्तक आई नई नई
मस्ती
बचपन की दुनिया
खामोशी
हम सफर नहीं होते
फरमान देखिए
पुलवामा हमला,
मानव निर्मित बीमारी है
तेरा यौवन आधार लिखूं
हर छंद तुम्हारे नाम किया
चाहत रह गई
हमने सीख लिया
पागल पन बन जाता है
मेरा नाम तिरंगा है
देश नहीं मिटने देंगे
मानवता विरुद्ध दानवता
औरत का जीवन - एक कसौटी
भूली बिसरी यादे
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