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सब्जबाग

कविता

सब्जबाग

राजीव कुमार झा

तुम्हें किसी दिन
इतने रुपये
भेजकर कहूंगा
क्या मेरे भेजे
रुपये
तुम्हें मिल गये
अरी प्रिया
मेरे इतने रुपये
किसी दिन
जरूर तुम्हें मिलें
कविता की सुंदर 
किताब 
तुम्हारे चयन से छपे
हम सिर्फ
काव्य संग्रह से
बाहर बाकी बचे
जो भी अब प्रेमगीत
लिखते रहे
उसे वसंत के
दरवाजे पर आकर
सभी लोग सुनें
होली के दिन
गुलाब के फूलों की
पंखुड़ियां
घर के आंगन में 
झरें
हवा सबकी सांसों में
महके
कविता में कोई चिड़िया
चहके
गेहूं के खेतों में
उड़कर
सबको कहे
आज नदी के पार
झुंड में जाना
वहां बाजार में
रुपये उड़ाना
लौटती राह में
नाको चने चबाना
कविता की कोई
किताब 
खरीदकर लाना
मुफ्त में ऐसा कोई
उधार का यह सब्जबाग
कभी किसी को
मत दिखाना

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3 Comments

Renu

20-Jan-2023 06:13 PM

👍👍🌺

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Gunjan Kamal

20-Jan-2023 09:19 AM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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Abhinav ji

20-Jan-2023 08:02 AM

Very nice

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