लेखन
लेखन
मेरे पास कुछ नहीं है
सिर्फ लेखन
यही मेरा जीवन है
निजी वतन है
वतन पर रहता हूँ
लेखन करता हूँ
यही पीता हूँ
यही देता हूँ
कोई ले या न ले
साथ में चले या न चले
मैं फर्ज निभाता हूँ
हरि गुण गाता हूँ
स्वान्तः सुख की खोज है
लेखन ही भोज है
पैदल चलता हूँ
हिलता-मिलता हूँ
चार चक्का नहीं चाहिये
सिर्फ स्वाभिमान चाहिये
नैतिकता चाहिये
सर्व मानवता चाहिये
करुणा और दया चाहिये
शील और हया चाहिये
सच्ची प्रीति चाहिये
पावन नीति चाहिये
सन्त चाहिये
प्यारा बसन्त चाहिये
प्यार की लालिमा चाहिये
ज्ञान और भक्ति की ज्योतिमा चाहिये
प्रिय अधरों का रसपान चाहिये
मुक्तक लेखन की शान चाहिये
देव तुल्य मेहमान चाहिये
स्वर्गिक जहान चाहिये
रस छंद अलंकार चाहिये
कविता का उपहार चाहिये
लेखन मेरे रक्त में है
यह मेरे अभिव्यक्त में है
मैं लेखन का कारण हूँ
सुंदर समाज का उच्चारण हूँ
सभ्यता का वरण हूँ
उत्कर्ष का प्रथम चरण हूँ
मैं स्वयं को लिखता हूँ
खुद को पढ़ता हूँ
अपने को गढ़ता हूँ
अंतस में बहता हूँ
लेखनी को प्रणाम करता हूँ
जगती को सलाम करता हूँ
सब का अभ्युदय हो
लेखन की जय हो।
Sachin dev
31-Dec-2022 06:10 PM
बहुत सुन्दर
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पृथ्वी सिंह बेनीवाल
31-Dec-2022 08:59 AM
बेहतरीन
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