कबीर दास जी के दोहे
हरि रस पीया जानिये, कबहुँ न जाए खुमार
मैमता घूमत फिरे, नाही तन की सार।।
अर्थ :
कबीर दास जी कहते हैं कि जिस व्यक्ति ने परमात्मा के अमृत को चख लिया हो वह सारा समय उसी नशे में मस्त रहता है। उसे न अपने शरीर की, न ही रूप और भेष कि चिंता रहती है।