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तीर्थस्थल



तीर्थस्थल…..(चौपाई)


जीवन को तीर्थ स्थल मानो।

सुंदर कर्मों को पहचानो।।

गाँधी के बन्दर को देखो।

जीवन कला उन्हीं से सीखो।।


बुरा न देखो बुरा सुनो मत।

कभी भूल कर बुरा कहो मत।।

बुरी बात से दूरी रखना।

सत्य पंथ पर चलते रहना।।


परनिंदा से नित्य विरत रह।

सबके प्रति अच्छी बातें कह।।

परनिंदा से विघटन होता।

संबन्धों में घर्षण होता।।


परनिंदा कर दूषित मत बन।

मधुर भावमय हो नित चितवन।।

तीर्थ समझ कर जीवन ले चल।

सत्कर्मों का हो केवल बल।।


सुंदर करे यदि तन-मन।

तीर्थ स्थल बन जाये जीवन।

स्वतः स्फूर्त होगा मानव मन।

खिल जायेगा जीवन-उपवन।।


यदि सच्चा आनंद चाहिये।

देवालय की गंध चाहिये।।

देखो जीवन को तीरथ सा।।

करो काम सब निःस्वारथ का।।


समय मूल्य से परमारथ कर।

देकर दान अर्थ स्वारथ कर।।

दिल को जीतो अच्छा कर कर।

साथ निभाओ सह में चल कर।।


धर्म-कर्म सब पास तुम्हारे।

इन तत्वों के सदा सहारे।।

धर्म क्षेत्र में चलते जाओ।

जीवन को बहु -मूल्य बनाओ।।




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1 Comments

Sachin dev

14-Dec-2022 03:28 PM

Well done

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