लेखनी कहानी -24-Nov-2022
विषय - स्वैच्छिक
विधा - कविता
नाम - ज़ुबैर खांन
प्रितियोगिता
मुबारक हों तुमकों ज़िंदगी के मेले
रहोगी अब किसी की बाहों में
रहेगें हम अकेले अकेले
उदासियों की सुबह नहीं होती
ए - मेरे संग दिल निर्मोही
नही कहना थोड़ी खुशी लेले
दिल टूटा हुआ हैं मेरा
तुने नहीं सबने देखा
गिरे हुऐ टुकड़े क्या देखें
क्या तेरा सनम ये फ़ैसला
ये तुने अपनी मर्ज़ी से लिया
क्या करोगे अब मुझसे मिलके
तसव्वुर में तुम हमारे दिलबर
इक से इक हज़ार बार"ज़ुबैर"
नहीं आना तुम कभी मुझसे मिलने
ज़ुबैर खांन......📝
Gunjan Kamal
24-Nov-2022 08:53 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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Sachin dev
24-Nov-2022 07:52 PM
Well done ✅
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Varsha_Upadhyay
24-Nov-2022 05:39 PM
Wah kia baat he
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