लाइब्रेरी में जोड़ें

दोहा

दोहा


बलि का बकरा जो बने,उसको मुरख जान।

बुद्धिहीनता की यही, है असली पहचान।।


उकसावे में आ सदा, करता है हर काम।

छिपी सोच में मूर्खता, किंतु चाहता नाम।।


बहकावे में नित करे, अपना काम तमाम।

फंस जाने पर ले रहा, वह गाली का नाम।।


छल प्रपंच के चक्र में, देता अपनी जान।

बुद्धिहीन को है नहीं, इस दुनिया का ज्ञान।।


धूर्तों के दुश्चक्र से, बचना नहिं आसान।

सावधान रहता सदा, बुद्धिमान इंसान।।


दो सशक्त दुश्मन प्रबल, का छोड़े जो चक्र।

उस चालाक मनुष्य का, क्या कर सकता वक्र??


आकांक्षा लालच बुरी, दिल से इनको जान।

मूल्यांकन औकात की, कर खुद को पहचान।।


कूद पड़ा कमजोर जो, गया नरक के द्वार।

नहीं बचाने के लिए, कोई भी तैयार।।


फूट फूट कर रो रहा, जगती हंसती आज।

निर्बल हो बलवान बन, तब कर खुद पर नाज।।


   14
1 Comments

Gunjan Kamal

22-Nov-2022 11:16 PM

बहुत ही सुन्दर

Reply