कुंडलियां
आवत देखत मित्र को, सज्जन हर्षित होय।
गले लगाता प्रेम से, अहंकार को खोय।।
अहंकार को खोय, सुजन बनता अति पावन।
मेहमान है मीत, यही चिंतन मनभावन।।
कहें मिश्र कविराय, हृदय खुश हो कर गावत।
नैनों में है स्नेह, मित्र जब घर पर आवत।।
मानव मानव सा रहे, बने कभी न भुजंग।
शुचिता के प्रिय देश में, रह कर छाने भंग।।
रह कर छाने भंग, मस्त हो सबको चूमे।
सहयोगी सद्भाव, रखे पृथ्वी पर घूमे।।
कहें मिश्र कविराय, नहिं आदर्श है दानव।
सर्वोत्तम है योनि, बनो देवों सा मानव।।
Gunjan Kamal
16-Nov-2022 07:21 PM
बहुत ही सुन्दर
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Sachin dev
15-Nov-2022 06:30 PM
Superb 👌👌
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