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कुंडलिया




कुंडलिया

नाता रिश्ता प्रेममय, यह भावों की डोर।
भौतिक आंधी तोड़ती, भावुकता चहुओर।।
भावुकता चहुंओर, रो रही आज विलखती।
यहां सिर्फ पाषाण, खण्ड से पिटती जगती।।
कहें मिश्र कविराय, लगा है केवल ताता।
जिनका अपना अर्थ, स्वार्थ का केवल नाता।।

नाता नातेदार से, भूल रहे हैं लोग।
क्षरण हो रहा भाव का, है प्रधान बस भोग।।
है प्रधान बस भोग, दंभ का भाव बढ़ा है।
खिसक गई है चूल, दनुज मन ज्वार चढ़ा है।।
कहें मिश्र कविराय, मनुज उसको अपनाता।
जिससे मिलता लाभ, उसी से रिश्ता नाता।।

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2 Comments

Gunjan Kamal

16-Nov-2022 08:32 AM

Nice 👍🏼

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Sachin dev

10-Nov-2022 07:40 PM

Nice

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