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लेखनी प्रतियोगिता -11-Oct-2022 जिद्दी



शीर्षक = ज़िद्दी




अनन्या, अनन्या! बेटा कहा हो? देखो तुम्हारे लिए खाना लायी हूँ, कुछ तो खा लो कब तक यूं ही अपने पति के जाने का सोग मनाती रहोगी ।

आज तो विकास को भी इस दुनिया से गए पंद्रह दिन हो गए , थोड़ा बहुत खा लो नही तो तुम्हे भी कुछ हो जाएगा, जो होना था वो हो गया अब इस तरह रोने धोने से क्या फायदा, विकास वापस तो नही आ सकता । अनन्या की माँ उसके कमरे में हाथ में खाने की थाली लिए उसके कमरे में, आयी उसे समझाते हुए 


अनन्या जो की उदास खिड़की के पास बैठी थी , अपनी माँ को देख  उसने अपनी आँख से निकल रहे आंसुओं को साफ किया और बोली " माँ, ये सब मेरी वजह से ही हुआ है , न मैं उस दिन ज़िद्द करती और न ये सब होता

आप सही थी माँ, मुझे समझाती थी की हर बात की ज़िद्द करना अच्छी बात नही, पर मैं बेवक़ूफ़ समझ नही पायी

माँ, विकास को मारने वाली मैं ही हूँ, उसकी माँ ने सही कहा था , मैं ही उसकी मौत की ज़िम्मेदार हूँ, मेरी ज़िद्द ने ही उसकी जान ली है  "


अनन्या की माँ, सुधा जी ने उसे अपने सीने से लगाया और बोली " नही बेटा ऐसे नही कहते है , वो सिर्फ एक हादसा था , जिसमे विकास की जान चली गई, तुम अपने आप को कसूरवार मत समझो  "


"नही माँ, मेरा ही कसूर है। न मैं उस दिन ज़िद्द करती और न ये सब होता " अनन्या ने कहा रोते हुए


सुधा जी ने अनन्या के आंसू साफ किए और बोली " बेटा इसलिए ही मैं तुमसे ज़िद्द करने को मना करती थी, मुझे पता था एक दिन तुम्हारा ये ज़िद्दी पन किसी अनहोनी का कारण ज़रूर बनेगा, तुम घर पर भी अपने पापा से सारी ज़िदे मन वा लेती थी और फिर ससुराल में भी तुमने वही सब किया जो यहाँ मायके में करती थी, विकास से अपनी हर ज़िद्द मनवा लेती थी।उसके मना करने के बावज़ूद 


उस दिन भी वो तुमसे मना करता रहा की इतना भारी सोने का हार मत पहन कर जाओ, तुम्हारी सास ने भी मना किया, कि बाहर का माहौल अच्छा नही है और शादी से वापसी पर रात हो जाएगी, लेकिन तुम नही मानी

तुमने ज़िद्द करके विकास को भी मना लिया और फिर वही हुआ जिसका डर था

तुम्हारा हार भी छिन गया और उसे बचाने के चककर में तुम्हारा सुहाग भी छिन गया, सिर्फ और सिर्फ बड़ो कि बात न मानने कि वजह से और अपनी ज़िद्द पर अड़ी रहने कि वजह से

खेर जो होना था वो हो गया, अब ये खाना खा लो अब इस तरह रोने धोने से कोई फायदा नही, अगर तुमने वक़्त रहते अपनी आदत को बदल लिया होता तो शायद आज तुम्हारा सुहाग ज़िंदा और सही सलामत तुम्हारे पास होता।


अब चलो खाना खा लो और फिर दवाई खा कर सो जाओ, मैं जब तक तुम्हारे पापा को खाना दे आऊ सुधा जी ने कहा और वहाँ से चली जाती है, खाने कि थाली अनन्या के हाथो में देकर


अनन्या हाथ में थाली पकडे बीते लम्हो को याद कर रही थी। और सोच रही थी कि काश उसने वक़्त रहते अपनी बेवजह ज़िद्द को बढ़ावा न दिया होता बड़ो कि कही बातों को अपनी ज़िद्द के आगे नज़र अंदाज़ न किया होता तो आज विकास ज़िंदा होता, उसकी आँखों से आंसू निकल रहे थे।


प्रतियोगिता हेतु लिखी कहानी 

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15 Comments

दशला माथुर

14-Oct-2022 07:00 PM

शानदार 👌

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shweta soni

14-Oct-2022 03:48 PM

Bahut khub

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