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कविता--व्रत


कविता--व्रत

आज व्रत की परिभाषा बदलें हम
करें स्वयं से संकल्प
बदलेंगे हम समाज को
 देंगे एक नया चमन
रुढ़ियों की बेड़ियां तोड़कर
आजादी का मनाएंगे जश्न
हर कली का रुप खिले
बनाएंगे ऐसा गुलिस्तां।
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सीमा..✍️
©®
दैनिक प्रतियोगिता के लिए

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9 Comments

Pratikhya Priyadarshini

09-Oct-2022 01:12 AM

Bahut khoob 🙏🌺

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Swati chourasia

07-Oct-2022 06:52 PM

बहुत खूब 👌

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Bahut khoob 🙏🌺

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