स्त्रीत्व
तुम सभा तुम ही समिति
तुम युगों की आपबीती।
तुम स्वधा तुम ही स्वाहा हो
तुम ही गंगा तुम अदिति।
तुम धवल क्रीड़ा में लिपटे
सूर्य की भी पुण्य दीप्ति।
तुम घनन अकाल में हो
पूर्ण तृष्णा आत्म तृप्ति।
तुम अमर फूलों की खुशबू
रंग उड़ती तितलियों की।
तुम सरल सरिता का पानी
तीव्रता हो मछलियों की।
तुम ही सूरज रंग लालिम
तुम गगन की आसमानी।
तुम पुरुष के चेतनाओं में
सुसज्जित स्वाभिमानी।
जब लिखेगा एक कवि
स्वर्णिम तनय के रंग को
तेरे करुणामय सकल
अवधारणा उमंग को।
तब अनुभूति में तुम ही
कंठ से गुंजित वरण हो..
तुम कभी सीता समर्पित
या कि दुर्गा अवतरण हो।
किंतु यह कलयुग है सुन लो
क्या नया उन्माद है....
पल रहा हर नेत्र उर में
धृष्टता अवसाद है।
मानता हूं मैं जया विजया
तुम्हें न कह सका.....
रोशनी देने जगत को
दीप फिर न दह सका।
एक मेरा प्रश्न है
गाथाओं के संदर्भ से
कुछ चेतनाएं हैं विखंडित
धृष्टता के गर्भ से
कुछ तथ्य घायल कर रहे हैं
आज अंत: ग्राम को...
क्यों प्रशस्ति कर रहे
निर्लज्ज सघन संग्राम को?
तेरी मन की हर दशा
संकेत है नक्षत्र को..
तेरे क्रोधित भाव से
ज्वाल है हर शस्त्र को
किसलिए फिर ख़्वाब मन में
नग्नता का बुन रहे...
नृत्य करने केंद्र लौकिक
रील जैसे चुन रहे??
आज कुछ बिगड़ा नहीं है
आप को बस जान लो..
तुम अलौकिक दिव्य हो
स्वयं को पहचान लो।
ताकि कवि के गीत को
तुमसे अमर्तक राग हो...
पुरुष जब जब भाग हो तो
स्त्रियां महाभाग हो!!
दीपक झा रुद्रा
𝐆𝐞𝐞𝐭𝐚 𝐠𝐞𝐞𝐭 gт
07-Apr-2023 06:39 PM
अद्धभुत 👌👌
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madhura
21-Mar-2023 01:14 PM
nice
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Radhika
04-Feb-2023 09:53 AM
Nice
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दीपक झा रुद्रा
05-Feb-2023 12:04 PM
Thanks lot of dear
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