अधूरे जज़्बात भाग :- ३
भाग :- ३
मन का वह भाव जों नया हों , जिसकी उम्मीद दिल ने ना की हों, ऐसी बातें सुनने वाले के लिए सर्वदा आश्चर्य ही साथ लाती है । सुजाॅय के साथ भी ऐसा ही हुआ । उसने तों यह कभी नहीं सोचा था कि उसके पिता शर्त के रूप में उसकी शादी एक अन्य बिजनेस मैन की बेटी से करवाना चाहते है ।
सुजाॅय के लिए यह समझना आसान नहीं था लेकिन उसके पिता इस बात को बखूबी समझते थे । वह एक तीर से दो निशान लगाना चाहतें थें । एक तों बेटे की शादी से उनका बिजनेस विदेशों में फैलने वाला था क्योंकि जिस बिजनेस मैन की बेटी से वह अपने बेटे की शादी करवाना चाहते थे उसका कारोबार विदेशों में भी था और उनकी होने वाली बहू अपने पिता की एकलौती संतान थी जिसका फायदा कारोबार में होने वाला था । दूसरे वह अपने बेटे को अपने बिजनेस में लाना चाहते थे । सुजाॅय के पिता को डर था कि उनके बाद उनके बिजनेस को देखने वाला कौन होगा और कहीं उनका बिजनेस घात लगाए उनके चचेरे भाई ना हड़प ले ? ।
सुजाॅय से उसके पिता यदि कहते कि तुम्हें मेरे कारोबार में मेरा साथ देना है तो उसे रत्ती भर भी आश्चर्य नहीं होता लेकिन शादी की बात कर उन्होंने उसे आश्चर्य में डाल दिया था ।
आश्चर्य तब और बढ़ गया जब सुजाॅय के पिता ने उससे यह कहा कि तुम उस लड़की के साथ डेट पर जाओं और यह डेट उस लड़की के साथ तुम्हारी तीन बार होगी । इन तीन डेट्स के बाद यदि उस लड़की की तरफ से शादी के लिए हाॅं हुई तभी तुम लोग परिणय सूत्र में बंधोगे अन्यथा तुम मेरी इस शर्त से सदा के लिए आजाद हों ।
सुजाॅय के मन में उठ रहें प्रश्नों पर विराम लग गया जों उससे प्रश्न कर रहें थे कि तुम्हारे पिता तुम्हें अपने बिजनेस में घसीटने के लिए तुम्हारी शादी करवा रहें हैं ताकि इस बहाने तुम उनके पास रहो और उनके कारोबार को संभालों ।
सुजाॅय के पास विकल्प खुले हुए थे । उसी विकल्प पर थोड़ी सी मेहनत कर वह इस शर्त रूपी दलदल से बाहर निकल सकता है , उसकी इसी सोच ने उसके होंठों पर थोड़ी सी ही सही लेकिन आखिर में मुस्कान तों ला ही दी थी ।
' मैं अस्पताल में हूॅं , अभी नहीं आ सकती , मैं तुमसे तुम्हारे घर पर ही शाम में मिलती हूॅं ।' कहते हुए अरण्या ने फोन काट दिया ।
अरण्या और शिविका दोनों ही बचपन की दोस्त थी । दोनों में कुछ भी समानता नहीं थी । दोनों में धन, हैसियत और विशेषाधिकार की असमानता थी लेकिन जहाॅं समानता हों वैसी दोस्ती मिसाल नहीं बनती ।
अरण्या जहाॅं अपनी मेहनत के बल पर एक अस्पताल में नर्स थी और आगे भी डाॅक्टरी की पढ़ाई करना चाहती थी लेकिन घर की स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से डाॅक्टरी के सपने को भुला कर शहर के ही अस्पताल में नर्स का काम करती थी ताकि वह अपने माता-पिता पर बोझ ना रहें , वहीं पर शिविका के पिता बहुत बड़े बिजनेसमैन थे और वह उनकी एकलौती संतान थी । बचपन से ही उसे किसी चीज की कमी नहीं थी । जरूरत से अधिक व्यक्ति को जिद्दी और अहंकारी बना देता है । शिविका के मुॅंह से निकले हर शब्द पत्थर पर लिखी लकीर के समान थें जिसे उसके पिता पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे । अपने काॅलेज की छात्र संघ की अध्यक्ष शिविका लाॅ की विद्यार्थी भी थी ।
शाम को अरण्या का इंतजार करती शिविका की नजर दरवाजे पर ही थी । उसकी घबराहट और बेचैनी उसका हाल बयां कर रहे थे ।
' कितनी देर लगा दी तुमने ? मैं कबसे तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी ।' सामने से आती अरण्या को दौड़ कर पकड़ते हुए शिविका ने कहा ।
' क्या हुआ मेरी शेरनी को, इतनी परेशान क्यों दिख रही हों ? ' शिविका के चेहरे की तरफ देखते हुए अरण्या ने कहा ।
' मुझे अभी शादी नहीं करनी और ना ही उस लड़के से ही मिलना है । मैं तों अपने देश के लिए बहुत कुछ करना चाहती हूॅं लेकिन मेरे पापा को तों मेरी शादी करानी हैं । कहते हैं एक लड़का है जिससे मुझे तीन बार मिलना है , इसके बाद यदि हम एक-दूसरे में इंटरेस्टेड हुए तभी हमारी शादी होगी लेकिन मैं तीन बार क्या ? एक बार भी उस लड़के के साथ या यूं कह लों कि किसी भी लड़के के साथ मिलने में इंटरेस्टेड नहीं हूॅं ।' कहते हुए शिविका ने अजीब सा मुॅंह बना लिया ।
' तीन डेट्स उस लड़के के साथ ? , यह तों अच्छी बात है और सबसे अच्छी बात यह है कि यदि तुम्हें वह लड़का पसंद नहीं आया तों तुम शादी से इंकार भी कर सकती हों ।' अरण्या ने शिविका की तरफ देखते हुए कहा ।
' मैंने कहा ना ! मैं अभी शादी ही नहीं करना चाहती इसलिए मैं उससे क्या ? किसी भी लड़के से मिलना नहीं चाहती ।' शिविका ने कहा ।
' मिलना ही तों हैं , कौन - सा आज के आज तुम्हें उस लड़के से शादी करनी है । तीन बार मिल लों उसके बाद अपने पापा से कह देना कि मुझे वह लड़का पसंद नहीं आया , सिंपल सी बात है ।' अरण्या ने कहा ।
' सिंपल सी बात नहीं है यार ! जितनी सिंपल यह बात तुम्हें दिख रही है उतनी नहीं है । कई बार जों चीजें हमें आसान दिखाई देती है वाकई में वह अनसुलझी पहेली की होती है । मैं अभी इस अनसुलझी पहेली को सुलझाने के लिए तैयार नहीं हूॅं । छात्र संघ की अध्यक्षा होने के नाते सैकड़ों विद्यार्थियों का भविष्य मेरे ही हाथों में हैं । मैं ही उनके हक की लड़ाई में उन सबकी श्रीकृष्ण हूॅं । मैं उनको इंसाफ दिलाएं बिना अपने लिए कुछ भी नहीं सोच सकती । मैंने उन्हें वादा किया है कि जीत हमारी ही होगी और इस जीत को मैं अपने व्यक्तिगत मामलों में पड़कर हार में तब्दील नहीं कर सकती क्योंकि यह जीत हमारी भाषा की जीत है क्योंकि इस जीत के बाद हम पर कोई भी अपनी भाषा का बोझ नहीं डाल सकता हैं ।'
शिविका ने अरण्या की तरफ आत्मविश्वास के साथ देखते हुए कहा ।
क्रमशः
" गुॅंजन कमल " 💗💞💓
Chirag chirag
02-Dec-2021 09:12 PM
Nice part
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fiza Tanvi
29-Nov-2021 04:27 PM
Good
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Miss Lipsa
30-Aug-2021 08:42 AM
Wow wow
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