अधूरे जज़्बात भाग :- १
भाग :- १
सड़क पर जहाॅं - तहाॅं बिखरें पड़े चप्पलें , टायर के जलने से उठता हुआ धुआं ही धुआं ... भागमभागी का माहौल .. एक-दूसरे से टकराते .. बचते - बचाते इधर - उधर भागते प्रर्दशन कर्ता .. सड़क पर बिखरें बैनरों और पोस्टरों के ऊपर से भागते विद्यार्थी ,दूर से ही सुनाई पड़ती पुलीसियां गाड़ी की सायरन , सैकड़ों की संख्या में हाथ में डंडा और सिर पर हेलमेट पहने पुलिस के जवानों को देखकर यह स्वत: ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि अभी - अभी किसी उग्र आंदोलनकारियों पर पुलिस ने बल प्रयोग किया हों ।
इन्हीं माहौल का फायदा उठाकर कुछ उपद्रवियों विद्यार्थियों का जत्था अपनी दुश्मनी निभाने की कोशिश में इंसानियत को शर्मसार करने में लगा हैं । दुश्मनी निभाते हुए अपने काॅलेज में ही पढ़ाई कर रहें सहपाठी को मृत्यु के घाट उतारने की इस कोशिश में उन्हें सफलता मिल भी गई और अपने मंसूबों में वह कामयाब भी हों ही जातें अगर ऐन मौके पर उसी काॅलेज के कुछ विद्यार्थियों ने उन्हें ऐसा करने से रोका ना होता ।
' यार ! जल्दी से दरवाजा खोल ।' ठक - ठक की आवाज के बीच जानी - पहचानी बोली को सुनकर सुजाॅय दरवाजे की ओर लपका ।
दूसरे दोस्तों के कंधे पर अपने जिगरी दोस्त को लहुलुहान देख कर सुजाॅय की मानों जान ही निकल गई । एक पल को उसकी ऑंखो के सामने अंधेरा छा गया लेकिन अगले ही पल वह मेज पर रखें अपने मोबाइल की तरफ तेजी से दौड़ा और रोगीवाहन ( एम्बुलेंस ) मंगाने के लिए फोन करने लगा ।
गोद में अपने दोस्त का सिर रखें सुजाॅय की ऑंखें लाल हो रही है । वह अपने जिगरी दोस्त को किसी भी हालत में खोना नहीं चाहता ।
' यही तों हैं जो मेरे हर सुख-दुख में मेरा साथी हैं । मुझे जानता है , मेरे मन को समझता है , मैं इसे खो नही सकता ।' सुजाॅय की बड़बड़ाहट को हर कोई देख - सुन रहा था ।
मनोज ( सुजाॅय का जिगरी दोस्त ) की नाज़ुक हालत देखकर डाॅक्टर ने उसे आई . सी. यू. में तुरंत ही भर्ती कर दिया । भर्ती कराएं जाने के दस मिनट बाद ही सुजाॅय से कहा गया कि उसका दोस्त मनोज नाजुक स्थिति में हैं और उसका ऑपरेशन करके ही उसे बचाने का प्रयास किया जा सकता है ।
एक इंजीनियरिंग कॉलेज का टाॅपर आज तक अपनी मेहनत की बदौलत ही इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष का छात्र था । अपने जिगरी दोस्त की जान बचाने के लिए उसे किसी भी प्रकार के मेहनत की जरूरत नहीं थी । जरूरत थी तों डाॅक्टरों के कहेनुसार मात्र पाॅंच लाख रूपए की ।
बेशक सुजाॅय के पिता इस शहर के बहुत बड़े बिजनेसमैन थे और उनके लिए पाॅंच लाख रुपए हाथ की मैल के समान थें लेकिन सुजाॅय के लिए तों यह बहुत बड़ी रकम थी जिसे वह एक साल में भी नहीं कमा सकता था और यहाॅं तों डाॅक्टर ने उसे चंद घंटों का ही समय दिया था ।
आज वह अपने घर के मुख्य द्वार पर पाॅंच साल बाद खड़ा था । आज से पाॅंच साल पहले अपने सिद्धांतों के लिए उसने अपने पिता के एशो-आराम को ठुकरा दिया था । अपने रूतबे और पैसों पर अहंकार करने वाले सुजाॅय के पिता ने उससे जातें - जाते यह कहा भी था कि एक दिन यही पैसा तुम्हें मेरे दरवाजे पर खड़ा अवश्य करेगा ।
पिता द्वारा कही बातें सुजाॅय को आज भी याद थी । आज तक अपने पर आने वाली हर विपत्ति का उसने डटकर सामना किया था । पिछले पाॅंच सालों में ना तो उसके पिता ने ही उसकी खोज - खबर ली थी और ना ही उसने अपने पिता की ।
मजबूरी एक ऐसी चीज का नाम है जिसमें इंसान अपने ईमान तक को गिरवी ही नहीं बल्कि बेच भी सकता है । अपने जिगरी दोस्त की जान बचाने की यही मजबूरी ने आज ना चाहते हुए भी सुजाॅय को इस चौखट पर लाकर खड़ा कर दिया है ।
' आप तों छोटे साब हैं ना । माफ़ करना छोटे साब ! पिछले पाॅंच सालों से आपको नहीं देखा तों थोड़ी सी उलझन में था लेकिन मेरी सारी उलझने अब समाप्त हो चुकी है । आप कितनी देर से यहीं पर खड़े हैं चलिए ! मैं आपको बंगले के भीतर लें चलता हूॅं । बड़े साब भी अंदर ही हैं ।' मुख्य द्वार के चौकीदार ने सुजाॅय से कहा ।
बंगले के भीतर कदम रखते ही बचपन की यादें उसके इर्द-गिर्द घूमती रही । कैसे उसकी माॅं उसे एक - एक निवाला खिलाने के लिए उसके पीछे-पीछे भागा करती थी ? कैसे वह अपनी माॅं और छोटी बहन के साथ छुप्पन - छुपाई खेला करता था । इन्हीं सीढ़ियों के पीछे ही तों वह छुप जाता था । उसकी माॅं यह जानते हुए भी कि वह वहीं पर छुपा है उसे कभी भी ढूॅंढ नहीं पाती थी । वह जानबूझकर चोर ही बनी रहती क्योंकि उनके लाडले बेटे को चोर बनना पसंद जों नहीं था ।
अतीत की सुखद यादें उसके परेशान चेहरे पर पल भर के लिए खुशी लाने में कामयाब हो गई थी । सब-कुछ तब तक बहुत ही अच्छा था जब तक कि उसकी माॅं उसके पिता और उसके बीच थी । इस कड़ी के बीच से निकलते ही बाप - बेटे में दूरियां आने लगी ।
माॅं द्वारा सिखाएं उसूलों और सिद्धांतों की पिता की जिंदगी में कोई भी अहमियत नहीं थी । सुजाॅय के लिए माॅं की सीख अनमोल थी जिसकी उसके पिता की जिंदगी में अहमियत फूटी कौड़ी के समान थी ।
' कही मैं दिन में ही सपने तों नहीं देख रहा । पूरे पाॅंच सालों के बाद तुम्हें यहाॅं देखकर प्रसन्नता का आभास हो रहा है । तुम जैसा जिद्दी और अहंकारी बेटा आज अपनी जिद और अहंकार छोड़ अपने पिता के सामने खड़ा हैं तों बात जरूर ही गंभीर होगी ।'
सुजाॅय के पिता ने कहा ।
वातावरण में मौन फैला रहा । अपने दोस्त के लिए मुझे अपने डैडी के सामने झुकना भी पड़े तों मैं झुकने से बाज़ नहीं आऊंगा ।' मन में सोचते हुए सुजाॅय ने अपने पिता से कहना शुरू किया :- " मुझे पाॅंच लाख रुपए की जरूरत आपके पास खींच लाई है । इन रूपयों को मैं जल्द से जल्द आपको लौटाने की कोशिश करूंगा । "
' मैंने तुमसे कहा था कि यह रूपएं - पैसे ही एक दिन मेरे पास तुम्हें लेकर आएंगे और देखो ! आज वह समय आ चुका है । मेरी कही भविष्यवाणी आज सत्य साबित हो गई है । मैं तुम्हें पाॅंच लाख नहीं बल्कि दस लाख रूपया देने के लिए तैयार हूॅं लेकिन मेरी एक शर्त है जिसे तुम्हें पूरी करनी होगी ।' सुजाॅय के पिता ने कहा ।
क्रमशः
" गुॅंजन कमल " 💓💞💗
Sachin dev
06-Dec-2021 10:22 PM
Very beautiful 👌
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Seema Priyadarshini sahay
06-Dec-2021 06:06 PM
शुरुआत से ही बांधकर रखने की क्षमता होती है आपकी कहानियों में मैम
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Gunjan Kamal
02-Mar-2022 07:39 PM
धन्यवाद मैम🙏🏻
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Chirag chirag
02-Dec-2021 09:12 PM
बहुत सुंदर
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