Teena yadav

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दिशा

प्रोफेसर बनने का यह भी फायदा है कि यदा कदा लोग अपने बच्चों की शिक्षा संबंधी सलाह मशविरा करने भी आ जाते हैं। इस बार दिल्ली से पुणे गया तो यही हुआ, पर इस बार तो मामला अपने ही एक संबंधी की एक ऐसी प्यारी सी बिटिया का था जो खुद और उस की बड़ी बहन भी मुझे इतना प्यार करती हैं जितना वे शायद अपने मम्मी पापा से भी न करती हों। मैं पुणे स्टेशन के नजदीक ही एक स्टेशन पिंपरी में अक्सर ठहरता हूँ जहाँ मेरी ससुराल है। अक्सर सोचा करता था किसी गेस्ट हाउस में रुक कर दो तीन दिन रोज ससुराल में मिलने जाया करूँ पर वे नहीं मानते, सो उनकी कोठी में ही ठहरता हूँ।


पर निधि तो मेरी ससुराल से कोई संबंध नहीं रखती। वह तो मेरी ददिहाल के किसी कजिन वजिन की बेटी है। निधि और नमो, यानी नम्रता, दोनों से मेरा बेहद लगाव है। दोनों दो तीन साल पहले यहीं, पुणे के किसी फंक्शन में पहली बार मिली थीं। पता चला कि वे तो मेरे ही एक दूर के कजिन वरंदानी की बेटियाँ हैं। मिलते ही लगाव सा हो गया। तब निधि तो छोटी थी, सेवेंथ में पढ़ती थी। नमो ट्वेल्थ में थी। दोनों से पहेलियाँ पजल वजल पूछते पूछते दोस्ती सी हो गई। फिर देखते देखते दोनों फेसबुक पर भी मेरी दोस्त तो चैटिंग और ई-मेल पर भी मेरे साथ। कई बार दोनों मिल कर मोबाइल पर काफी देर बातें करतीं - 'अंकल कैसे हो? पुणे कब आ रहे हो? दोनों आप के बिना रह नहीं पातीं अंकल, प्लीज जब भी टाइम मिले, पुणे चले आया करो। हम आप के इंतजार में रहती हैं।' निधि कहती - 'आंटी को भी लाया करो न अंकल। वो भी तो प्रोफेसर हैं, आप ही की तरह, यानी इक्नॉमिक्स की।' मैं भी कहता - 'अब तो मेरे चार बच्चे हो गए हैं। मेरा बेटा अभिषेक, बिटिया कशिश, और तुम दोनों!'

वरंदानी की पत्नी भी कहती - 'दोनों आप से खूब घुल मिल गई हैं। अक्सर आप के बारे में बात करती हैं। मैं तो कहती हूँ, आप दोनों मियाँ बीवी प्रोफेसर हैं, दोनों की पढ़ाई के फैसले भी आप ले लिया करना।' वरंदानी से बात करो तो बड़ी खुनक सी है उसकी बातचीत के अंदाज में, जरा व्यस्त भी रहता है, हालाँकि नोट गिनने में। घासलेट का व्यापारी है, घासलेट के इकट्ठे कुछ पीपे मँगा कर दुकानों पर डिस्ट्रीब्यूट करा देता है और लात लंबी कर के सो जाता है। अच्छा व्यापर चलता है। खूब खाता पीता परिवार है। पर इस बार देखूँ तो निधि बिटिया थोड़ी उदास सी भी है। दरअसल ससुराल की कोठी में कोई पत्रिका वत्रिका पढ़ कर सो जाता हूँ और सुबह छह बजे ही उठ कर पैंट शर्ट में बाहर वाकिंग करने निकल आता हूँ। इधर निधि के घर के सामने ही बहुत विशाल सा पार्क है, बहुत सुंदर भी। सुबह भीड़ पार्क के अंदर उमड़ी सी रहती है, लोगबाग सैर करते हैं या जॉगिंग वॉगिंग, या व्यायाम। कुछ सुसता कर गप्पें मारने वाले भी हैं। उसी विशाल से पार्क में घूम रहा था कि पीछे से टप् टप् टप् टप् कर के तेज तेज दौड़ती कोई लड़की आकर एकदम हाँफती हाँफती मेरे साथ चलने लगी, फिर हँसने लगी। मैं चकित - 'अरे, निधि बिटिया। यह तो बहुत अच्छा हुआ। सैर करने को तुम जैसी बढ़िया बिटिया साथ मिल जाए तो क्या बात है।'

निधि हाँफते हाँफते हँस पड़ी थी - 'कब आए अंकल आप? मैंने आप को दूर से देखा तो इतनी खुश हुई ना, कि मैं क्या बताऊँ।'

- ह्म्म्म। अंकल ज्यादा खुश हैं कि बिटिया?'

- 'बिटिया।'

- 'नहीं अंकल।'

- 'बिटिया।' कह कर लगा उसका हाँफना थम चुका है और उसके साथ मैं भी हँस दिया। पर तभी वाकिंग करते करते निधि बेटी उदास सी भी हो गई। बोली - 'अंकल, मैं न, इन दिनों बहुत पजल हूँ।'

निधि इस वर्ष टेंथ की परीक्षाओं के कगार पर थी जबकि नमो का तो किस्सा ही अलग। उस ने अच्छी भली माईक्रो-बायोलॉजी में ऐडमीशन ली। ग्रैजुएशन भी किया और आगे पढ़ने से पहले ही प्यार भी कर बैठी, बल्कि प्यार तो पढ़ाई के दौरान ही कर बैठी थी सो चटपट शादी कर के दुबई भी चली गई! मैं तक उस शादी में नहीं पहुँच सका था। दुबई से ही चैट करती नमो बोली थी - 'अंकल, कुछ अर्जेंट सी मैरेज करनी पड़ी। अखी (अखिलेश) के पापा को जल्दी थी। फाइनल के इग्जाम्स भी चल रहे थे और बीच में ही मेरी शादी!' ...पर दरअसल यह अर्जेंसी क्या थी यह मेरी पत्नी आशिमा को पता चल चुका था। आशिमा से भी नमो ने चैट की थी जो आशिमा ने बाद में मुझे पढ़ने को दिखा दी तो मैं चकित था। आशिमा ने पूछा था - 'कैसे हुआ यह सब? कोई प्रीकॉशन नहीं लिया तूने?

- 'नहीं आंटी। मुझे लगता ही नहीं था कि ऐसा होगा। पर सब कुछ हो गया...'

- 'कहाँ हुआ। कहाँ गए थे अखी और तुम?

- 'घर में ही आया था अखी। मम्मी पापा निधि को ले कर मुंबई गए थे वाटर वर्ल्ड देखने, मैं अकेली ही थी और अखी आ गया।'

- 'मम्मी पापा वाटर वर्ल्ड देखने गए थे और अखी आ कर इस बेवकूफ लड़की के पूरे कैरियर पर पानी डाल गया... बुद्धू लड़की।' मैं ने आशिमा से खिन्न हो कर कहा तो आशिमा भी बोली - 'लड़कियाँ भी कैरियर को ले कर सीरियस नहीं रहतीं। कुछ होने की नौबत ही आ गई तो कुछ प्रीकॉशन व्रीकॉशन रख के सब कुछ करती। पिल्स विल्स...' पर मेरे मन में एक और ही खयाल आ गया, जो मैंने झटक दिया। मुझे अचानक वरंदानी का खयाल आ गया, जाने क्या कर देता वह, अगर नमो की मम्मी उसे भी सब कुछ बता देती, और किसी प्रकार मुक्ति करा कर नमो अपना कैरियर बचाने का सपना देखती!

मुझ से नमो चैट में बोली थी - 'अखी (अखिलेश) के पापा को जल्दी थी, क्योंकि वे दुबई में बिजनेस पहले से ही कर रहे थे अंकल, सो उन्होंने पुणे आ कर फटाफट शादी भी माँगी और इग्जाम्स के बाद फटाफट दोनों को दुबई भी ले आए!'

चैट में मैंने इतना ही कहा था - 'प्यार अच्छी बात है पर पढ़ाई में प्यार विलेन बन गया न बुद्धू लड़की! कितनी उम्मीदें थी तुम में! कि माईक्रो-बायोलॉजी में ही शाईन करोगी और कोई ऊँची हस्ती बनोगी। बुद्धू, मेरी कट्टी तुझ से।'

- 'हँ - अंकल। पर कोशिश करती हूँ। अभी तो 'कैरींग' हूँ, पापा (ससुर) ने यहाँ अपनी ही फर्म में जॉब पर भी लगा दिया है। फिर कभी पढ़ने का मौका मिल सका तो...'

बहरहाल, मैं अपनी सोच से निकल निधि बिटिया की तरफ लौटा। उसकी पीठ को घेर कर कंधे पर हाथ रख कर चलता हुआ बोला - 'बता बिटिया, ऐसी क्या बात है जिससे मेरी बहादुर बिटिया घबरा गई है?'

निधि बोली - 'पापा न, मेरे पीछे पड़े हैं, कि मैं जब टेंथ पूरी करूँ तो साइंस लूँ। वे कहते हैं, किसी भी कॉलेज में दिलवा देंगे।'

- 'फिर? तुम्हारी क्या समस्या है?'

- 'पापा कहते हैं ट्वेल्थ कर के किसी भी हालत में इंजिनीयरिंग में जाना है। वे नमो के भी पीछे पड़े थे पर उसका काम नहीं बना तो अब मेरी जान के पीछे पड़े हैं। क्या इंजिनीयरिंग के सिवाय दुनिया में कुछ है ही नहीं अंकल?'

- 'ह्म्म्म। देश चला रहा है एक अर्थशास्त्री, और लोगों को लगी है इंजिनीयरिंग करने की। कोई हम मियाँ बीवी की तरह इकॉनोमिस्ट भी बनेगा इस देश में!' मैं थोड़ा चिंतन में आ जाने का सा ड्रामा भी करने लगा, निधि से बोला - 'ट्वेल्थ के बाद तुम क्या करना चाहती हो?'

- 'अंकल...' फिर निधि सहसा शर्मा गई। हँसने सी भी लगी। फिर संकोच सा करती मेरी तरफ देख मुझे अपने निकट आने का इशारा किया तो मैंने चलते चलते चेहरा झुका कर अपना कान एकदम उसके मुँह के नजदीक कर दिया। बोली - 'अंकल मैं न पहले पता है क्या करना चाहती थी?'

हम एक मोड़ पर दाहिने मुड़ने से पहले रुक गए ताकि निधि बिटिया की बात पूरी हो सके। निधि कतरा सी रही थी अपनी बात कहने को, पर मैंने कहा - 'बता न बुद्धू लड़की!'

- 'मॉडलिंग!...' कह कर वह शर्मा कर हथेलियों से अपने होंठ ढक कर खुद पर ही हँसने सी लगी। बोली - 'एक दो स्टूडियो में कुछ लड़के लड़कियाँ गए थे। हमारे स्कूल में ही सर्कूलर आया था। तीन सौ रुपये देने थे सो मेरे लिए कोई प्रॉब्लम नहीं थी देना। पर वहाँ जो मॉडलिंग का डायलॉग मुझ से कहलवाया, बताऊँ? पर अंकल आप हँसना नहीं प्लीज।'

- 'नहीं नहीं तुम करोगी तो क्यों हँसूँगा बिटिया पर।' मैंने इतना बना बना कर कहा कि खुद अपने ही स्टाइल पर हँसी आ गई। मोड़ रेलिंग के पास ही था, आते जाते लोगों से बच कर हम थोड़ा रेलिंग के ठीक साथ आ खड़े हुए। निधि बिटिया ने अपने सफेद टॉप के गले के किनारे को अँगूठे व अँगुली की मदद से थोड़ा बाहर किया जैसे पसीना आने की ऐक्टिंग कर रही हो। फिर सहसा उसका चेहरा सामने एक झाड़ी पर फोकस कर के खिलने सा लगा, डायलॉग बोली - 'आ हा, क्या मस्त हवा है! जैसे स्वर्ग हो स्वर्ग!' मैं समझ गया, किसी कूलर वूलर के विज्ञापन में बोलने का टेस्ट दे रही होगी बिटिया। बोली - 'अलग अलग कैंडीडेट्स से न अलग अलग कंपनियों के डायलॉग कहलवाए। एक समय पर एक जना जा रहा था।' फिर हम दोनों चलने लगे। पर इधर निधि बिटिया से मैं बातें कर रहा हूँ मॉडलिंग की, उधर मेरी कल्पना में आ रहा है घासलेट का व्यापारी वरंदानी। थोड़ा सकुचाता सा मैं बोला - 'बिटिया, मॉडलिंग में तो स्विमिंग सूट वगैरह भी पहनवाते हैं न कभी कभी! तुम...'

सुन कर निधि बिटिया हँस पड़ी, बल्कि खूब उन्मुक्त कहकहा सा लगाती दो तीन कदम आगे बढ़ गई। मेरे ठीक सामने खड़ी हो गई बिटिया, जैसे रास्ता रोकेगी। पर अब तो वह हँसते हँसते लोट पोट सी हो रही थी। बोली - 'अंकल, हम सारे फ्रेंड जब टेस्ट दे के लौट रहे थे न, तब मेरे दोस्त पता है क्या कह रहे थे?'

- 'क्या?' मुझे जिज्ञासा भी खूब हो रही थी और मजा भी खूब आ रहा था। बहुत मस्त सी हवा थी, जैसी बिटिया को कूलर के सामने खड़े होते लग रही होगी वहाँ। निधि बोली - 'सब कह रहे थे, तुम स्विमिंग सूट पहन कर टी.वी. पर नजर आओगी न, तुम्हारे पापा जमीन में खड्डा खोद कर तुम्हें जिंदा गाड़ देंगे जिंदा! ह ह ह ह...' वह उन्मुक्त सी बालिका फिर हँसी को नियंत्रण में कर मेरे साथ हो ली। फिर बिटिया सहसा सामने की ओर देखती किसी सोच में सी पड़ गई जैसे फिलॉसाफर सी बन गई हो। जैसे कुछ और भी बताना चाहती हो। पर मेरी ओर देखे बिना धीमी धीमी आवाज में बोली - 'अंकल, एक लड़की है ट्वेल्थ की। बड़े घराने की है। खूब आजाद खयालों की। उसे न वहीं से कॉल भी आया। और उसे जिस कंपनी ने कॉन्ट्रेक्ट दिया उसने कैमरा के सामने बिकिनी पहना कर भी कुछ शॉट लिए उसके। ऐसा कोई कोई डेयरिंग लड़की ही कर सकती है न अंकल? उसकी मम्मी साथ गई थी...' फिर निधि उस खयाल को झटक कर सहसा मेरा हाथ अपने हाथ में पकड़ कर आगे को झुलाती खूब मस्ती में सी चलने लगी। फिर बोली - 'मैंने इसीलिए न, मॉडलिंग का आइडिया तो ड्रॉप कर दिया है अंकल। अब मैं सोचती हूँ फैशन डिजाईनिंग में जाऊँ।'

- 'वाऊ! यह तो बहुत अच्छा आइडिया है। अपनी कशिश बिटिया पता है क्या बनना चाहती है?'

- 'क्या?' शायद निधि को महसूस हुआ कि इतनी देर में उसने मेरे बेटे बेटी के बारे में तो पूछा नहीं। बेटा तो इंजिनीयरिंग कर के इंग्लैंड चला गया है एक अपॉइंटमेंट ले कर और कशिश बिटिया जा रही है ट्वेल्थ में। मैंने कहा - 'अब कशिश बिटिया ने हम दोनों मियाँ बीवी को असमंजस में डाल दिया है, कि मैं पापा पायलट बनूँगी पायलट!'

निधि प्रसन्न सी बोली - 'हा! पायलट!! आजकल तो लड़कियाँ भी जा रही हैं अंकल! हालाँकि बहुत कम हैं अभी'...

- आ रही हैं। पता है, एक दो साल पहले जब इंटरनैशनल वूमेन'स् डे था तब एक हवाई जहाज नई दिल्ली से ग्यारह देशों के ऊपर से उड़ता हुआ न्यू यॉर्क पहुँचा था। और उसमें दो पुरुषों को छोड़ बाकी सेंट परसेंट इंडिया की महिलाएँ थीं। टी.वी. पर देखा नहीं था बुद्धू तू ने?

- 'ह्म्म्म। देखा होगा। ध्यान नहीं।'

- 'पर ज्यों ही बिटिया ने बात कही थी न कि मैं पायलट बनूँगी, तब पहले तो हम दोनों प्रोफेसर मियाँ बीवी घबरा कर पता है क्या सोचने लगे?' कह कर मैं निधि के चेहरे की तरफ देखने लगा कि उसे जिज्ञासा होती है कि नहीं। एक मोड़ पर फिर दाएँ मुड़ते मुड़ते निधि मेरी तरफ ही देखती जा रही थी। मैंने कहा - 'हम सोचने लगे कशिश पायलट बनी और प्लेन हाईजैक हो गया तो? हा हा हा हा'...अब की बार खुद पर ही उन्मुक्त हँसी हँसने की बारी मेरी थी। खुद ही उलट पलट सा रहा था। फिर बोला - 'फिर हमें अगले क्षण खयाल आया कि प्लेन तो तब भी हाईजैक हो सकता है जब वह फ्लाइट से कहीं जा रही हो! तो क्या हम उसे कहीं जाने ही नहीं देंगे! फिर हमने ने सोच लिया है कि बिटिया को ट्वेल्थ कर लेने दो। तब तक हम पता कर लेंगे, पायलट बना कैसे जाता है। क्या क्या करना पड़ता है,' और धीमे से निधि बिटिया के कान के पास मुँह ले जाता बोला - 'यानी क्या क्या पापड़ बेलने पड़ते हैं!' निधि हँस दी। मैंने बात आगे बढ़ाई - 'जरूर, बहुत मजबूत शख्सियत चाहिए होती होगी। अपनी कशिश बिटिया तो है भी स्पोर्ट्स चैंपियन अपने स्कूल में। फुटबाल टीम की तो कैप्टन भी रह चुकी है। पर देखो,' मैंने जरा मस्ती में सा आ कर कहा, जैसे बिटिया प्लेन उड़ा रही हो...

खूब घूमे दोनों, और थोड़ी जॉगिंग भी की। जॉगिंग में मैं तो थोड़ी देर बाद जा कर एक बेंच पर बैठा और निधि बिटिया खूब जॉगिंग करती रही। मेरे सामने से गुजरते हुए उसने हँस कर एक बार अपनी दोनों बाँहें पंखों की तरह खोल भी ली और हवाई जहाज की तरह उड़ती सी भी गई। और एक जगह तो डरावने तरीके से रुक कर अपनी बाईं बाँह से राइफल सी बना कर चारों तरफ सब को डराने सी लगी और हँसती हुई दूर भाग गई जॉगिंग करती। फिर दोनों धीरे धीरे चल पड़े बाहर की ओर। बाहर आते ही एक पतली सी सड़क के किनारे खड़े थे दोनों और दोनों तरफ ऑटो और मोटर साइकलें या स्कूटर वगैरह आ जा रहे थे। और इस पतली सी सड़क के उस तरफ सामने ही थी 'अलका अपार्मेंट्स' की वह मीनार सी सोसाइटी बिल्डिंग, जिसके फिफ्थ फ्लोर पर है वरंदानी साहब का शानदार फ्लैट। अंदर से इतना सजा रखा है जैसे किसी राजा का महल हो महल!

लिफ्ट के बाहर तक पहुँचे और उस बरामदे में चारों तरफ नजर दौड़ाई। कुछ कारें खड़ी थीं। निधि बोली - 'अंकल, वो अपनी कार।' सामने ही एक नई बलीनो कार खड़ी थी जो शायद सात आठ लाख की आती है। निधि बोली - 'पापा सुबह स्कूटर पर ही जाते हैं कहीं और बाहर की बाईपास सड़क के नजदीक कहीं जॉगिंग कर के अब लौटते ही होंगे।'

वह ग्रिल वाला लिफ्ट ज्यों ही खुला, निधि मेरे साथ कदम आगे बढ़ाती बढ़ाती बोली - 'अंकल,' फिर सहसा चुप हो कर उसने ग्रिल ठीक से बंद किया और लिफ्ट चलने लगी। मेरे कान के पास मुँह ला कर फुसफुसाती बोली - 'अंकल, सिर्फ न, मेरे पापा के मन से इंजिनीयरिंग का वह भूत हटा कर जाना। वो समझते हैं इंजिनीयरिंग से बड़ा कुछ है ही नहीं दुनिया में। बस एक इंप्रेशन सा बैठा हुआ है।'

मैंने कहा - 'तुम्हारे पापा मुझे ही भूत बना दें तो!' निद्धि उन्मुक्त सा कहकहा लगा कर हँसने लगी और फिफ्थ फ्लोर पर लिफ्ट खोल दी उसने।

निधि की मम्मी किचन से मुस्कराती हुई निकली। बोली - 'मैं न खिड़की से ही देख रही थी कि निधि बिटिया किसी के साथ आ रही है। इतनी ऊपर से पहचानना मुश्किल पर मुझे समझते देर नहीं लगी कि दिल्ली से आप ही आ गए होंगे। दिल्ली में कैसे हैं सब?'

मैंने कहा - 'सब ठीक। आशीर्वाद है आपका।'

वरंदानी ने पहली बार पत्नी से इंट्रोडक्शन कराया था तो बोला था - 'ये हैं मिसेज वरंदानी।'

मैंने पूछा था - 'पर नाम क्या है?' वरंदानी बोला था - 'बस मिसेज वरंदानी और क्या।' तब तो पत्नी भी साथ थी और यहाँ इस फ्लैट में आई हुई थी। पत्नी मुझ से बोली - 'दया नाम है। दया वरंदानी।' पत्नी ने ऐसे कहा जैसे नाम बताने का रिवाज केवल महिलाओं महिलाओं के बीच ही होता है, बाकी सब के लिए तो वह मिसेज वरंदानी है बस।

वरंदानी थोड़ी ही देर में आ गया था। इतनी देर में तो हम तीनों मिल कर एक कहकहा भी अधूरा सा ही मार सके थे। मैंने उठ कर तपाक से हाथ मिलाया। वरंदानी ने भी उतनी ही तपाक से हाथ मिलाया और कहा - 'कब आए? मिसेज कहाँ है?'

- 'मिसेज यानी आशिमा? आशिमा इस बार नहीं आई। मैं ही आया हूँ। इस तरफ पूना यूनिवर्सिटी में एक सेमिनार में लेक्चर था मेरा।' वरंदानी ने कहा - 'कैसा चल रहा है, आजकल का एजूकेशन सिस्टम?'

अगर वरंदानी पूछता 'कैसा चल रहा है आजकल का बिजनेस संसार' तो स्वाभाविक लगता, पर पूछ रहा है 'कैसा चल रहा है आजकल का एजूकेशन सिस्टम'! लगा जैसे इन दिनों बच्चों के भविष्य को ले कर खूब चिंतित है वरंदानी। मैंने कहा - 'हमारी प्रोफेसर कॉलोनी में न, सच बताऊँ, लड़कियाँ बहुत होशियार हो गई हैं। कशिश मेरी बेटी पायलट बनना चाहती है...'

- 'पायलट?' वरंदानी चौंक पड़ा।

- 'हाँ हाँ। बनाएँगे न हम उसे!'

- 'पायलट!' शुक्र कि दया जी तब तक एक ट्रे में चाय ले आई। वर्ना वरंदानी की वह चौंकाहट जाने कितनी देर और झेलनी पड़ती। वह अपनी चौड़े पहुँचों वाली सफेद नेकर व सफेद टी शर्ट में पसर कर सोफे पर ऐसे बैठ गया था कि दोनों घुटने एक दूसरे से काफी दूर फैला दिए थे। टी शर्ट पर लिखा था - 'बिलीव मी। आइ बिलीव यू।' तब तक दया जी ने क्या किया कि ट्रे को जरा बीच की टेबल पर ठीक से रखने के लिए आगे बढ़ते बढ़ते एक हाथ नीचे कर के उसके एक घुटने को प्यार से आगे धकेल सा दिया ताकि घुटने अधिक दूर न हों, और मुस्करा पड़ी। उसने ट्रे रख दी तो मैंने कहा - 'हमारे फ्लैट वाली लाइन में एक से बढ़ कर एक तेज तरार और ब्रिलियंट लड़कियाँ हैं। बहुत मॉड कपड़े भी पहनती हैं और योग्यता भी है। एक लड़की पाँच साल का वकालत का ही इंटीग्रेटेड कोर्स कर रही है, सीधे ट्वेल्थ के बाद। एक चली गई है डेंटिस्ट बनने। एक कंप्यूटर ऐप्लीकेशंस में मास्टर करने तक पहुँच गई है।'

वरंदानी बोला - 'हाँ हाँ। लड़कियों को वही करना चाहिए जो उनका दिल करे।' उसने जल्दी से 'हाँ हाँ' ऐसे कहा था जैसे मेरी बात को ब्रेक लगाना चाहता हो। मैंने कहा - 'एक तो फैशन डिजाइनिंग कर रही है। कैसा है कोर्स?'

- 'बहुत अच्छा है। यहाँ भी दो लड़कियाँ कर रही हैं।'

मौका अच्छा था। पर जैसा मैं निधि से हँस कर कह रहा था, वही हुआ। फैशन डिजाइनिंग वाली मेरी बात सुन कर निधि ही सब से अधिक कांशस हो गई होगी, यह मैंने भी महसूस किया। पर वरंदानी इतना गर्म हुआ कि दया को किचन से आना पड़ा। पर आगे बढ़ने से पहले ही जानने की जिज्ञासा में बेचारी दरवाजे पर टँगी सी खड़ी रह गई। मैंने कहा सिर्फ इतना था - 'निधि बिटिया को इंजिनीयरिंग क्यों करवाना चाहते हो वरंदानी? न वह मैथ्स समझेगी न फिजिक्स। सीधे एलेवेंथ में ही आर्ट्स सब्जेक्ट ले लेने दो। इंग्लिश के साथ साथ और जो भी और सब्जेक्ट्स लेना चाहे ले ले। हिंदी अच्छी लगे तो हिंदी ले ले। ट्वेल्थ के बाद कह रही है फैशन डिजाइनिंग...।'

बस, मेरा वाक्य अधूरा ही रह गया कि वरंदानी गर्म सा हो गया, बोला - 'अपने बेटे को आपने बनाया इंजिनीयर। और मैं पहली बेटी को भी इंजिनीयर नहीं बना सका। अगर मेरी बेटी इंजिनीयर बने तो आप को तकलीफ क्या है भाई? रिश्तेदारों में इतनी जेलसी होगी, मुझे तो पता ही नहीं था, कोई तो चाहता ही नहीं कि रिश्तेदारों के बच्चे भी कुछ करें। और आप दिल्ली से आ गए हो यहाँ मेरी बेटी को पट्टी पढ़ाने कि बेटी, तुम बाप की तो सुनो मत, बस जैसा मैं कहूँ, वैसा कर के बर्बाद होती रहो। इंजिनीयर मत बनो। हुँ...'

दया भी स्तब्ध थी और मैं भी। न कभी खयाल न ख्वाब। वरंदानी इतना गर्म होगा, यह मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। अगर पत्नी आशिमा साथ होती, तो सचमुच उसे बहुत दुख होता। बहरहाल, दया ने आ कर उन्हें पीछे पीठ पर हल्का सा टोहका मारा, मानो कह रही हो - 'घर में आए हुए व्यक्ति से ऐसे बात करते हैं क्या!' पर मैं और भी अधिक हैरान यह देख कर हुआ था कि निधि बिटिया उसी दम, पिता के चिल्लाने वाले क्षण ही उठ कर अपने रूम में चली गई थी। अंदर अपने पलंग पर उल्टी लेट कर सुबकने लगी थी। मैं तो तेजी से उठ कर जाने से पहले क्षण भर दरवाजे पर खड़ा हुआ था और निधि माँ से कह रही थी - 'पापा को ऐसे नहीं करना चाहिए... अंकल के साथ कैसे बिहेव कर रहे हैं...' बहरहाल, मैं तो चला आया दिल्ली। आ कर आशिमा को सारा हाल बताया। आशिमा बोली थी - 'पेरेंट्स के मन में न, यही असुरक्षा बैठी रहती है कि जो हम सोच रहे हैं, कहीं दूसरे रिश्तेदार जेलसी में नुकसान न पहुँचा दें। फिर उन्हें यह भी लगता है कि जो कुछ वे बच्चे के लिए सोच लें कि सही है, वही सही है और कुछ नहीं। पर बच्चे को खुद अपना डिसीजन भी तो लेने दो!'

मैंने कहा - 'अभी बच्चों की चॉयस को स्वतंत्र रूप देने का कल्चर आया ही नहीं।' पर मैं छह आठ महीने बाद ही फिर जब पुणे जाता हूँ, तो स्थिति बदल चुकी है। दिल्ली से पुणे, पुणे से पिंपरी, जैसे हमेशा जाता हूँ। अब की बार आशिमा भी साथ है तो बिटिया कशिश भी। एक शादी है आशिमा के मायके की तरफ। वो लोग वरंदानी को जानते हैं सो शादी की भीड़ में निधि भी मिल जाती है। खुद ही पास आती है। बहुत डिप्रेस सी है। कह रही है - 'मैं क्या करूँ अंकल। पापा ने पता है क्या किया? टेंथ के बाद सीधे ही मुझे डिप्लोमा में धकेल दिया कि बाद का क्या भरोसा। कोई और ही शनीचर बीच में पड़ जाए तो। कहने लगे डिप्लोमा कर के सीधे इंजिनीयरिंग के सेकंड ईअर में ऐडमीशन ले लेना या ए.एम.आई.ई. के पेपर दे देना। पर बनना तुझे इंजिनीयर ही है।' पिता के ऑर्डर से ही बच्चे सब कुछ बनें, यह भी एक नई जानकारी मिली मुझे। आशिमा निधि से बात करने लगी तो निधि बोली - 'आंटी, मैं क्या करूँ। ब्लैकबोर्ड पर हो क्या रहा है, कुछ समझ नहीं आता। लंबी लंबी ईक्वेशनें हैं। मेरा ध्यान ही नहीं लगता!' मैंने कहा - 'घबराओ मत। तुम्हारे पापा उस समय समझेंगे...' आगे सूझ नहीं रहा था कि क्या कहूँ। मैं कहना चाहता था कि 'जब तुम फेल हो जाओगी,' पर ऐसा कहने की भी विवेक इजाजत नहीं दे रहा था। बिटिया ने जो लिया है, उसी में पास होती रहे, ऐसी समझौतावादी सोच पता नहीं कहाँ से उस क्षण मुझ में आ गई। पर कितनी खुशनसीबी है निधि की कि वह मामला उसके घासलेटी पिता की सूरत देख कर ही मुझे सुलझता सा नजर आने लगा। जब वरंदानी कहीं से प्रकट हो कर एकदम पास आया तो तपाक से हाथ मिलाया और लगा कि निधि जिस डिप्रेशन से बात कर रही है, वह उसके चेहरे पर भी व्याप्त है। इस बार भी उसकी इंपोर्टेड टी शर्ट थी और बहुत उम्दा सी पैंट। उसका पेट ऐसे बाहर निकला हुआ था जैसे कन्वेक्स मिरर हो कोई। बाल बढ़िया बना लाया था वरंदानी। दया भी आ गई और मैं उसकी टी शर्ट पर लिखा पढ़ने लगा - 'ट्रस्ट मी, आइ डू इट एवरीडे।' वरंदानी ने क्या किया कि बच्चों को पीछे कर के मुझे एक तरफ ले जा कर खड़ा कर दिया। दया वहाँ भी आ गई और मेरे चेहरे की तरफ देखने लगी जैसे मैं वरंदानी के चेहरे का डिप्रेशन उतारने वाला कोई जादूगर वादूगर हूँ। वरंदानी फुसफुसा कर बोला - 'निधि क्या कहती है नहीं हो रही न डिप्लोमा उस से?' मैं कहना चाहता था - 'यह तो आप के घर का मामला है वरंदानी, मैं कौन होता हूँ जेलसी में कुछ कहने वाला।' पर मैं इतना ही बोला था - 'कर लेगी क्या तकलीफ है। आखिर तो इंजिनीयर ही बनाना चाहते हो न?' नतीजा यह हुआ कि वरंदानी मुझे आपादमस्तक देखने लगा और मैं उसे। उसे भ्रम हुआ होगा कि मैं शायद बदल चुका हूँ। पर बदल असल में वह गया था। बोला - 'निधि तो पहले सिमिस्टर में ही कुछ पेपरों में फेल हो गई है।'

- 'फिर पढ़ लेगी क्या है। दोबारा...'

- 'तुम अभी तक मेरे उस गुस्से को बुरा माने हो न, ठीक है। जाने दो बात।' पर फिर आशिमा आई तो उसने बात सँभाल ली थी और वरंदानी राह पर आ गया था। निधि ने एक प्यारा सा ई मेल भेजा था, कि पापा में वो चेंज आप ही ला सके अंकल। अब मैं डिप्लोमा फर्स्ट यीअर का कोई सिमिस्टर तैयार नहीं कर रही। अब पापा ने कह दिया है, मैं साल पूरा होते ही एलेवेंथ में जाऊँगी, और उसके बाद फैशन डिजाइनिंग...' फैशन डिजाइनिंग उसने ई मेल में ऐसी लय में टाइप किया था जैसे कोई गीत गा रही हो बिटिया। साथ ही टाइप किए अक्षरों में बहुत खूबसूरत एक दो मॉड से कपड़ों के डिजाइन भी बना दिए थे, जैसे उनके बीच कहीं से मुस्करा रही हो निधि बिटिया। उसकी आँखों में जरूर, अपना साल भर से पाला हुआ सपना तैर रहा होगा...

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