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माय आर्मी लव ♥️ ए स्पाई लव स्टोरी.....(भाग - 21)

भाग - 21


अभी तक आपने पढा कि राज दादू खुद आकर सबको शादी के बाद पूरी कहानी सुनाने की बात करते है। और सोने चले जाते है। सभी अपने अपने कमरो की ओर जाने लगते है।
स्नेहल जाते हुए एक नजर सुमेध को देखती है, जो उसे ही देख रहा होता है। 
नवनीत जा रहा होता है कि सुकून उसे पीछे से पुकारती है।
नवनीत पीछे मुड़ता है।
नवनीत " हा बोलो । कुछ काम था ?"

सुकून " तुम मुझसे नाराज नही हो क्या? क्या माफ कर दीये ?"

नवनीत सुकून के सामने खड़ा होता है और उसकी आंखो मे देखते हुए बोलता है " सॉरी सुकून, इतना गुस्सा होने के लिए। आज राज दादू का प्यार सुन समझ आया कि जरूरी नही सामने वाला हमे चाहे पर इसके लिए हम नाराज हो जायेंगे तो वो प्यार ही कैसा? तुम नही मान रही थी तो मुझे मनाना चाहिये था ऐसे गुस्सा नही होना चाहिये था "

सुकून " मुझे भी माफ कर दो। तुम तो प्यार ही जता रहे थे, मै बहुत बुरा बोली थी। क्या करु बस नाम ही सुकून है,लेकिन किसी का सुकून बन ही नही सकती "

नवनीत अचानक से "
एक बार मेरी नजरो से देखो 
कौन हो तुम ? 
तुम्हारे लिए तुम कुछ नही पर
मेरे लिए मेरा सुकून हो तुम ।।

सुकून नवनीत को देखने लगती है। अचानक से नवनीत को समझ आता है कि वो क्या बोल गया।
नवनीत " सो सॉरी। ये उस आलोक की वजह से हुआ। दिन भर शायरी करता रहता है। 

सुकून " कोई बात नही "

नवनीत " पर ये सच्चाई ही थी। "

सुकून " इतना कुछ होने के बाद भी तुम मुझसे प्यार...?"

नवनीत " छोड़ो इन बातो को जिसका कोई मतलब नही। आज से हम नही झगड़न्गे "

सुकून हाथ आगे बढा " हा आज से हम दोस्त "

नवनीत उसका हाथ पकड़ता है। और मुस्कुराता है। 
नवनीत " जाओ सो जाओ। नही तो सर जी आते ही होन्गे तुम्हे खोजने "

सुकून " मै मुद्रा, प्राजू और स्नेहल के साथ सोउन्गी। कल शादी है तो साथ मे ही तैयार होन्गे "

नवनीत सर हिलाकर जाने लगता है ।
सुकून " नवनीत.... सच मे माफ कर दीये न?"

नवनीत मुस्कुराते हुए " कोई शक?"

सुकून मुस्कुरा कर " नही "
दोनो अपने अपने कमरे मे चले जाते है।
इधर प्रविष्ठ रुम मे इधर उधर टेंशन मे घूम रहा होता है।
और सुमेध , नवनीत और आलोक उसे परेशान होकर देख रहे होते है।
आलोक " भाई कल तेरी शादी है जंग नही "

प्रविष्ठ " जंग से तो मै कभी न घबराऊ पर ,,, बड़ी घबराहट हो रही पहली बार शादी कर रहा हू न "

नवनीत " हा हम तो चार चार शादी करके बैठे है "

सुमेध " प्रविष्ठ कल तेरी शादी है इसे कोई नही बदल सकता। मुद्रा से प्यार करता है न ? और वो तुझसे । तो सब ठीक हो जाएगा "

प्रविष्ठ " मगर शादी के बाद मेरी कोई बात मुद्रा को पसंद नही आई तो ? अगर हमारे बिच झगड़ा हुआ तो ?"

सुमेध " आज राज दादू की कहानी से पता चला जहा प्यार हो वहा गुस्सा माइने ही नही रखती । बेफिक्र होकर सो जा "

प्रविष्ठ " वाह भाई कितना अच्चा सम्झाया "

आलोक " सुमेध ये बात तू समझा रहा ?"

सुमेध " हा क्युकी मुझे भी एहसास हो गया कि जो कर रहा था वो गलत था । मै अभी स्नेहल से बात करके आया ।"
और कमरे से बाहर चला जाता है।
प्रविष्ठ " कौन सी बात ? कैसी बात ?"

आलोक " आओ मै बताता हू "
और उन लोगो को सुमेध की बात बताने लगता है।
इधर स्नेहल अपनी तीनो दोस्तो के साथ बैठे बाते कर रही होती है कि सुमेध खिडकी से स्नेहल को बाहर आने के इशारे करने लगता है । स्नेहल उसे देख घबरा जाती है।
स्नेहल मन मे " ये रिश्ता तोडने की बात करेंगे । मुझे नही सुनना ये। और अगर सच्चाई पुछे तो ?"

सुमेध स्नेहल को बुला रहा होता है पर स्नेहल उसे अनदेखा कर दे रही थी। प्राजिका सुमेध को देखती है और बाहर आकर उसके कन्धे पर मारती है ।
प्राजिका " भाई क्या हो रहा यहा ?"

सुमेध " यू ही "

प्राजिका "ये आपका बौर्डर है जो निगरानी करने आये हो ?"

सुमेध " प्राजू स्नेहल को बाहर भेज। बहुत जरूरी बात करनी है !"

प्राजिका " तो मुझे क्या मिलेगा ?"

सुमेध " क्या चाहिये ?"

प्राजिका " मुझे भी आपके साथ कश्मीर चलना है "

सुमेध " पागल तू वहा रहेगी कहा ?'

प्राजिका " क्यू आपको घर नही मिलेगा ? नही तो छोटा होगा घर तो एक खरीद लेंगे न "

सुमेध " अच्छा देखते है "

प्राजिका " यस बोलिए यस "

सुमेध " ओके यस अब खुश?"

प्राजिका " बहुत खुश अभी लाती हू अपनी भाभी जी को "

और रुम मे आती है, जहा तीनो बाते कर रही होती है।
प्राजिका " सुकून चल न मेरे साथ पानी लेने जाना है "

स्नेहल " हा तो जा न "

प्राजिका " इतनी रात मे मै अकेले कैसे जाऊ ?'

मुद्रा " तू किसी को बस घुर दे तो वो मर जाए और तुझे डर लग रहा? और उपर से सबसे डरपोक लड्की को लेकर जा रही?"

प्राजिका " मेरी बात मानोगी तुम लोग या जिद्दी प्राजिका बनू ?"

सुकून " ये जिद्दी प्राजिका क्या है ?"

स्नेहल " अभी तुम नई हो तुम्हे नही पता । चल प्राजू मै चल रही "

और स्नेहल प्राजिका के साथ बाहर आती है। प्राजिका उसे छत पर लेकर आती है ।
स्नेहल " पानी यहा कैसे मिलेगा ?"

प्राजिका " पर यहा किसी की प्यास तो आपको देख के ही बुझेगी न "

स्नेहल देखती है तो सुमेध वही छत पर हाथो को बांधे खड़ा होता है ।

स्नेहल " प्राजू तू झूठ बोल कर लाई? तू मेरि दोस्त है न ?"

प्राजिका स्नेहल को सुमेध की ओर धक्का देकर " पहले भाई की बहन और तेरी चालू ननद हू "
और हँसते हुए निचे भाग जाती है। स्नेहल सुमेध की बाहो मे आ जाती है। वो सुमेध को अपनी घबराती नजरो से देखती है। सुमेध उसे ठीक से खडा करता है और उसका हाथ अपने हाथो मे लेता है। स्नेहल हैरानी से उसे देखती है। 
सुमेध " जानता हू घबराई हो तुम। बहुत परेशान किया हू न मै तुम्हे इन दिनो?"

स्नेहल " आ...आप नाराज नही है ?"

सुमेध " प्यार मे सिर्फ प्यार होता है नाराजगी,गुस्सा, जलन,नफरत के लिए जगह नही होती । आज ही समझ आया कि प्यार किसे कहते है ! "

स्नेहल सफाई देते हुए " मै सच मे आपको घटिया इन्सान नही समझी थी। बस मेरे अन्दर का एक डर निकल ही नही रहा है। जिसे बताने मे मै डर रही थी। पर अब समझ आया प्यार भरोसे पर टिका होता है। अगर ये बात जान आप मुझसे दूर भी हो गये तो भी मेरा प्यार थोडे कम होगा आपके लिए। "

सुमेध स्नेहल का हाथ अपने हाथ मे लेकर छत पर बैठ जाता है। बादलो के बिच से झाकता चांद और रात मे पसरी रौशनी। हल्की हल्की चलती हवाओ के बिच दोनो एक दुसरे के साथ थे।

सुमेध " प्यार करता हू। प्यार तुमसे किया हू और कोई भी चीज इस प्यार को कम कर दिया तो वो प्यार नही सिर्फ अट्ररैक्शन होगा। मै तुम्हे चाहता नही मै तुम्हारा होना चाहता हू। तन से नही पुरे मन से"

स्नेहल सुमेध के सिने से लग जाती है।
स्नेहल " सुमेध जी....अब मुझे भरोसा है आप हमेशा मेरे साथ रहेंगे। मै घबरा रही थी आपके पाआ आने पर क्युकी मै दुसरी स्नेहलता नही बनना चाह्ती। मै स्नेहल ही रहना चाह्ती हू '

सुमेध" कौन स्नेहलता?"

स्नेहल "मेरी माँ ... जिनकी एक गलति की वजह से आज तक नानू बात नही किये उनसे। "

सुमेध " कैसी गलति?"

स्नेहल " माँ पढने मे काफी अच्छी थी। नानू उन्हे शहर के कॉलेज पढने के लिए भेजे। सब लोग उनसे बात करते क्युकी वो काफ़ी ब्राइट स्टूडेंट थी। उन्ही के क्लास का एक लड़का  उनसे बात करता बहुत अच्छा दोस्त बन गया। और कब ये दोस्ती प्यार मे बदल गई माँ को पता भी नही चला। पर माँ प्यार मे इतनी पागल हो गई थी कि उस लडके के इरादे ही न समझ पाई। वो माँ के मन से नही तन से प्यार किया था। और जब कुछ महिनो बाद माँ को पता चला कि वो प्रेग्नेंट है। वो उस लडके से घर पर शादी की बात करने को बोली तो वो मुकर गया। माँ की पूरी दुनिया ही लुट गई। घर आई और नाना नानी को पता चला इस बारे मे तो नानी को हार्ट अटेक आया और वो चल बसी। रिश्तेदारो से बहुत ताने मिले। पर माँ उस बच्चे को जन्म दी। लेकिन नानू उनकी शादी करा दीये । "

सुमेध ये सच जान हैरान रह जाता है।
सुमेध " तो वो बच्चा .....उसका क्या हुआ ?"

स्नेहल रोते हुए " वो मै हू सुमेध जी। उनकी नाजायज औलाद।😨😢अब क्या अपनाएंगे मुझे आप। नानू मुझे अपने साथ रखे। शादी के चार पांच साल बाद जब माँ के पति को ये बात पता चली जब वो नानू के घर आये थे। वो बरदास नही कर पाए ये और घर मे रखी गन से खुद को गोली मार लिए।मै खिडकी से चिल्लाती रही मत करिये पर वो माँ और नानू के सामने ही सुसाइड कर लिए। इसिलिए मुझे गोलियो की आवाज से डर लगता है और बेहोश हो जाती हू। नानू आज भी माँ का और मेरा ख्याल रखते है। पर एक ही घर मे रहकर दोनो बात नही किये। और मुझे पढने के लिए बाहर भेज दीये,, पर मै चाह्ती हू मै नानू को हमेशा खुश रखू "

सुमेध " इतनी बडी बात तुम मुझे बताई नही ?"

स्नेहल " हा.... मुझे आपको पहले ही बता देना चाहिये था। माफ कर दिजीये अगर पहले ही बता देती तो इतने दिन तक आप इस प्यार को दिल मे जगाये न रखते । हो सके तो माफ कर दीजियेगा.... प्यार नही कर पायेंगे लेकिन कभी नफरत मत करियेगा सुमेध जी!"
और उठकर जाने लगती है कि सुमेध उसे अपनी ओर खीचता है और गले लगा लेता है। दोनो कुछ देर ऐसे ही खड़े एक दुसरे को मह्सूस करते है।
सुमेध स्नेहल की आंखो मे देखते हुए " प्यार तुमसे किया हू,तुम्हारे वजुद से नही ...! कुछ और भी बताना है बता दो। मेरा प्यार कभी कम नही होगा "

स्नेहल सुमेध को कस कर पकड लेती है। 
स्नेहल " लेकिन अगर मेरे इस राज के वजह से आपको कभी कोई नीचा दिखाया तो ?"

सुमेध " इस दुनिया मे कोई इन्सान परफेक्ट नही स्नेहल। और हम कुछ भी करे सबको बोलना ही है, तो क्या अपनी खुशी दूसरो के लिए छोड दे ? तुम्हे क्या लगता है तुम मुझसे दूर रहोगी तो दुनिया वाले सुनाना छोड़ देंगे? मै जिन्दगी भर तुम्हे दूसरो से बचा कर अपने पास रखना चाहता हू। मेरे पास  फैमिली होकर भी फैमिली नही। बस प्राजू और राज दादू है। बचपन से प्यार के लिए तरस रहा हू, तुम दोगी न मुझे प्यार?"

स्नेहल रोते हुए सर हिलाती है " हा "

सुमेध स्नेहल के आंसू पोछ " बस अब रोना नही है । अब हमारे प्यार मे कोई रुकावट नही, अब सिर्फ हमारा प्यार । चलो निचे चलते है "

दोनो हाथो मे हाथ डाले निचे आते है। और अपने अपने कमरे मे चले जाते है। स्नेहल मुस्कुराते हुए कमरे मे आती है तो प्राजिका,सुकून और मुद्रा उसे दात दिखाते हुए देखती है।
प्राजिका " कैसी रही मुलाकात ?"

मुद्रा " उफ्फ़ सुमेध जी से मिलने के बाद आपके चेहरे का नूर "

सुकून " क्या बात हुई?"

स्नेहल " बस जो भी बात हुई पता चल गया कि हम कभी अलग नही होन्गे "

और तीनो के गले लग जाती है। 
सुमेध गुनगुनाते हुए कमरे मे आता है तो प्रविष्ठ उसे घुरता है।
सुमेध " क्या?"

नवनीत " तू इसकी बहन को छोड़ने वाला है,ये बात जान ये नाराज है "

सुमेध " कौन बोला मै स्नेहल को छोड रहा? बल्कि मै तो प्यार भरी बाते करके आ रहा।चाहो तो स्नेहल से पुछ लो "

प्रविष्ठ " आलोक ही तो बताया। ए तू झूठ क्यू बोला? तू तो सन्त इन्सान है न ?"

आलोक " सुमेध तू ही तो रात मे मजनू जैसे दुखी होकर बोला था "

सुमेध " मै कब बोला?"

आलोक " अरे ? ऐसा मत कर ये दोनो पीटेंगे मुझे। मै तो दोस्त हू न तेरा "

सुमेध " कौन दोस्त ?"

और जाकर बेड पर लेट जाता है।नवनीत और प्रविष्ठ आलोक को घुरते है।
आलोक " क्या कर रहा भाई? सच बता नही तो मार डालेंगे ये । फिर मेरा भी शहीदो मे नाम आएगा,शहीद कैप्टन आलोक तिवारी। फिर मेरे तेरहवी की पुड़ी खाकर तुम लोगो का पेट खराब हो जाएगा "

प्रविष्ठ " ये कैसा श्राप है ?"

आलोक " मै सभ्य इन्सान हू ऐसे ही श्राप दूंगा "

नवनीत " ओह मतलब हम लोग असभ्य है? आज बताता हू यही खड़े खड़े ठोक दूंगा  " 

दोनो आलोक को मारने जाते है कि आलोक चिल्लाता है " ए भाई बचा ले '

सुमेध " ठीक है मै भी आता हू मारने " 

आलोक " एक मिनट अगर कोई मुझे हाथ लगाया तो....

तीनो " तो....'

आलोक " मै भाग जाऊंगा "
और भागने लगता है। तीनो लोग उसके पीछे जाते है।
चारो दौडते दौडते थक कर जमीन पर बैठ्ते है।
आलोक " ए सुमेध बता न पूरा सच "

सुमेध " हा दोस्तो, आलोक सच बोला। पर पूरी कहानी मै बताता हू "
और सुमेध पूरी कहानी बताया। 
नवनीत " बेचारी स्नेहल कितने दुख मे थी।"

आलोक " मुझे भी नही पता था ये बात "

प्रविष्ठ " पर अब तू मेरि बहन का ख्याल रखेगा। और खबरदार जो उसकी आंखो मे आंसू आए।
चारो एक दुसरे के गले लगते है।
सुमेध " कल मुझे शायद थोड़ी देर के लिए बाहर जाना होगा 

आलोक " क्यू ?"

सुमेध " मेरी बुआ की बेटी नव्या आ रही घर। तो उसे प्राजू बताई की हम लोग बनारस से घर जायेंगे तो वो भी बनारस घुमने आ गई । तो उसे होटल मे पहुचा कर आऊंगा शादी मे।फिर शादी के बाद उसे बनारस घूमा कर सब लोग घर जायेंगे।

प्रविष्ठ " तो यही बुला ले न । प्राजिका के साथ रहेगी। और शादी भी एन्जॉय कर लेगी।"

नवनीत " फिर तुझे बाहर जाने की मेहनत नही करना होगा। टाईम भी बच जाएगा। "

सुमेध " ok मै उसे बोल दूंगा सिधे यही होटल आये प्राजिका उसे ले लेगी।"

रात मे 2 बजे होटल के बालकनी मे बैठे राज दादा डायरी लिख रहे होते है। वहा से गंगा नदी दिख रही होती है जो निरंतर बह रही होती है, जब पूरा संसार रुका होता है।
राज दादू " अब हमे फिर से उन बातो को याद करना होगा,जो हम भूले ही नही। उस दर्द को जो हम आज भी जी रहे है। उस धोखे को....... जो हमे सोने नही देता। एक तू ही था मनु जिसे हम आप नही तू कहते थे..... और परी आप तो........"

तभी जग्गू दादा और श्यामू दादा आकर राज दादा के आंसू पोछ्ते है।
श्याम दादू " क्या वही दोनो तेरी खुशी थी हम नही ?"

जग्गू दादा " क्या हमसे इतने सालो बाद मिलकर तू खुश नही ?"

राज दादू उन्के गले लग जाते है " यारे आप लोग ही तो खुशी है हमारी "

जग्गू दादा " तो ये सब बाते बन्द कर,और चल सो जा। कल पोते की शादी है। हम लोग दादा है कल झूमेंगे नाचेंगे गाएंगे। 

और तीनो साथ मे सो जाते है।

अगली सुबह , सभी शादी की तैयारियो मे जुटे होते है।
हालाकि शादी तो वही होटल मे होनी थी।पर दादू का मन था प्रविष्ठ की बारात घर से होते हुए अपने बनारस की गलियो से होकर होटल आये तो प्रविष्ठ के परिवार वाले अपने घर चले जाते है साथ मे सभी बॉयज भी। और बाकि मेहमान वही रुकते है। सुमेध की कजन नव्या भी आती है जिसे प्राजिका बाकि गर्ल्स के पास ले आती है। और सबसे मिलवाती है।

यहा होटल मे जोरो शोरो से बारात के आव भगत की तैयारियाँ चल रही होती है। मुद्रा को दुल्हन की तरह तैयार किया जा रहा था। और साथ ही स्नेहल , सुकुन और प्राजिका तैयार हो रही होती है।

शर्मा भवन 
रात का समय
नैना जी " अरे बच्चो सबका हो गया बारात निकलने वाली है"

प्रविष्ठ " हा मां बस हो ही गया "

प्रविष्ठ मे पापा हड़बड़ाहट मे " बाऊ जी सब काम तो देख लिया। सब सही तो है न ?"

जग्गू दादा " सब सही है। अभी टेंशन है न एक बार बारात पहुच गई फिर सब टेंशन दूर हो जाएगा "

श्यामू दादा "बारात निकलने का समय हो रहा सबको बुलाओ "

इधर सुमेध,आलोक और नवनीत प्रविष्ठ को तैयार करने मे लगे थे।
नवनीत " नही नही ये हेयर स्टाइल नही अच्चा है "

सुमेध " ए भाई तेरे हेयर स्टाइल के चक्कर मे बिना दूल्हे के बारात चली जायेगी। "

नैना जी आते हुए " अरे बच्चो सब बाराती आ गये पर दूल्हे का पता ही नही।चलो भी "

और प्रविष्ठ की बलाए लेती है। प्रविष्ठ निचे आता है  और सभी दादा से आशीर्वाद लेता है।
और बारात निकल जाती है मुद्रा के यहा।

होटल मे
प्राजिका " ये लहन्गा अब मुझे अच्छा क्यू नही लग रहा?"

मुद्रा " दुल्हन मै हू और चिंता तुझे हो रही। बहन अच्छा है सब "

स्नेहल ईयरिंग पहनते हुए मन मे सोचती है " सुमेध जी कैसे लग रहे होन्गे ?"

नव्या " मै तो कभी ये इंडियन ड्रेस नही ट्राई की। वहा फॉरेन मे जरुरत ही नही पडी "

सुकून " डोंट वरी मेरे पास एक्स्ट्रा लह्न्गे है तुम चूज कर लो कि कौन सा पहनना है। हम लोग तुम्हे तैयार कर देंगे "

नव्या सुकून के गले लग " थैंक्स डार्लिंग । मेरा बहुत मन था ऐसे इंडियन शादी देखने का। और इंडियन लड़को की बात ही कुछ और है"

मुद्रा " हा हा मेरे दोनो देवर बहुत हैण्डसम है। नजर मत लगाना "

प्राजिका " वो आलोक सन्त आदमी😅😅  किसी लड्की को देखेगा क्या ?"

स्नेहल " वो तो सच्चा प्यार करते है अपनी अन्जानी से "

सुकून " कौन है वो अन्जानी?"

प्राजिका " वही तो नही पता लग रहा 🙄🙄" 

तभी बाहर से पटाखो की ढोल नगाडो की आवाज आने लगती है।

मुद्रा शर्मा कर " लगता है वो आ गये "

प्राजिका " ओह हो वो......"

सभी लडकिया हसने लगती है। और बालकनी से बारात को देखती है।
प्रविष्ठ दूल्हे के जोड़े मे खुब जच रहा था। उसका सेहरा उसके चेहरे की खुबसूरती को और बढा रहा था। और एक बहुत प्यारी स्माइल होती है उसके चेहरे पर। 
बारात मे नवनीत आलोक और सुमेध मजे से बिना किसी के फिक्र की नाचे जा रहे थे।

नव्या की नजर नवनीत पर पडती है जो सबको नचा रहा था। वो काले थ्री पिस सूट मे काफी अच्छा लग रहा होता है।
नवनीत नाचते हुए नव्या के पीछे खड़ी सुकून को देखता है। और उसके चेहरे पर स्माइल आ जाती है।
सुमेध जैसे ही स्नेहल को देख्ता है स्नेहल शर्मा कर पीछे घूम जाती है। सुमेध मुस्कुराने लगता है।
प्राजिका " ए भाई तुझे ठीक से देख भी नही पाये क्यू घूमी?"

स्नेहल " बस ऐसे ही 🙈"

नव्या " क्या चल रहा है यहा 😉 कही मै जो सोच रही सही तो नही ?"

सुकून " हा सुमेध जी स्नेहल से प्यार करते है "

नव्या खुश होकर " ओह भाभी गले मिलो"
और उसके गले लग जाती है।
मुद्रा के मम्मी पापा सबका स्वागत करते है । सभी अन्दर हॉल मे आते है। प्रविष्ठ बैठा मुद्रा का इन्तजार करने लगता है। 
तभी मुद्रा सजी धसी सुर्ख लाल जोड़े मे धिरे धीरे आती है।
वो प्रविष्ठ को देखती है और प्रविष्ठ उसको।
इस माहौल को मै एक शायरी से बयाँ कर सकती हू 
की " बनकर तुम्हारी दुल्हन आज
मै खुद पर इतरा रही हू।
सोच कर आज खुद को तुम्हारी
मै खुद से ही शरमा रही हू।।

प्रविष्ठ मुद्रा मा हाथ थामे उसे अपने पास ले आता है।
और दोनो की वारमाला की रश्म होती है। प्रविष्ठ झुककर मुद्रा से वरमाला पहन लेता है।
प्रविष्ठ  के सभी दोस्त एक साथ सैल्यूट करते हुए " कैप्टन को सलामी  😅🤣

सभी उनको देख मुस्कुराने लगते है।
आलोक प्राजिका को देखता है जो सफेद लह्न्गे मे काफी खुबसूरत लग रही थी। 
वरमाला के बाद प्रविष्ठ मुद्रा मंडप मे आते है शादी के रशमो के लिए...
सभी मंडप के सामने बैठते है ।  
नवनीत के बगल मे नव्या बैठि होती है जो उससे हस हस के बाते कर रही होती है।सुकून दोंनो को देखती है। नवनीत देखता है सुकून उन दोनो को देख रही तो वो और मुस्कुराने लगता है।
सुकून खुद से " ऐसी क्या बात हो रही की ये दोनो इतना हस रहे? पर मुझे क्या? लेकिन अभी तक तो बोल रहा था की प्यार करता हू और अब?"

स्नेहल " इसिलिए देरी नही करना चाहिये। सुकून अगर सुकून से नवनीत के साथ जिन्दगी बितानी है तो दिल की सुन "

प्राजिका " पहले मेरि बात सुन। किस ओर है ? जुते छुपाने है न?"

नव्या आते हुए " जुते चुराने का प्लान है न?"

सुकून गुस्से मे " हा है "

नव्या " क्या हुआ सीस इतना गुस्सा क्यू हो रही कोई कुछ बोला क्या?"

सुकून रुआसी होकर " नही "

प्राजिका " ये पागल तो नही हो गई?"

सुकून " नही चलो। आज इस ठोकू महाराज को हराना है।"

स्नेहल " देखो सुमेध जी के पास जुते है "

प्राजिका " भाई के पास है 😁 ओके तब तो मुझे मिल जायेंगे "

इधर सुमेध सबको समझाते हुए " समझ लो ये जंग है। किसी की वाली भी आये कोई नही बहकेगा। कोई जुते नही देगा "

सभी " यस कैप्टन  "

तभी प्राजिका सुमेध के पीछे खड़े होकर " भाई....."

आलोक " ये गया "

सुमेध " हा बहना "

प्राजिका " जुते दो "

सुमेध " कौन से जुते?"

नवनीत " यस डटे रहो "

प्राजिका " प्रविष्ठ भाई का जुता "

सुमेध जुते देते हुए " ले जा खुश रह " 
प्राजिका जुते लेकर भाग जाती है।
आलोक और नवनीत " सुमेध के बच्चे। चल बौर्डर पर उल्टा लटका देंगे ""

सुमेध " मै बोला था अपनी वाली को नही देना । लेकिन ये तो मेरि बहन है न। देखा कितनी संस्कारी है सामने आकर बोली कोई काम पीठ पीछे नही करती "

नवनीत " चल अब जुते वापस लेते है "

आलोक " बॉयज एक उस एरिया मे जाओ और एक उस। ( दात दिखाकर ) और मै चला प्राजू के पीछे 

सुमेध " क्या क्या किसके पीछे ?"

आलोक " मै चला जूतो के पीछे भाई जूतो"

सभी गर्ल्स के पीछे पीछे जाते है।
आलोक प्राजिका के पीछे पीछे जाता है प्राजिका अचानक से मुड़ती है । और आलोक घबरा जाता है।
प्राजिका " क्या है ?पिछा क्यू कर रहे आलोक बाबू आप ?"

आलोक " जुते....आप जुते ऐसे ले आई । अच्छी बात है क्या ?"

प्राजिका ' मेरे भाई मेरि हर इच्छा पूरी करते है। वैसे भी अब जुते नही है मेरे पास"

और झटके मे मुडती है और उसके बाल आलोक के चेहरे पर आ जाते है। आलोक उसके बाल अपने चेहरे से धीरे धीरे हटाया। प्राजिका अपने हाथो से बाल सही करने लगती है।
प्राजिका " झटके से मुड़ने की वजह से हुआ, चोट नही न लगी?"

आलोक " हा तिरो जैसे चुभे है "

प्राजिका " क्या ?"

आलोक हँसते हुए " आप भी न क्या सवाल कर रही?बाल से चोट लगेगा क्या?"
प्राजिका भी हंसने लगती है।
सुकून नवनीत के पीछे भागते हुए " जूतो दिजीये " 

नवनीत " जी नही आपको बिल्कुल नही दूंगा "
तभी नव्या नवनीत के सामने आती है और हाथो फैला कर रास्ता रोकती है।
सुकून " अब देखती हू कैसे नही देते जुते "

नवनीत " नव्या को तो बिना कहे मै दे दू। लो "
और नव्या की ओर जुते बढ़ाया। सुकून बहुत गुस्सा हो जाती है ।  और चली जाती है। उसके जाते ही नवनीत जुते लेकर नव्या से दूर भाग जाता है।
नव्या " चीटिंग मत करो न "
नवनीत भागते हुए सुमेध की ओर जुते फेकता है। सुमेध जुते सेफ जगह छिपाने भागता है। स्नेहल उसके पीछे जाती है।
स्नेहल " सुमेध जी ...."

सुमेध " हा स्नेहल जी "

स्नेहल " जुते चाहिये जी "

सुमेध " जी जुते आपको तो नही मिलेंगे "

स्नेहल धमकी देने लगती है मगर घबराते हुए " दे..खी..ये जुते दे दि...जीये। नही तो अंजाम अच्छा नही होगा जी "

सुमेध " हाए क्या धमकी थी। कोई भी डर जाए, अब बॉर्डर पर आपको ही लेकर जाउन्गा "

स्नेहल " आप मजाक बना रहे है ?"

सुमेध " बहुत खुबसूरत लग रही है आप "

स्नेहल " सच मे ?"

सुमेध " अभी तो तुम बोली मै मजाक करता हू तो सोचा थोड़ा कर लू "

स्नेहल " सुमेध जी मुझे लगा आप खडूस कैप्टन है। आप इतने मस्तीखोर है ये नही पता था "
और जाने लगती है। सुमेध उसकी कलाई पकड़ता है और गले लगा लेता है। दोनो एक दुसरे के गले लगे होते है कि सभी आकर खासते है। दोनो अलग हो जाते है।
स्नेहल " चलो चलो फेरे का वक्त हो रहा "

प्राजिका " हा हा तेरे भी फेरे जल्द हो जायेंगे "
सभी हंसने लगते है और स्नेहल भागती है वहा से
सभी मन्डप के पास आते है।।
प्रविष्ठ मुद्रा की मांग मे सिन्धुर भरता है, कुछ पलो के लिए मुद्रा की आंखे बंद हो जाती है। फिर उसे मंगलसूत्र पहनाया।

पण्डित जी " वर वधु फेरो के लिए खड़े हो।"

सभी लोग मंडप मे फुल फेकने लगते है और प्रविष्ठ मुद्रा हाथो मे हाथ डाले सात जन्म साथ रहने का वचन लेते है।
पण्डित जी " आपकी शादी संपन्न हुई । आज से आप लोगो पति पत्नी "
प्रविष्ठ और मुद्रा सभी बड़ो का आशीर्वाद लेते है।
राज दादू " हमेशा साथ रहना " 

जग्गू दादा " जल्दी से पर पोते का चेहरा दिखा देना " 

इस बात पर मुद्रा से ज्यादा प्रविष्ठ शर्मा जाता है। सब प्रविष्ठ के चेहरे के हाव भाव देख हंसने लगते है।
सबसे आशीर्वाद लेने के बाद विदाई की घड़ी आती है
मुद्रा अपने मा पापा के गले लग रोने लगती है । 
उसे देख स्नेहल रोने लगती है। 
सुमेध " तुम क्यू रो रही हो ?" 

स्नेहल प्राजिका को देखते हुए " कोई अपनो को छोड़ एक पल रहने का ख्वाब भी नही देख सकता। और एक लड्की अपने घर संसार को छोड़ किसी और का संसार बसाने आती है, अनजाने लोगो का ख्याल रखती है। पर फिर भी सब क्या कहते है ' ये तुम्हारा घर नही है ' , कोई उसके बलिदान को क्यू नही देखता। कुछ नही तो कम से कम उसे भी इन्सान समझना चाहिये न " 

सुमेध स्नेहल का हाथ कस के पकड लेता है " मै हमेशा तुम्हारे साथ हू "
स्नेहल सुमेध को देख मुस्कुराती है।
मुद्रा कार मे बैठती है। मुद्रा को रोता देख प्रविष्ठ मुद्रा को गले लगा लेता है।
प्रविष्ठ " मै तुम्हारे मम्मी पापा की जगह तो नही ले सकता पर तुम्हारे लाइफ मे अपनी ऐसी जगह बनाऊंगा कि तुम्हे कभी रोने की नौबत नही आयेगी। " 

सभी शर्मा भवन आते है। नैना जी प्रविष्ठ मुद्रा का स्वागत करती है। दोनो अन्दर आते है और सभी मदिर मे जाकर महादेव का आशीर्वाद लेते है। फिर अँगूठी खोजने की रश्म होती है।
नैना जी " बच्चो दूध से अँगूठी जो जल्दी खोजा उसी का राज चलेगा " 

नव्या " इंटरेस्टिंग रश्म " 

नवनीत " अरे हमारे यहा तो ऐसे ऐसे रश्म है कि आपको मजा आ जाएगा " 

सुकून बड़बड़ाकर " हा हा मजा आ जाएगा। हुउऊ..." 

आलोक " मेरे हिसाब से अँगूठी इस ऐंगल से फेकि गई तो उधर ही होगा प्रविष्ठ खोज ले " 

श्यामु दादू " पहले आलोक का मुह बन्द करो कोई । नही तो ये रश्म नही होने देगा" 

प्रविष्ठ " एक आइडिया मै दूध पी जाता हू फिर अँगूठी मिल जायेगी" 

सुमेध "  ए भाई चुप चाप रश्म कर न " 

ब्रिगेडियेर सर " जवान रश्म पूरी करो शान्ति से " 

प्रविष्ठ " यस सर " 

और दोनो रश्म करते है और मुद्रा जीत जाती है।
दादी जी "मुद्रा को कमरे मे ले जाओ " 

जग्गू दादा " प्रविष्ठ तू भी जा " 

प्रविष्ठ " पहले कहानी सुनाइए " 

राज दादू " आज आपकी शादी हुई है। जाईये नये जीवन की शुरुआत करिये " 

प्रविष्ठ " दादा जी पहले पूरी कहानी सुनना है। जब तक पिछ्ली कहानी पूरी नही हो जाती, नई कहानी कैसे शुरु करु? मुद्रा भी यही चाह्ती है। है न मुद्रा " 

मुद्रा " हा दादू। हमे जानना है आखिर क्या हुआ था कि सब बिखर गये ?" 

राज दादा " पर कहानी लम्बी है , पूरी रात निकल जायेगी " 

प्रविष्ठ " कोई बात नही । नही तो आप चले जायेंगे और फिर सारा राज कभी नही खुलेगा " 

ब्रिगेडियर सर " आज प्रविष्ठ तुम्हे गले लगाने का मन कर रहा " 

नव्या " कैसी कहानी?" 

नवनीत " राज का राज " 

अब आगे का राज जानने के लिए बने रहिये मेरे साथ। 

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12 Comments

Saba Rahman

24-May-2022 09:26 PM

Osm

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HENA NOOR AAIN

24-May-2022 09:49 AM

Nice

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Neelam josi

21-May-2022 03:41 PM

Nice part 👌

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Thank you mam

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