लेखनी प्रतियोगिता - सोलह श्रृंगार
सोलह श्रृंगार
वो, एक नई नवेली दुल्हन थी। एक हफ्ते पहले ही उसकी निखिल से शादी हुई थी।उसके पति निखिल एक बड़ी कंपनी में अकाउंटेंट थे। उसका ससुराल एक मध्यमवर्गीय, संयुक्त परिवार था। दादी सास से लेकर चाची सास, ससुर, जेठ, देवर, ननद, भतीजे भतीजी, सारे रिश्ते थे उसके परिवार में। सब मिलजुल कर रहते थे।
वो, उसका नाम था, सहज। जैसा नाम, वैसा गुण। अपने स्वभाव से बिल्कुल शांत स्वभाव की थी वो। मम्मी पापा ने बड़े लाड चाव से पाला था उसे। उसने एमबीए किया हुआ था, वो आगे जॉब भी करना चाहती थी। उसे जॉब मिलती इससे पहले ही उसके लिए निखिल का रिश्ता आ गया। मम्मी पापा को निखिल और उसका घर परिवार पहली ही बार में पसंद आ गए थे। इसीलिए बिना देर किए उन्होंने सहज की शादी निखिल से कर दी। और वो दुल्हन बन निखिल के घर आ गई।
शादी से लेकर अब तक पिछला एक हफ्ता रस्मों रिवाज़ की गहमा गहमी में कैसे गुजर गया उसे पता ही नही चला। सारा रिश्तेदारों से घर भरा हुआ था। सहज, रोज़ सुबह नई नवेली दुल्हन की तरह सोलह श्रृंगार कर, एक बाद एक रस्मों को निभाए जा रही थी बस। यहां तक कि निखिल के साथ भी दो घड़ी आराम से नहीं बीता पाई थी, वो। अपना दिल मसोस कर वो बस बताए गई रस्में पूरी कर रही थी। निखिल भी अपनी नई दुल्हन को अपनी बाहों में भरने को बेकरार हो रहा था। पर उसे भी कोई मौका नज़र नही आया।
एक हफ्ते बाद, धीरे धीरे सारे रिश्तेदार जा चुके थे। और घर के बड़े भी गांव जाने का कार्यक्रम बना चुके थे। कल वो सब गांव के लिए निकल जायेंगे। घर पर केवल सहज और निखिल ही रुकेंगे। उन दोनों को कुछ वक्त साथ में मिले, इसलिए उनके परिवार ने ये प्लान बनाया था। निखिल और सहज, दोनों ही एक दूसरे के साथ समय बिताना चाहते थे, इसीलिए दोनों बैचैनी से आने वाले कल की राह देखने लगे।
इसी बीच निखिल ने सहज को मैसेज भेजा जिसमे लिखा था , " कल शाम को पूरे सोलह श्रृंगार के साथ मेरी नई नवेली दुल्हन बन तैयार रहना, बाहर खाना खायेंगे।" मैसेज पढ़ सहज का चेहरा शर्म से गुलाबी हो गया और वो भी आने वाले कल की शाम के सुनहरे सपने देखने लगी।
अगली सुबह सब के चले जाने के बाद, निखिल, रसोई में काम कर रही सहज के पास आया। और दरवाजे पर खड़े खड़े ही उसे निहारने लगा। सर से लेकर पांव तक उसकी दुल्हन बहुत सुंदर लग रही थी।
माथे पर लाल बड़ी सी बिंदिया, आंखों में काजल, होठों पर लाल गुलाब का सा रंग, हाथों में खनकती चूड़ियां, पैरों में बिछिया और छनकती पायल, हरी और गुलाबी बनारसी सारी, बालों में लगा गजरा, उसकी तारीफ करने के लिए निखिल के पास शब्द नहीं थे। वो बस उसे निहारे जा रहा था।
सहज अचानक मुड़ी,तो सामने निखिल को देख थोड़ा शरमा गई और पीछे हट गई। शरमाते हुए उसने पूछा, "आपको कुछ चाहिए क्या?" इतना बोलने में भी सहज जरा असहज हो रही थी। निखिल उसके पास आकर उसके हाथों में हाथ डालकर बोला, " सहज, तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो, मेरे पास तो शब्द ही नहीं है। मेरा बस चले तो मैं सिर्फ तुम्हे देखता ही रहूं। मुझे बस हमेशा के लिए तुम्हारा साथ चाहिए। हमेशा ऐसे ही मेरा हाथ थामे रहना। मैं तुम्हें कभी भी शिकायत का मौका नही दूंगा।" ऐसा बोल निखिल ने उसे अपने गले से लगा लिया।
सहज ने उसके गले से लगे हुए कहा, " आपने जो कहा, मेरे लिए वो ही बड़ी बात है। एक पत्नी जो अपने पति से उम्मीद करती है, वो आपने खुद कह दी। मैं भी आपसे वादा करती हूं, आप जैसा कहेंगे, मैं वैसा ही करूंगी। मैं भी आपको शिकायत का मौका नही दूंगी। अगर कोई गलती हो जाए तो मुझे समझाना। मैं जानती हूं आप चाहते हैं कि आपकी पत्नी हमेशा सोलह श्रृंगार किए आपके सामने रहे।
मैं आपसे वादा करती हूं कि आप मुझे हमेशा ऐसे ही देखेंगे। मेरे लिए ये सोलह श्रृंगार, किसी वरदान से कम नहीं है।" ऐसा बोल दोनों एक दूसरे में खो गए।
शाम को बाहर जाने का प्लान कैंसल कर उन दोनों ने टेरेस पर एक खूबसूरत रात बिताई।
आज 30 साल बाद भी, जब बुढ़ापे का असर दोनों पर नज़र आने लगा था, सहज आज भी पूरे श्रृंगार कर निखिल के सामने आती। जिंदगी के उतार चढ़ाव से गुजरते हुए उन दोनो का प्यार और समर्पण गहरा हो गया था।।
प्रियंका वर्मा
17/5/22
Neelam josi
21-May-2022 03:38 PM
Very nice 👌
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Muskan khan
19-May-2022 11:39 AM
Very nice
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Abhinav ji
19-May-2022 06:50 AM
Nice👍
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