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11 शार्ट स्टोरी लघुकथा = एक नयी पहल ( जेनर = प्रेरक )

लघुकथा 

जेनर  = प्रेरक 

शीर्षक = एक नयी पहल




आराम से बैठो , यू इस तरह  इस हालत  में उछल कूद  मत  करो  ज्यादा सोहा। तुम्हे पता  है  ना तुम्हारा आख़री  महीना  चल रहा  है  अगर  इस तरह  लापरवाही करोगी  तो कुछ  भी  हो सकता  है । ये लो संतरे  का जूस  पियो। सोहा के शोहर उमर ने उसे बैठाते  हुए  कहा ।


आप इतनी फ़िक्र मत  कीजिये सब  कुछ  अच्छा होगा। "वैसे आपको  किस का इंतज़ार  है  बेटी या बेटा" सोहा ने उमर से पूछा ।

उमर  थोड़ी  देर सोच  कर  बोला " उम्म,,,,, उम्म,,,,, बेटी " मुझे बेटी चाहिए  मैं चाहता  हूँ मेरी पहली  औलाद  बेटी हो।

"और तुम, तुम किया चाहती  हो।" उमर  ने सोहा से पूछा 

" मैं बेटा चाहती  हूँ। वैसे बेटी भी  अल्लाह की रेहमत  है  लेकिन मैं चाहती  हूँ मेरी पहली औलाद  बेटा हो " सोहा ने अपने पेट पर  हाथ  रखते  हुए  कहा


तभी  बाहर  दरवाज़े  पर  खड़ी  उमर  की माँ और सोहा की सास सकीना  ने कहा " जो भी  हो सेहत  मंद  हो चाहे  बेटा हो या बेटी, हमें तो बस  दादी कहने  वाला हो फिर चाहे  वो पोता हो या फिर  पोती "


"अरे अम्मी आप  आइये  अंदर  बाहर  क्यू खड़ी  है" दोनों ने कहा।

तभी  अचानक  सोहा को दर्द हुआ शायद  बच्चे  की विलादत  का समय  आ  गया  था। उमर  ने तुरंत  गाड़ी निकाली और अपनी माँ को साथ लेकर अस्पताल पंहुचा ।

सोहा दर्द से चिल्ला रही  थी । डॉक्टर उसे ऑपरेशन  थिएटर  ले गए । और थोड़ी  देर बाद एक बच्चे की आवाज़  उस कमरे  से आयी।

बाहर  खड़े  उमर और सकीना  खुश  हो कर  एक दूसरे  के गले लगे । लेकिन नर्स  बाहर  नही आ  रही  थी  बताने  की आखिर  बेटा हुआ है  या बेटी। दोनों परेशान  होने लगे ।

काफी देर बाद नर्स  बाहर  आयी  डॉक्टर जा चुके  थे  कमरे  से। नर्स उदास लग  रही  थी  मानो कुछ  हुआ हो अंदर । उमर  ने उससे पूछा  " क्या हुआ माँ और बच्चा  दोनों ठीक  है ? "

नर्स के पास  कोई जवाब  नही था । उसने उन दोनों से अंदर  आने  को कहा । और वो दोनों अंदर  आ  गए । सोहा की आँखे  आंसुओ  से भरी  हुयी थी । और बच्चा  रो रहा था  जो दूर  से एक दम  नार्मल बच्चा  लग  रहा  था ।

उमर उसके पास  गया  और उसे गोदी में उठाया  और सोहा के पास  आ कर  बैठा  और बोला " किया हुआ सब  कुछ  तो ठीक  है  फिर  रो क्यू रही  हो, और ये नर्स इतना उदास चेहरा लिए  क्यू घूम  रही  है  "

सकीना  ने भी  उसके रोने का कारण  पूछा ।

तभी  सोहा ने नर्स  की तरफ  देखा  और नर्स  ने बच्चे  को उमर  की गोदी से लिया और उसके उपर  लिपटी तौलिया को हटा  कर  बोली " आपका  बच्चा ना तो लड़का  है  और ना लड़की  बस  यही  वजह  है  हम  लोगो के उदास होने की लेकिन आप चिंता  मत  करो  मेने फ़ोन  कर  दिया है  इन जैसे बच्चों को लेने वाले आते  ही होंगे। "

उमर  को झटका  लगा  उसने अपनी माँ की तरफ  देखा जिसकी आँखों  में भी  आंसू  थे । उसने अपने आप  को संभाला  और सोहा को अपने गले  से लगाया।

तभी  वो बच्चा  रोने लगा  शायद  उसे भूख  लगी  थी । सोहा उसे दूध  पिलाना चाह  रही  थी  और उसने उसे नर्स  से अपनी गोदी में रखने को कहा।

नर्स ने कहा " आप  इसे अपना दूध  नही पिला सकती  नही तो आपकी  ममता जग  जाएगी फिर  आपके  लिए  इसे उनके हवाले  करना  आसान  नही होगा "

सोहा रोने लगी  ये सुन कर  तभी  सकीना  ने उसे समझाते  हुए  कहा " बेटा इसमें तुम्हारी या इस बच्चे  की कोई गलती  नही ये  सब  तो किस्मत का खेल  है । इस बच्चे  को तुम्हारी कोख  से जन्म लेकर  इस दुनिया में आना  था  सो आ गया  इसलिए  अब उदास मत  हो अभी  इसके चाहने  वाले आते  होंगे जो इसे अपने साथ  ले जाएंगे और इसका ख्याल  रखेंगे  "

उमर खामोश  था  उसे समझ  नही आ  रहा  था । कि किया करे । तभी  इतने में दो मर्द नुमा औरते  कमरे  में आती  और उस बच्चे  की तरफ  देखती  और कहती  " क्यू आया  तू  इस ज़ालिम दुनिया में जहाँ हम  जेसो की कोई इज़्ज़त नही चल  अब आ  ही गया  है  तो चल  हमारे  साथ  चल  अपने समाज  में। इस समाज  में तेरी कोई पहचान  नही यहाँ सिर्फ या तो मर्दो की पहचान  है  या फिर  औरतों की हम  जेसो की यहाँ कोई जगह  नही। चल  कम्मो उठा  ले इसे और बना  ले हमारे  समाज  का हिस्सा आज से इसको पालने की ज़िम्मेदारी तेरी "

कम्मो ने जैसे ही अपना हाथ  उस बच्चे  की तरफ  किया उमर  ने उसका हाथ  रोक दिया और बोला " ख़बरदार जो मेरे बच्चे  को हाथ  लगाया  ये जैसा भी  है  मेरा बच्चा  है । इसके आने  का इंतज़ार  में पिछले  9 महीने  से कर  रहा  था । ये जैसा भी  है  मेरा अंश  है  मैं इसे तुम लोगो के हवाले  नही करूंगा । मैं नही चाहता  कि मेरा अंश  बड़े  होकर  ट्रैन में या सिग्नलो पर  खड़े  हो कर  ताली बजाये  "

सकीना  और सोहा ने उसकी तरफ  हैरानी से देखा  कि आखिर  उमर  ये किया कह  रहा  है ।

कम्मो हसीं और ताली बजा  कर  बोली " ये तुम्हारा अंश  है  तो इसे दुनिया के सामने किया कह  कर  मुख़ातिब  करोगे  क्यूंकि ना तो ये लड़का  है  और ना ही लड़की । और अगर  ये ताली बजा  कर  पैसे नही मांगेगा तो फिर  किया करेगा । आखिर  किया पहचान  दिलाओगे साहब  इस किन्नर बच्चे  को। जिसका अस्तित्व ही अधूरा  हो आखिर  उसका अस्तित्व कैसे बनाओगे  इस ज़ालिम समाज  में "


"जो इसकी पहचान  है  उसी पहचान  के साथ  ये परवान  चढ़ेगा  " उमर  ने कहा

"बेटा दुनिया वाले किया कहेँगे , अभी  तो बच्चा  है  पल जाएगा घर  के अंदर  जब  14 या 15 साल का होगा तब  कैसे इस दुनिया से इसे बचाओगे। जब  इसके शरीर  में बदलाव  आना  शुरू  हो जाएंगे " सकीना  ने कहा


"अम्मी दुनिया वालो कि मुझे  कोई परवाह  नही। जिस तरह  एक लड़के और एक लड़की  को अपनी युवावस्था  का आभास  हो जाता है  ठीक  उसी तरह  इसको भी  हो जाएगा और ये जान जाएगा कि ये कौन है  और इसका जीवन  कितना संघर्ष  पूर्ण है । आज  से मैं उमर  एक नयी  पहल  करूंगा  ताकि इन जैसे बच्चों को अपना अलग  समाज  बनाने  कि ज़रुरत  नही पड़े । मैं इसे वही  सब  कुछ  दूंगा  जो इसकी जगह  एक बेटी या बेटे को देता। मैं इसे पढ़ाऊंगा  लिखाऊंगा  ताकि ये अपनी अलग  पहचान  बना सके  " उमर  ने कहा


कम्मो और उसके साथ  आयी  दूसरी  किन्नर ने जब  ये सुना तो उसने उस बच्चे  को आशीर्वाद  दिया और कहा " तू  तो बहुत  किस्मत वाला है  रे। आज  इतने सालो में एक आदमी  को मेने देखा  है  जो अपने ऐसे बच्चे  को अपनाने कि बात कर  रहा  है  वरना  तो माओ  को ही रोते बिलखते  देखा  है  हमने । तू  जरूर  एक नयी  पहल  करेगा  और हम  सब  उस दिन का इंतज़ार  करेंगे  अब हम  चलते  है  "


सकीना  ने उमर  के कंधे  पर  हाथ  रखा  और बोली " बेटा तुम्हारी इस पहल  में बहुत  सारी परेशानिया  आएँगी  लेकिन तुम घबराना  मत  मैं तुम्हारे साथ  हूँ। आज  तुमने सही  मायनो में पढ़े  लिखें होने का सबूत  दिया "

सोहा भी  खुश  थी  कि उसका बच्चा  उसके सांए में पलेगा । उसने उसे दूध  पिलाया उसका नाम समीर  रखा।

मोहल्ले में भी  सब  को पता  चल गया  था । क्यूंकि उमर  उसकी पहचान  छिपा  कर  नयी  पहल  नही लाना चाहता  था ।

लोगो ने उसके ऑफिस वालो ने बाते बनायीं ना जाने किया कुछ  कहा । लेकिन उमर  ने उनकी एक ना सुनी। समय  चलता गया । और सोहा दोबारा माँ बनी  इस बार उसने जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया जिसमे एक बेटा एक बेटी थे ।

वो तीनो  बहुत  खुश  थे । समीर  3 साल  का हो गया  था। उमर  उसे घर  पर  ही पढ़ाता क्यूंकि स्कूल  वालो ने लेने से मना कर  दिया था  उसकी लेंगीगता कि वजह  से।


धीरे  धीरे  समीर  दस  साल का हो गया। उमर  उसका दाखिला  कराने पास ही के स्कूल  में गया  लेकिन उसे वहा  पर  भी  दाखिला  नही मिला।

वो निराश  हो कर  लोट रहा  था  तभी  किसी ने पीछे  से आवाज़  दी और कहा " रुकना भाईसाहब  मुझे  कुछ  बात करनी  है  आपसे  "

उमर  रुक गया  वो आदमी  आया  और उमर  से हाथ  मिलाकर  और गले लग  कर  बोले मेरा नाम मुकेश  है । मैं इस कॉलेज  का प्रिंसिपल हूँ मेने सुना जो कुछ  भी  आप  कर  रहे  है  अपने इस बच्चे  के लिए  उसे एक पहचान दिलाने के लिए।

मैं आपकी  कुछ  ज्यादा तो मदद  नही कर  सकता  इस पहल  में क्यूंकि मुझे  भी  आगे  जवाब  देना होता है । लेकिन मैं आपके बच्चे  का नाम अपने स्कूल  में लिख  दूंगा  जहाँ ये कक्षा  6 में दाखिला ले सकता  है । लेकिन इसे आपको  घर  पर  ही पढ़ाना  होगा।

सिर्फ परीक्षा  देने आना  होगा इसे। इस तरह ये तालीम  हासिल कर  सकेगा  और शायद  जब  तक ये ऊँचे  क्लास तक  पहुचे  तब  तक  शायद  कोई कानून  इन लोगो के लिए भी  बन  जाए। बस  में आपकी इस पहल  में इतना सा ही भागीदार  बन  सकता  हूँ "

उमर  थोड़ा  खुश  और थोड़ा  उदास हुआ। लेकिन फिर  भी  उसने समीर  का दाखिला  स्कूल  में करा  दिया।

उमर  ने समीर  को बता  दिया था  कि वो कौन है  और वो क्यू और बच्चों जैसा नही है ।समीर  भी  खुश  था । उमर  उसे घर  पर  ही पढ़ाता ।

फिर  कुछ  सालो बाद वो समय  आ  पंहुचा  जो हर  लड़के  लड़की  की जिंदगी में बदलाव  लाता है। समीर  के अंदर भी  बदलाव  आने  लगे । उसकी आवाज़  मर्दानी होने लगी  और छाती  उभरने  लगी। उसका खींचाव अपनी माँ की सजने  सवरने वाली चीज़ो  की और होने लगा। ना चाह  कर  भी  वो अपने आप  को सजाने  सवारने लगा ।


मोहल्ले में सब  उसका मज़ाक  बनाते । उसके भाई  बहन  भी  उससे ज्यादा बात नही करते  और ना ही अपने साथ  खिलाते। क्यूंकि उसकी वजह  से उसके भाई  बहन  के उपर  भी  उनके दोस्त हस्ते।

घर  पर  ही रह  कर  समीर  ने अपनी पढ़ाई  की और बारहवीं में आ  पंहुचा  सारी परेशानियों  का सामना करते  हुए  लेकिन उसे पता  था  की उसके पिता  उसके साथ  है , इसलिए  वो सारी परेशानी  सेह जाता।


मुकेश  भी  कभी  कभी  घर  आकर  उसका हौसला बढ़ाता। और फिर  बारहवीं की परीक्षा  में उसने टॉप किया। जिसके चलते एक NGO की मदद  से उसे आगे  कॉलेज  में पढ़ने  का मौका मिला।

उसे डॉक्टर बनना  बहुत  पसंद  था । इसलिए  उसने डॉक्टर की लाइन चुनी  और संघर्ष  करते  हुए  दुनिया का सामना किया और आखिर  कार वो एक डॉक्टर बन  गया  बिना अपनी पहचान  छिपाये  और अपने परिवार  के सप्पोर्ट के साथ ।


उसकी बहन  की शादी  हो गयी  थी  और भाई  अवारा गर्दी करने  लगा  था  इसलिए  उमर  ने उसे बाहर  भेज  दिया था  और अब वो वही  का हो गया  था । उसने वही  शादी  भी  कर ली। बेटी को भी  अपने माँ बाप से ज्यादा हमदर्दी  नहीं थी  वो भी  उनसे मिलने कम ही आती  थी ।

समीर  एक अच्छा डॉक्टर बन  गया  था  उसने अपना नाम बदल कर  समीरा  रख  लिया था । सोहा और उमर  भी  उसी के साथ  रहते  थे  उसकी दादी इस दुनिया से जा चुकी  थी  जिसका समीरा  को बहुत  अफ़सोस था ।


कुछ  सालो बाद वो एक NGO भी  चलाने  लगी । एक दिन उसके क्लिनिक पर  कम्मो और रज़जो जो कि उसे अपने जैसा बनाने  के लिए  अस्पताल से लेने आयी  थी  आज  उसी से अपना इलाज कराने  आयी  थी । जब  उन्हें पता  चला  कि ये वही  बच्चा  है  तो रो पड़ी  और उसके हौसले और उमर  की उस पहल  को सलाम  किया।

जिसने उसे ताली बजा कर सिग्नल पर  नाच कर  और घरों  में नाचकर  पैसे कमाने  से बचा  लिया सिर्फ एक अच्छी पहल  ने उस अधूरे  बच्चे  को पूरा  कर  दिया। और आज  इस समाज  का हिस्सा बना  दिया।

उमर , सोहा और समीरा  खुश  थे  कि उन्होंने एक छोटी  सी कोशिश  से एक बहुत  बढ़ा कारनामा अंजाम दें दिया। अगर  वो उस दिन समीर  को उनके हवाले  कर  देते तो वो आज  ट्रैन में भीख  मांग रहा  होता और उमर  और सोहा भी  कही  तन्हा  अपने घर  में पड़े  होते क्यूंकि उनका बेटा तो विदेशी  हो गया  था  और बेटी पराये  घर  की हो गयी  थी । मोहल्ले वालो और रिश्तेदारों के भी  मुँह बंद  हो चुके  थे  अब, जब  समीरा  एक अच्छे मक़ाम  पर  पहुंच  गयी  तो।


जेनर  = प्रेरक 


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10 Comments

Shnaya

02-Jun-2022 04:39 PM

👏👌

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Anam ansari

17-May-2022 09:26 PM

👌👌

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Fareha Sameen

17-May-2022 09:08 PM

Nice

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