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6 शार्ट स्टोरी लघुकथा = मोहब्बत और घर की ज़िम्मेदारियां (जेनर = प्रेम )

लघुकथा 

जेनर  = प्रेम
शीर्षक  = मोहब्बत  और घर  की ज़िम्मेदारियां



कुमेल आज  सुबह  से ही उदास था । भूख  नही है  का बहाना  बना  कर  बिना नाश्ता किये ही काम पर  चला  गया  था । काम पर  भी  उदास था  और ज़ोर ज़ोर से हथोड़ा  मार रहा  था  गाड़ी पर  क्यूंकि वो एक मैकेनिक  की दुकान पर  काम करता  था ।


वही  दूसरी  तरफ  उसके मोहल्ले में काफी रौनक  थी  क्यूंकि शाम  को हाजी साहब  की बेटी मेहनाज़ की शादी  जो थी  और वो शादी  के कुछ  दिन बाद ही लंदन  जा रही  थी  अपने शोहर  के साथ  वही  रहने  के लिए।


"क्या हुआ कुमेल आज  काफी उदास हो और यूं इस तरह  ज़ोर ज़ोर से हथोड़ा  क्यू चला  रहे  हो  गाड़ी का इंजन  ख़राब  हो जाएगा तबीयत  तो ठीक  है  तुम्हारी " कुमेल के उस्ताद रंजन  ने पूछा 

" जी उस्ताद सब  कुछ  ठीक  है  " कुमेल ने कहाँ

" लग  नही रहा  तुम्हे देख कर  ऐसा लग  रहा  मानो कोइ  गम है  जो दिल में छिपाये  बैठे  हो " रंजन  ने कहाँ

" कुमेल का दिल भर  आया  रंजन  की बात सुन कर  वो उसे बता  कर  अपना मन हल्का करना  चाहता  था  की वो अपने हाजी साहब  की बेटी मेहनाज़ से प्यार करता  था और शायद वो भी  करती  थी  इसी लिए  वो हर  रोज़ शाम  को छत  पर  चढ़  कर  उसको गली  से घर  आता  देखती  और मुस्कुराती थी। लेकिन कुमेल ने अपने ज़ज़्बातो को काबू किया और कहा  " कुछ  नही उस्ताद बस  ऐसे ही अब इस जगह  से दिल भर  गया  मेरा, मैं कही  बाहर  जाना चाहता  हूँ पैसे कमाना  चाहता  हूँ ज्यादा ताकि अपने घर  की परेशानियों  को कम कर  सकूँ  अपना घर  बना  सकूँ अपनी दोनों बहनो  को इज़्ज़त के साथ  उन्हें अपने घर  का कर  सकूँ अब्बू के बाद मैं ही उनका ख्याल  रखने  वाला हूँ "


" क्यू कुमेल ऐसी बाते क्यू कर  रहे  हो, क्यू अपनी जगह  को छोड़  कर  जाना चाह  रहे  हो बाहर  बहुत  धक्के  है  "  रंजन  ने कहा 

" बस  उस्ताद अब मन  नही लगेगा  यहाँ, इस गरीबी  से छुटकारा  पाना है कैसे भी  करके  अमीर  बनना  है " कुमेल ने उदास चेहरे  से कहा 

" चल  कोइ नही अगर  तूने  बाहर  जाने का फैसला कर  ही लिया है  तो मेरी दुआएं तेरे साथ  है , करता  हूँ कुछ  जुगाड़ तेरा मेरे कुछ  चेले  है  परदेस  में उन्ही से कहता  हूँ तेरा कोइ जुगाड़ लगा  दे और तुझे  परदेस  बुला ले। लेकिन मुझे  लग  रहा  है  तेरी परदेस  जाने की वजह  गरीबी और घर  की ज़िम्मेदारी नही कुछ  और है  " रंजन  ने उसकी पीठ  पर  हाथ  मारते हुए कहाँ

" शुक्रिया उस्ताद, नही उस्ताद ऐसा कुछ  नही है  बस  घर की ज़िम्मेदारियां है जिनको पूरा  करने  के लिए  मुझे  अपना घर  छोड़  कर  परदेस  जाना है  ताकि अपनी ज़िम्मेदारियां बखूबी  निभा  सकूँ " कुमेल ने कहा


"ईश्वर  हर  माँ बाप को तुझ  जैसा लायक  बेटा ही दे वरना  नही दे जो अपनी ज़िम्मेदारियों को सही  ढंग  से निभाने  के लिए  अपना घर , अपना मोहल्ला, अपने दोस्त सब  कुछ  छोड़ने को तैयार है  मुझे  आज  भी  याद है  जब  तू  अपने अब्बू की  अचानक  मौत  के बाद स्कूल  छोड़  कर  मेरे पास  आया   जब  तू  दसवीं में था  और बोला उस्ताद मुझे  काम सीखना  है  पढ़ाई  करके जब  तक  काम मिलेगा तब  तक  मेरे घर  वाले गरीबी  से मर जाएंगे। और आज  देखों तू  22 साल का हो गया  और काम भी  सीख  गया  और अपने घर  को भी  चला  रहा  है  " रंजन  ने कहा

"उस्ताद ये तो आपकी मेहरबानी  थी  जो मुझे  काम पर  रखा  अपना बेटा बना  कर  वरना  तो सब  जगह  से मुझे  निकाल दिया था  ये कह  कर  तुम अभी  छोटे  हो काम नही कर  सकते  " कुमेल ने नम आँखों  से कहा

"चल  अच्छा उदास मत  हो दोपहर  हो चली  जा जाकर  खाना  खा घर  जाकर  और हाँ अगर  अच्छा महसूस  नही करे  तो घर पर   रुक जाना काम पर  मत  आना  " रंजन  ने कहा और चला  गया 

कुमेल जाना नही चाहता  था  अपने घर  क्यूंकि सज़ी  गली  और उसकी मोहब्बत  के घर  से आ  रही  गानों और ढ़ोल  की आवाज़े  उसके कानो में कह  रही  थी  की तेरी मेहनाज़ को कोइ और लेकर  जा रहा  है  ब्याह कर  और तू  खड़ा  का खड़ा  देखता  रह  जाएगा।

कुमेल घर  गया  और खाना  खा  कर  कमरे  में जाकर  लेट जाता।

तभी  उसकी माँ आती  और पूछती  " बेटा शाम  को मेहनाज़ की शादी  में जाओगे देखों कार्ड आया  था  सपरिवार  बुलाया है  उन्होंने "


कुमेल का दिल अपनी माँ के मुँह से निकले लफ्ज़ सुन कर  बैठ  सा गया  और वो बोला " नही अम्मी आप  लोग जाओ मैं नही जाऊंगा और हाँ पैसे ले जाना लिफाफे में रखने  के लिए  मुझसे  याद से भूलना  मत  "

ठीक  है  बेटा ये कह  कर  वो शादी  का कार्ड वही  छोड़  कर  चली जाती

कुमेल उस कार्ड को उठाता  और उस पर  लिखें मेहनाज़ के नाम को छूता और कहता  मेरी मेहनाज़ मुझे  माफ करदो  मैं तुम्हे अपनी दुल्हन नही बना सका। मैं जानता  हूँ तुम भी  मुझसे  प्यार करती थी  इसी लिए  रोज़ छत  पर  खड़े  हो कर  मेरे आने  का इंतज़ार करती  थी  और मुझे  देख  कर  मुस्कुराती और फिर  नीचे  चली  जाती।


मेने कई  बार सोचा  की अम्मी को तुम्हारे बारे में बताऊ ताकि वो तुम्हारे घर  मेरा रिश्ता ले कर जाए लेकिन फिर  मुझे  अपनी हैसियत  का अंदाजा हो जाता की मैं तुम्हारे लिए  मखमल में लगा  टाट का पेवंद  साबित हूँगा । जो तुम्हे चाह  कर  भी  वो ख़ुशी  नही दे सकता  जो तुम अपने घर  पर  मनाती  हो। यहाँ तुम्हे मेरा प्यार तो मिलता लेकिन उसके अलावा और कुछ  नही। और खाली  प्यार से ज़िन्दगी नही चलती ।


मेरा घर  तुम्हारे लिए  एक दलदल  जैसा साबित होता जिसमे तुम रोज़ धस्ती  जाती क्यूंकि मुझे  खुद  नही पता  की मैं अपने घर  वालो को अब्बू के जाने के बाद इस दलदल  में से कैसे निकालूंगा। मेरी दो बहने  जिनकी शादी  मेने ही   करना  है  मेरा घर  जिसकी दीवारों से प्लास्टर छूट रहा  है  और कभी  भी  ये हम  पर  गिर सकता  है  इस घर  को भी  मेने ही बनवाना  है ।


अब ऐसी दलदल  में कौन बाप अपनी बेटी को धकेलना चाहेगा । जिसमे आप  घुस  तो अपनी मर्ज़ी से सकते  हो पर  निकलना  आप  के हाथ  में नही।

कुमेल की आँखों  से आंसू  निकल रहे  थे ।

तभी  उसका हाथ  मेहनाज़ के होने वाले शोहर  के नाम पर  जाता जिसका नाम डॉक्टर मोहसिन था ।

तुम ऐसा ही लड़के  के योग्य हो जो तुम्हे ज़िन्दगी की सारी खुशियाँ  दे सके । मैं तो तुम्हारे काबिल नही हूँ और शायद  कभी  बन  भी  ना पाउँ और जब  तक  बनूँगा तब  तक  तो तुम मुझे  भूल  भी  जाओगी।

वो अंदर  ही अंदर  रोता हुआ सौ गया ।


बहुत  देर बाद जब  उसकी आँख  खुली तो गली  में शोर  हो रहा  था  उसने छत  पर  चढ़  कर  देखा  तो मेहनाज़ की विदाई  हो रही  थी  और वो किसी और की दुल्हन और उसके नाम की मेहंदी  लगा  कर  डोली में बैठ  रही  थी । ना जाने क्यू अचानक  मेहनाज़ को भी  ऐसा लगा  की कोइ उसे छिप  कर  देख  रहा  है जब  उसने उपर  देखा  तो कुमेल खड़ा  था  जिससे शायद  कभी  उसने अनकही  मोहब्बत  की थी  पर  कह  ना सकी  और आज  उसे छोड़  कर  वो जा रही  थी । उसकी आँखों  में आंसू  भर  आये  कुमेल को देख  कर ।


कुमेल भी  छत  पर  खड़ा  उसे देख  रहा  था  विदा होते हुए । और सोच  रहा  था  कि शायद  लड़को  की ज़िन्दगी इतनी आसान  नही होती जब  तक  वो अपनी ज़िम्मेदारियों से निबट  कर  अपने पेरो पर  खड़े  होते है  तब  तक  उनकी मोहब्बत  को कोइ और ले जाता है । जिम्मेदारियां मोहब्बत  के आगे  जीत  जाती और मोहब्बत  खड़ी  तमाशा देखती  रहती  है ।


उस दिन के बाद कुमेल ने वो घर , वो मोहल्ला और वो शहर  छोड़ने  की ठान  ली और कुछ  महीनों बाद परदेस  चला  गया  क्यूंकि वो गली  और उसकी नाकाम मोहब्बत  उसे उसकी ज़िम्मेदारियों से पीछे  हटा  रही  थी ।



शार्ट story challenge हेतु  प्रेम के जोनर  पर  लिखी  कहानी  







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18 Comments

Shnaya

02-Jun-2022 04:16 PM

👏👌

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नंदिता राय

12-May-2022 06:43 PM

Nice 👍🏼

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Neelam josi

12-May-2022 06:09 PM

👏👏👌

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