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संवाद

संवाद

वो – हक से डांटते हो तो कितना सुकून मिलता है दिल को
        पर तुम्हारी खामोशी तोड़ देती है कुछ अंदर तक।

मैं –  कभी कभी भूल जाता हूं अपनी मर्यादाएं,
        और बह जाता हूं बाढ़ बन कर
        पर बाढ़ हमेशा तो नही रहती ना,
        फिर समेटना पड़ता है अपने किनारों को।

वो –  कठोर भी हो तुम और निष्ठुर भी,
         अभिमानी और कुछ स्वाभिमानी भी
          कुछ गूरूर है तुम को अपनी खुद्दारी का
          हो कुछ बेकरार और कुछ लापरवाह भी।

मैं –    हां मैं एक बेबाक दरिया हूं, निष्ठुर न तुम समझो
          बहता हूं अपनी रवानी में, इसे अभिमान न जानो
          मुझमें वेग भी है और आवेग भी पर नही गुरूर
          हां बेकरार हूं लापरवाह भी पर नही मगरुर
          चाहो तो रोक लो अपने प्यार के बांध से मुझको।

वो –   बहुत घमंड है तुम को अपनी कामयाबी का
          या गलतफहमी में हो अपनी रवानी से
          इतना भी आसान नहीं है रास्ता जिंदगानी का
          सबको चुकाना पड़ता है मोल अपनी जवानी का।

मैं –   नहीं, जिसे घमंड कहती हो वो मेरा स्वाभिमान है
          मेरा वेग ही मेरा तुमसे प्यार का निशान है
          जानता हूं राह मेरी चट्टानों, रोड़ों से अटी है
          पर इन सब से कहां प्यार की रफ्तार घटी है
          ये राह के पत्थर मुझमें संगीत भरते हैं
          जितना रोकते मुझको उतना बेकल भी करते हैं।

          मैं जानता हूं आखिर तुम ही सहारा हो
          मेरी मझधार भी तुम हो तुम्ही किनारा हो
          एक दिन थक के मुझे तुझ में समाना है
          दरिया हूं मैं पागल, तू समंदर सयाना है।।

आभार – नवीन पहल – १०.०५.२०२२ 🙏🌹❤️

# प्रतियोगिता हेतु
         


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20 Comments

Shnaya

12-May-2022 03:22 PM

👏👌🙏🏻

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Soniya bhatt

11-May-2022 07:01 PM

👏👏

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Neelam josi

11-May-2022 05:33 PM

बहुत खूब

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