बेताबी
तेरे बिना मेरे दिल की यह
बेताबी बढ़ती ही जाए,
चाहे कितना भी समझाओ
यह दिल समझ ना पाए;
है क्यों यह बेताब इतना तेरे लिए,
सोचो चाहे मैं जितना
फिर भी जान ना पाऊं;
बेताबी में तेरी यह धड़कनें दिल की
हर पल बढ़ती ही जाएं,
दिखे तड़प और बेताबी मेरी हर किसी को;
बस जिस के लिए तरसे दिन रात यह दिल
वही इस दिल की बेताबी को देख ना पाए!
समाप्त।।
Simrana
मनोज कुमार "MJ"
06-Jul-2021 08:09 PM
Bahut behtareen
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ऋषभ दिव्येन्द्र
06-Jul-2021 08:07 PM
बहुत ही बेहतरीन रचना 👌👌👌👌
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Vfyjgxbvxfg
06-Jul-2021 07:18 PM
हम समझाएं अब आपके दिल को सिमरन जी
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