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प्रेमाश्रम--मुंशी प्रेमचंद


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प्रेमशंकर यह बातें सुन कर गहरे सोच में डूब गये। मैं कितना बेपरवाह हूँ। इन बेचारों को सजा पाये हुए साल भर होने आते हैं और मैंने उनके बाल-बच्चों की सुधि तक न ली। वह सब अपने मन में क्या कहते होंगे? ज्ञानशंकर से बात हार चुका हूँ। लेकिन अब वहाँ जाना पड़ेगा। अपने वचन के पीछे इतने दुखियारों को मरने दूँ? यह नहीं हो सकता। इनका जीवन मेरे वचन से कहीं ज्यादा मूल्यवान है। अकस्मात् बुढ़िया ने कहा–  कहो भैया, अब कुछ नहीं हो सकता? लोग कहते हैं, अभी किसी और बड़े हाकिम के यहाँ फरियाद लग सकती है।

प्रेमशंकर ने इसका कुछ उत्तर न दिया। धन का प्रबन्ध तो कठिन न था, लेकिन उन्हें अपील से उपकार होने की बहुत कम आशा थी। वकीलों की भी यही राय थी। इसीलिए इस प्रश्न को टाल आते थे। डॉक्टर साहब से भी उन्होंने अपील की चर्चा कभी न की थी। प्रियनाथ उनके मुख की ओर ध्यान से देख रहे थे। उनके मन के भावों को भाँप गये और उनके असमंजस को दूर करने के लिए बोले– हाँ, फरियाद लग सकती है, उसका बन्दोबस्त हो रहा है, धीरज रखो, जल्दी ही अपील दायर कर दी जायेगी।

वृद्ध– बेटा, दूधो नहाव फूतो फलो। सुनती हूँ कोई बड़ा डाक्टर था, उसी ने ज़मींदार से कुछ ले-देकर इन गरीबों को फँसा दिया। न हो, तुम दोनों उसी डॉक्टर के पास जा कर हाथ-पैर जोड़ो, कौन जाने तुम्हारी बात मान जाये। उसके आगे भी तो बाल-बच्चे होंगे? क्यों हम गरीबों को बेकसूर मारता है? किसी की हाय बटोरना अच्छा नहीं होता।

प्रेमशंकर जमीन में गड़े जा रहे थे। डॉक्टर साहब को कितना दुःख हो रहा होगा, अपने मन में कितने लज्जित हो रहे होंगे। कहीं बुढ़िया गाली न देने लगे, इसे कैसे चुप कर दूँ? इन विचारों से वह बहुत विकल हो रहे थे, किन्तु प्रियनाथ के चेहरे पर उदारता झलक रही थी, नेत्रों से वात्सल्य-भाव प्रस्फुटित हो रहा था। मुस्कुराते हुए बोले– हम लोग उस डॉक्टर के पास गये थे। उसे खूब समझाया। है तो लालची, पर कहने-सुनने से राह पर आ गया है, अब सच्ची गवाही देगा।

इतने में मस्ता पैसे ले कर आ गया है। प्रेमशंकर ने लकड़ी के दाम दिए। बुढ़िया लकड़ी के साथ आशीर्वाद दे कर चली गयी। द्वार पर पहुँच कर उसने फिर कहा भैया भूल मत जाना, धरम का काम है, तुम्हें बड़ा जस होगा।

उनके चले जाने के बाद कुछ देर तक प्रेमशंकर और प्रियनाथ मौन बैठे रहे। प्रेमशंकर का मुँह संकोच ने बन्द कर दिया था, डॉक्टर का लज्जा ने।

सहसा प्रियनाथ खड़े हो गये और निश्चयात्मक भाव से बोले–  भाई साहब, अवश्य अपील कीजिए। आप आज ही इलाहाबाद चले जाइए। आज के दृश्य ने मेरे हृदय को हिला दिया। ईश्वर ने चाहा तो अबकी सत्य की विजय होगी।  

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