Lekhika Ranchi

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प्रेमाश्रम--मुंशी प्रेमचंद

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यह सोचते-सोचते उनका ध्यान अपनी आर्थिक कठिनाइयों की ओर गया। अभी न जाने यह मुकदमा कितने दिनों चलेगा। इर्फान अली कोई तीन हजार ले चुके और शायद अभी उनका इतना ही बाकी है। गन्ने तैयार हैं, लेकिन हजार रुपये से ज्यादा न ला सकेंगे। बेचारे गाँववालों को कहाँ तक दबाऊँ? फलों से जो कुछ मिला वह सब खर्च हो गया। किसी को अभी हिसाब तक नहीं दिखाया। न जाने यह सब अपने मन में क्या समझते हों। लखनपुर की कुछ खबर न ले सका। मालूम नहीं, उन दुखियों पर क्या बीत रही है।

अकस्मात भोला की स्त्री बुधिया आ कर बोली बाबू, दो दिन से घर में चूल्हा नहीं जला और आपका हलवाहा मेरी जान खाये जाता है। बताइये; मैं क्या करूँ? क्या चोरी करूँ? दिन भर चक्की पीसती हूँ और जो कुछ पाती हूँ, वह सब गृहस्थी में झोंक देती हूँ, तिस पर भी भरपेट दाना नसीब नहीं होता। आप उसके हाथ में तलब न दिया करें। सब जुए में उड़ा देता है। आप उसे न डाँटते हैं, न समझाते हैं। आप समझते हैं कि मजदूरी बढ़ाते ही वह ठीक हो जायेगा। आप उसे हजार का महीना भी दें तो उसके लिए पूरे न पड़ेंगे। आज से आप तलब मेरे हाथ में दिया करें!

प्रेमशंकर– जुआ खेलना तो उसने छोड़ दिया था?

बुधिया– वही दो-एक महीने नहीं खेला था। बीच-बीच में कभी छोड़ देता है, लेकिन उसकी तो लत पड़ गयी है। आप तलब मुझे दे दिया करें, फिर देखूँ कैसे खेलता है। आपका सीधा सुभाव है, जब माँगता है तभी निकाल कर दे देते हैं।

प्रेम– मुझसे तो वह यही कहता है कि मैंने जुआ छोड़ दिया। जब कभी रुपये माँगता है, तो सहज कहता है कि खाने को नहीं है। न दूँ तो क्या करूँ?

बुधिया– तभी तो उसके मिजाज नहीं मिलते। कुछ पेशगी तो नहीं ले गया है?

प्रेम– उसी से पूछो, ले गया होगा तो बतायेगा न।

बुधिया– आपके यहाँ हिसाब-किताब नहीं है क्या?

प्रेम– मुझे कुछ याद नहीं है।

बुधिया– आपको याद नहीं है तो वह बता चुका! शराबियों- जुआरियों के भी कहीं ईमान होता है?

प्रेम– क्यों, क्या शराब से ईमान धुल जाता है?

बुधिया– धुल नहीं जाता तो और क्या? देखिए, बुलाके आपके मुँह पर पूछती हूँ। या नारायण निगोड़ा तलब की तलब उड़ा देता है, उस पर पेशगी ले कर खेल डालता है। अब देखूँ, कहाँ से भरता है?

यह कह कर वह झल्लायी हुई गयी और जरा देर से भोला को साथ लिये आयी। भोला की आँखें लाल थीं। लज्जा से सिर झुकाये हुए था। बुधिया ने पूछा, बताओ तुमने बाबू जी से कितने रुपये पेशगी लिये हैं?

भोला– ने स्त्री की ओर सरोष नेत्रों से देख कर कहा– तू कौन होती है पूछने वाली? बाबू जी जानते नहीं क्या?

बुधिया– बाबूजी ही तो पूछते हैं, नहीं तो मुझे क्या पड़ी थी?

भोला– इनके मेरे ऊपर लाख आते हैं और मैं इनका जन्म भरका गुलाम हूँ।

बुधिया– देखा बाबूजी! कहती न थी, वह कुछ न बतायेगा? जुआरी कभी ईमान के सच्चे हुए हैं कि यही होगा?

भोला– तू समझती है कि मैं बातें बना रहा हूँ। बातें उनसे बनायी जाती हैं जो दिल के खोटे होते हैं, जो एक धेला दे कर पैसे का काम कराना चाहते हैं। देवताओं से बात नहीं बनायी जाती। यह जान इनकी है, यह तन इनका है, इशारा भर मिल जाय।

बुधिया– अरे जा, जालिए कहीं के! बाबू जी बीसों बार समझा के हार गये। तुझसे एक जुआ तो छोड़ा जाता नहीं, तू और क्या करेगा? जान पर खेलने वाले और होते हैं।

भोला– झूठी कहीं की, मैं कब जुआ खेलता हूँ?

प्रेम– सच कहना भोला, क्या तुम अब भी जुआ खेलते हो? तुम मुझसे कई बार कह चुके हो कि मैंने बिलकुल छोड़ दिया।

भोला का गला भर आया। नशे में हमारे मनोभाव अतिशयोक्तिपूर्ण हो जाते हैं। वह जोर से रोने लगा। जब ग्लानि का वेग कम हुआ तो सिसकियाँ लेता हुआ बोला– मालिक, यह आपका एक हुकूम है, जिसे मैंने टाला है। और कोई बात न टाली। आप मुझे यहीं बैठा कर सिर पर १०० जूते गिन कर लगायें, तब यह भूत उतरेगा। मैं रोज सोचता हूँ कि अब कभी न खेलूँगा, पर साँझ होते ही मुझे जैसे कोई ढकेल कर फड़ की ओर ले जाता है। हा! मैं आप से झूठ बोला, आप से कपट किया! भगवान् मेरी क्या गति करेंगे? यह कह कर वह फिर फूट-फूट कर रोने लगा!

लज्जा-भाव की यह पवित्रता देख कर प्रेमशंकर की आँखें भर आयीं। वह शराबी और जुआरी भोला, जिसे वह नीच समझते थे, ऐसा पवित्रात्मा, ऐसा निर्मल हृदय था! उन्होंने उसे गले लगा लिया, तुम रोते क्यों हो? मैं तुम्हें कुछ कहता थोड़े ही हूँ।

भोला– आपका कुछ न कहना ही तो मुझे मार डालता है मुझे गालियाँ दीजिए कोडे़ से मारिए, तब यह नशा उतरेगा। हम लातों के देवता बातों से नहीं मानते।

प्रेम– तुम्हारी तलब बुधिया को दे दिया करूँ?

भोला– जी हाँ, आज से मुझे एक कौड़ी भी न दिया करें।

प्रेम– (बुधिया से) लेकिन जो यह जुए से भी बुरी कोई आदत पकड़ ले तो?

बुधिया– जुएँ से बुरी चोरी है, जिस दिन इसे चोरी करते देखूँगी, जहर दे दूँगी। मुझे राँड़ बनना मंजूर है, चोर की लुगाई नहीं बन सकती।

उसने भोला का हाथ पकड़ कर घर चलने का इशारा किया और प्रेमशंकर के लिए एक जटिल समस्या छोड़ गयी।

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