इंतेजार
बरसों से जिसका हम को इंतज़ार था
जिसके लिए दिल ये कब से बेकरार था
गुजरते थे गलियों से बस उसकी एक झलक को
जर्रा जर्रा पहचानने लगा था उसके बाजार का
आज वो आया भी मिलने तो ऐसे मौके पे
अपनी जगह से उठने को भी मैं लाचार था
अधूरा ही रह जाता था सपना दीदार का
पर्दे में अक्सर रहता था चेहरा यार का
आज हम कब्र में हैं तो वो आए हैं बेपर्दा
हाए कैसे पूरा हो ख्वाब दीदार-ए-यार का
आज मेरे हालात पर सब गमज़दा हैं यूँ
आँसू बहाने लगा था पत्थर मजार का
क्या हुआ जो मिल नही पाए हम इस जन्म में
अगले जन्म में पाएंगे साथ अपने प्यार का😊
Aliya khan
03-Jul-2021 09:53 AM
Behtarin
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