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प्रेमाश्रम--मुंशी प्रेमचंद

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यह इस चिन्ता में बैठे हुए थे कि शीलमणि की सवारी आ पहुँची। ज्ञानशंकर ने निश्चय किया, स्वयं चलकर उससे अपना समाचार कहूँ। अभी तीनों महिलाएँ कुशल समाचार ही पूछ रही थीं कि वह कुछ झिझकतें हुए ऊपर आये और कमरे के द्वार पर चिलमन के सामने खड़े होकर शीलमणि से बोले– भाभी जी को प्रणाम करता हूँ।

विद्या उनका आशय समझ गयी। लज्जा से उसका मुखमण्डल अरुण वर्ण हो गया। वह वहाँ से उठकर ज्ञानशंकर को अवेहलनापूर्ण नेत्रों से देखते हुए दूसरे कमरे में चली गयी। श्रद्धा, मध्यस्थ का काम देने के लिए रह गयी।

ज्ञानशंकर बोले– भाई साहब तो पर्दे के भक्त नहीं हैं, और जब हम लोगों में इतनी घनिष्ठता हो गयी है तो यह हिसाब उठ जाना चाहिए। मुझे आपसे कितनी ही बातें कहनी हैं। परमात्मा ने आपको शील और विनय के गुणों से विभूषित किया है, इसीलिए मुझे आपसे निज के मामलों में जबान खोलने का साहस हुआ है। मुझे विश्वास है कि आप उसकी अवज्ञा न करेंगी। मेरा इजाफा लगान का मुकदमा भाई साहब के इजलास में दो महीनों से पेश है। उनका इतना अदब करता हूँ कि इस विषय में उनसे कुछ कहते हुए संकोच होता है। यद्यपि मुझे वह भाई समझते हैं, लेकिन किसी कारण से उन्हें भ्रम होता हुआ जान पड़ता है कि मेरा दावा झूठा है और मुझे भय है कि कहीं वह खारिज न कर दें। इसमे सन्देह नहीं कि दावे को खारिज करने का उन्हें बहुत दुःख होगा, लेकिन शायद उन्हें अब तक मेरी वास्तविक दशा का ज्ञान नहीं है। वह यह नहीं जानते कि इससे मेरा कितना अपमान और कितना अनिष्ट होगा। आजकल की जमींदारी एक बला है। जीवन की सामग्रियाँ दिनों-दिन महँगी होती जाती हैं और मेरी आमदनी आज भी वही है जो तीस वर्ष पहले थी। ऐसी अवस्था में मेरे उद्धार का इसके सिवा और क्या उपाय है कि असामियों पर इजाफा लगान करूँ। अन्न मोतियों के मोल बिक रहा है। कृषकों की आमदनी दुगनी, बल्कि तिगुनी हो गयी है। यदि मैं उनकी बढ़ी हुई आमदनी में से एक हिस्सा माँगता हूँ तो क्या अन्याय करता हूँ? अगर मेरी जीत हुई तो सहज में ही मेरी आमदनी एक हजार बढ़ जायेगी। हार हुई तो असामियों की निगाह में गिर जाऊँगा। वह शेर हो जायेंगे और बात-बात पर मुझसे उलझेंगे। तब मेरे लिए इसके सिवा और मार्ग न रहेगा कि जमींदारी से इस्तीफा दे दूँ और मित्रों के सिर जा पड़ूँ। (मुस्कराकर) आप ही के द्वार पर अड्डा जमाऊँगा और यदि आप मार-मार कर हटायें, तो हटने का नाम न लूँगा।

शीलमणि ने यह विवरण ध्यानपूर्वक सुना और श्रद्धा से बोली–  आप बाबू जी से कह दें, मुझे यह सुनकर बड़ा खेद हुआ। आपने पहले इसका जिक्र क्यों नहीं किया? विद्या ने भी इसकी चर्चा नहीं की, नहीं तो अब तक आपकी डिगरी हो गयी होती। किन्तु आप निश्चिन्त रहें। मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि अपनी ओर से आपकी सिफारिश करने में कोई बात उठा न रखूँगी।

ज्ञान– मुझे आपसे ऐसी ही आशा थी। दो-चार दिन में भाई साहब मौका देखने जायेंगे। इसलिए उनसे जल्द ही इसकी चर्चा कर दें।

शील– मैं आज जाते ही कहूँगी। आप इत्मीनान रखें।

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1 Comments

Gunjan Kamal

18-Apr-2022 05:22 PM

👏👌🙏🏻

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