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प्रेमाश्रम--मुंशी प्रेमचंद


प्रेमाश्रम मुंशी प्रेम चंद (भाग-3)

16.

प्रेमशंकर यहाँ दो सप्ताह ऐसे रहे, जैसे कोई जल्द छूटने वाला कैदी। जरा भी जी न लगता था। श्रद्धा की धार्मिकता से उन्हें जो आघात पहुँचा था उसकी पीड़ा एक क्षण के लिए भी शान्त न होती थी। बार-बार इरादा करते कि फिर अमेरिका चला जाऊँ और फिर जीवन पर्यन्त आने का नाम न लूँ। किन्तु यह आशा कि कदाचित् देश और समाज की अवस्था का ज्ञान श्रद्धा में सद् विचार उत्पन्न कर दे, उसका दामन पकड़ लेती थी। दिन-के-दिन दीवानखाने में पड़े रहते, न किसी से मिलना, न जुलना, कृषि-सुधार के इरादे स्थगित हो गये। उस पर विपत्ति यह भी कि ज्ञानशंकर बिरादरी वालों के षड्यन्त्रों के समाचार ला-लाकर उन्हें और भी उद्विग्न करते रहते थे। एक दिन खबर लाए कि लोगों ने एक महती सभा करके आपको समाज-च्युत करने का प्रस्ताव पास कर दिया। दूसरे दिन ब्राह्मणों की एक सभा की खबर लाये, जिसमें उन्होंने निश्चय किया था कि कोई प्रेमशंकर के घर पूजा-पाठ करने न जाये। इसके एक दिन पीछे श्रद्धा के पुरोहित जी ने आना छोड़ दिया। ज्ञानशंकर बातों-बातों में यह भी जता दिया करते थे कि आपके कारण मैं बदनाम हो रहा हूँ और शंका है कि लोग मुझे भी त्याग दें। भाई के साथ तो यह व्यवहार था, और विरादरी के नेताओं के पास आकर प्रेमशंकर के झूठे आक्षेप करते, वह देवताओं को गालियाँ देते हैं, कहते हैं, मांस सब एक है, चाहे किसी का हो। खाना खाकर कभी हाथ-मुँह तक नहीं धोते, कहते हैं, चमार भी कर्मानुसार ब्राह्मण हो सकता है। यह बातें सुन-सुन कर बिरादरी वालों की द्वेषाग्नि और भी भड़कती थी, यहाँ तक कि कई मनचले नवयुवक तो इस पर उद्यत थे कि प्रेमशंकर को कहीं अकेले पा जायें तो उनकी अच्छी तरह खबर लें। ‘तिलक’ एक स्थानीय पत्र था। उसमें इस विषय पर खूब जहर उगला जाता था। ज्ञानशंकर नित्य वह पत्र लाकर अपने भाई को सुनाते और यह सब केवल इस लिए कि वह निराश और भयभीत होकर यहाँ से भाग खड़े हों और मुझे जायदाद में हिस्सा न देना पड़े। प्रेमशंकर साहस और जीवट के आदमी थे, इन घमकियों की उन्हें परवाह न थी, लेकिन उन्हें मंजूर न था। की मेरे कारण ज्ञानशंकर पर आँच आये। श्रद्धा की ओर से भी उनका चित्त फटता जाता था। इस चिन्तामय अवस्था का अन्त करने के लिए वह कही अलग जाकर शान्ति के साथ रहना और अपने जीवनोद्देश्य को पूरा करना चाहते थे। पर जायँ कहाँ? ज्ञानशंकर से एक बार लखनपुर में रहने की इच्छा प्रकट की थी, पर उन्होंने इतनी आपत्तियाँ खड़ी की, कष्टों और असुविधाओं का एक ऐसा चित्र खींचा कि प्रेमशंकर उनकी नीयत को ताड़ गये। वह शहर के निकट ही थोड़ी सी ऐसी जमीन लेना चाहते थे, जहाँ एक कृषिशाला खोल सकें। इसी धुन में नित्य इधर-उधर चक्कर लगाया करते थे। स्वभाव में संकोच इतना कि किसी से अपने इरादे जाहिर न करते। हाँ, लाला प्रभाशंकर का पितृवत प्रेम और स्नेह उन्हें अपने मन के विचार उनसे प्रकट करने पर बाध्य कर देता था। लाला जी को जब अवकाश मिलता, वह प्रेमशंकर के पास आ बैठते और अमेरिका के वृत्तान्त बड़े शौक से सुनते। प्रेमशंकर दिनों-दिन उनकी सज्जनता पर मुग्ध होते जाते थे। ज्ञानशंकर तो सदैव उनका छिद्रान्वेषण किया करते पर उन्होंने भूलकर भी ज्ञानशंकर के खिलाफ जबान नहीं खोली। वह प्रेमशंकर के विचारों से सहमत न होते थे, यही सलाह दिया करते थे कि कहीं सरकारी नौकरी कर लो।

एक दिन प्रेमशंकर को उदास और चिंतित देखकर लाला जी बोले– क्या यहाँ जी नहीं लगता?

प्रेम– मेरा विचार है कि कहीं अलग मकान लेकर रहूँ। यहाँ मेरे रहने से सबको कष्ट होता है।

प्रभा– तो मेरे घर उठ चलो, वह भी तुम्हारा ही घर है। मैं भी कोई बेगाना नहीं हूँ वहाँ तुम्हें कोई कष्ट न होगा। हम लोग इसे अपना धन्य भाग समझेंगे कहीं नौकरी के लिए लिखा?

प्रेम– मेरा इरादा नौकरी करने का नहीं है।

प्रभा– आखिर तुम्हें नौकरी से इतनी नफरत क्यों है? नौकरी कोई बुरी चीज है?

प्रेम– जी नहीं, मैं उसे बुरा नहीं कहता। पर मेरा मन उससे भागता है।

प्रभा– तो मन को समझाना चाहिए न? आज सरकारी नौकरी का जो मान-सम्मान है, वह और किसका है? और फिर आमदनी अच्छी, काम कम, छुट्टी ज्यादा। व्यापार में नित्य हानि का भय, जमींदारी में नित्य अधिकारियों की खुशामद और असामियों के बिगड़ने का खटका, नौकरी इन पेशों से उत्तम है। खेती-बारी का शौक उस हालत में भी पूरा हो सकता है। यह तो रईसों के मनोरंजन की सामग्री है। अन्य देशों के हालात तो नहीं जानता, पर यहाँ किसी रईस के लिए खेती करना अपमान की बात है। मुझे भूखों मरना कबूल है, पर दूकानदारी या खेती कबूल नहीं है।

प्रेम– आपका कथन सत्य है, पर मैं अपने मन से मजबूत हूँ। मुझे थोड़ी-सी जमीन की तलाश है, पर इधर कहीं नजर नहीं आती।

प्रभा– अगर किसी पर मन लगा है तो करके देख लो। क्या करूँ, मेरे पास शहर के निकट जमीन नहीं है, नहीं तुम्हें हैरान न होना पड़ता। मेरे गाँव में करना चाहो तो जितनी जमीन चाहो उतनी मिल सकती है, मगर दूर है।

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1 Comments

Gunjan Kamal

18-Apr-2022 05:30 PM

👏👌👌🙏🏻

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