गैर लें महफ़िल में (मिर्जा गालिब)
ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के हम रहें यूँ तिश्ना-लब पैग़ाम के ख़स्तगी का तुम से क्या शिकवा कि ये हथकण्डे हैं चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम के ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के रात पी ज़मज़म पे मय और सुब्ह-दम धोए धब्बे जामा-ए-एहराम के दिल को आँखों ने फँसाया क्या मगर ये भी हल्क़े हैं तुम्हारे दाम के शाह के है ग़ुस्ल-ए-सेह्हत की ख़बर देखिए कब दिन फिरें हम्माम के इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया वर्ना हम भी आदमी थे काम के
Sachin dev
15-Apr-2022 02:48 PM
Very nice 👌
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Gunjan Kamal
14-Apr-2022 06:02 PM
बहुत खूब
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