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माय आर्मी लव ♥️ ए स्पाई लव स्टोरी.....(भाग - 13)

भाग - 13
अभी तक आपने देखा राज दादा और बाकी दादा इतना शॉक एक दूसरे को देख नही होते जितना स्नेहल को देख हो जाते है । 
और राज दादा के मुंह से बस एक शब्द निकाला :" परी....

स्नेहल - परी....कौन परी जी...?

राज दादा अपना हाथ स्नेहल के चेहरे पर लाते है और उनकी आंखे पूरे पचपन साल बाद फिर से नम हो जाती है।
स्नेहल डरते हुए - जी....जी मै जानबूझ कर न...नही लड़ी, आप थप्पड़ मत मारना।

राज दादा अपना हाथ हटा लेते है। और स्नेहल वहा से भाग जाती है।

सुमेध आकर - क्या हुआ  दादा जी..?

राज दादा - कुछ नही... वो लड़की...?

सुमेध - स्नेहल है।

नवनीत - हम लोगो की दोस्त

इधर आलोक प्राजिका को संभाले उसकी आंखो में खोया था। 
प्राजिका - मजा आ रहा है..? अब छोड़ो भी।

आलोक तुरंत हड़बड़ा कर प्राजिका को छोड़ देता है और प्राजिका जमीन पर गिर जाती है।
प्राजिका गुस्से में - छोड़ा क्यू..?

आलोक - अभी तो आप बोली छोड़ो...तो

प्राजिका - जानते भी हो कोई भी मुझे चोट नही पहुंचा सकता..? और तुम बुद्धू लड़के

स्नेहल प्राजिका के पास आती है। और प्राजिका को लिए मुद्रा के पास चली जाती है।

चारो बॉयज अपने अपने दादा जी के पास आते है
सुमेध - ये है मेरे दादू राज

श्याम मोहन दादा जी - राज वीर शेखावत....!

जगजीवन दादा जी - श्याम मोहन तिवारी...!

राज वीर दादा - जग जीवन शर्मा....!

नवनीत - आप सब जानते है क्या एक दूसरे को...? 

जगजीवन दादा जी - बताया था न मेरे तीन यार.... उनमें से दो ये ही है।

नवनीत - तो चौथा यार किधर है..? कही सुखविंदर दादा आप तो नहीं...?

राज दादा जी - सगाई का टाइम हो रहा चलो अन्दर सब

जग जीवन दादा और श्याम मोहन दादा राज दादा के गले लग जाते है।
जग्गू दादा - पूरे पचपन साल बाद मिला है....गले नही मिलेगा यार...?

श्याम मोहन दादा - तू कितना बदल गया ....हमे बिना बताए ही गायब हो गया...?

तभी अंदर से प्रविष्ठ की मां आती है।
नैना जी - अरे बच्चो यहां हो चलो सगाई का टाइम निकला जा रहा।

सभी अंदर आते है। और प्रविष्ठ बैठा मुद्रा का वेट कर रहा होता है कि मुद्रा स्नेहल और प्राजिका के साथ आती है। 
प्रविष्ठ उसे अपने पास लाता है और दोनो एक दूसरे को रिंग पहनाते है। सभी तालिया बजाने लगते है।
नवनीत फूल फेक रहा होता है कि कोई उसके ऊपर फुल फेकने लगता है
नवनीत सामने देखते हुए - अरे सामने दूल्हा दुल्हन उनपर फूल फेको

" नही मै तो अपने दामाद पर ही फूल फेकूंगा "
नवनीत बगल में देखता है तो ब्रिगेडियर सर होते है नवनीत उन्हे देख चौक जाता है। और थोड़ी दूर पर देखता है तो सुकून स्नेहल और प्राजिका से बाते कर रही होती है

नवनीत प्रविष्ठ के सामने खड़े होकर उसे गुस्से में घूरने लगता है
प्रविष्ठ मन में - ये मुझे ऐसे क्यू घूर रहा जैसे मै इसके हिस्से की मिठाई खा गया...?

नवनीत इशारे में उसे कोने में आने को बोलता है 
आलोक दोनो को देखते हुए सुमेध को बोलता है - यार इनकी दोस्ती ठीक है पर नवी कोने में ऐसे बुला रहा....मेहमान क्या सोचेंगे।

सुमेध - मेहमान सोचे न सोचे तू बहुत गलत सोच रहा। 

प्रविष्ठ उसके पास जैसे ही  आता है नवनीत अपने हाथ को प्रविष्ठ के गले में डाल उसे घसीटते हुए ले जाता है। आलोक और सुमेध भी उनके पीछे भागते है।
दोनो वहा जाते है तो नवनीत प्रविष्ठ को पिट रहा होता है। 
आलोक - अरे क्यू मार रहा बेचारे की सगाई है आज

नवनीत - ब्रिगेडियर और उस लड़की को कौन बुलाया..?

प्रविष्ठ - अरे....ये आलोक ही बोला मेहमान भगवान तो बुला लिया

नवनीत गुस्से में आलोक को देख - क्या...? तू बुलाया..?

आलोक सुमेध के पिछे छुप - माफ कर दे भाई।

नवनीत - आज तू नही बचेगा।

सुमेध - यहां चालु मत हो जाओ बाहर सब सोच रहे होंगे कि किधर गए चारो । अभी चलो

नवनीत - तुझे रात में देखूंगा ।

सभी बाहर आते है तो चारो दादा पास बैठे होते है। 
प्रविष्ठ - इतने सालो बाद आप लोग मिले...कुछ गप शप नही करेंगे...? 

श्याम मोहन दादा - अब तो बोलने के लिए शब्द नही....बस आंखो ही आंखो में हाल चाल ले लिए

नवनीत - बढ़िया है तुम तीनो के दादा जी दोस्त निकले.... सुख विंदर दादू आप क्यू नही बने इनके दोस्त..?

जग्गू दादा - क्युकी हमारा दोस्त मनु....

राज दादा - उसका नाम मत लो

नवनीत - क्यू...? बताइए शायद उनको भी खोज दे हम।

राज दादा - नही खोज सकते तुम लोग उसे... नही आयेगा वो खुदगर्ज 
और उठकर चले जाते है। 

सुमेध - पर दादू

राज दादा - रात को बात होगी।

सुमेध - दा....

राज दादा - बोले न हम कि रात में बात होगी।
और दूसरी ओर चले जाते है।

प्रविष्ठ - कुछ तो गड़बड़ है जो दादू लोग बता नही रहे।

सुख विंदर दादा जी - कुछ गड़बड़ नही है बच्चो। जाओ पार्टी एंजॉय करो।

प्रविष्ठ मुद्रा के पास आता है। सभी उन्हे नाचने को बोलते है।  
लाइट्स ऑफ होती है और प्रविष्ठ मुद्रा का हाथ अपने हाथ में लेता है।

जनम जनम जनम साथ चलना यूँही
कसम तुम्हें कसम आके मिलना यहीं
एक जाँ है भले दो बदन हो जुदा
मेरी होके हमेशा ही रहना
कभी ना कहना अलविदा

प्रविष्ठ गाने के लिरिक्स गुनगुनाते हुए 

मेरी सुबह हो तुम्ही
और तुम्ही शाम हो
तुम दर्द हो तुम ही आराम हो
मेरी दुआओं से आती है बस ये सदा
मेरी होके हमेशा ही रहना
कभी ना कहना अलविदा
हा हा हा.. ओ..
मेरी होके हमेशा ही रहना
कभी ना कहना अलविदा 

स्नेहल खड़ी होती है कि उसकी नजर राज दादा पर जाती है जो उसी को देखे जा रहे थे। 
स्नेहल मन में - ये... म...मुझे ऐसे क्यू देख रहे...?

अचानक से अंधेरे में स्नेहल का हाथ कोई पकड़ लेता है। स्नेहल चिल्लाने वाली होती है कि कोई इसके मुंह पर हाथ रखता है। 
स्नेहल हाथ हटाते हुए धीरे से - सुमेध जी आप...? मै डर गई थी....पर दूर हटिए कोई देख लेगा

सुमेध हाथ पकड़े हुए - अब ये साथ और हाथ कभी नही छूटने वाला।
दोनो एक दूसरे को देखने लगते है 

तेरी बाहों में है
मेरे दोनों जहां
तू रहे जिधर
मेरी जन्नत वहीँ
जल रही अगन
है जो ये दो तरफ़ा
न बुझे कभी
मेरी मन्नत यही
तू मेरी आरज़ू
मैं तेरी आशिकी
तू मेरी शायरी
मैं तेरी मौसीक़ी..
तलब तलब तलब
बस तेरी है मुझे
नशों में तू नशा
बनके घुलना यूँही
मेरी मोहब्बत का करना तू
हक़ ये अदा
मेरी होके हमेशा ही रहना
कभी न कहना अलविदा..
अलविदा.. ओ..

सुकून खड़ी होती है अचानक से देखती है नवनीत उसके पास आ रहा होता है।
सुकून - तुम ...देखो मुझे 

नवनीत - पहली बात तुम्हारे पास नही आ रहा... अपनी भाभी के पास का रहा हु। साइड प्लीज
और चला जाता है। सुकून उसे जाते हुए देखने लगती है।
तो सभी गर्ल्स मुद्रा के पास होती है। मुद्रा सबको पास बुलाती है। सभी दोस्त आ जाते है। 
मुद्रा - चलो अब सुमेध और स्नेहल बताओ क्या चक्कर है..?

स्नेहल - क...क्या चक्कर है..?

नवनीत - सब दिख रहा। ये बताओ कैसे कब मिले..? और सब बात क्लियर कैसे हुई..?

सुमेध - पहले आलोक को लेता आऊ....!

सुमेध आलोक के पास जाता है तो आलोक हाथ में चाट लिए खाली चम्मच चाट रहा होता है और कही देख रहा होता है। सुमेध देखता है तो आलोक प्राजिका को ही निहार रहा होता है

सुमेध आलोक के बगल में खड़े होकर - ऐसे मत देख उस लड़की को

आलोक खोए हुए - क्यू....देखने दे

सुमेध - उसका भाई खूब मारेगा

आलोक - उसके भाई को कैसे पता चलेगा कि मै उसकी बहन को निहार रहा.?

सुमेध आलोक के गले में हाथ डाल - क्युकी मै ही उस लड़की मतलब प्राजिका का भाई हू

आलोक के हाथ से चाट गिर जाता है और वो घबरा कर सुमेध को देखता है फिर प्राजिका की ओर देखता है।

आलोक - मतलब ये लड़की...प्राजू मेरी प्राजिका

सुमेध - हा मेरी प्राजिका,,वही प्राजिका जिसको तू ठुकरा दिया। और अब तू मेरी बहन को लफंगे जैसे ताड़ रहा..? सच में मेरी बहन इतनी शांत सुंदर सुशील संस्कारी है कि तेरे जैसे संत का मन विचलित कर दी। और भूल गया अपनी उस अनजाने प्यार को...?

आलोक - अब क्या ही बोलु...? 

सुमेध - ठुकरा के मेरी बहन को अब तू मेरा इंतकाम देखेगा। ज्यादा घूरना मत मेरी बहन को। वो आंखे नोच लेती है।

आलोक - अब कैसे बताऊं.... कि तुम्हारी प्राजिका ही मेरा खोया एकतरफा प्यार है। जिसके लिए सबको ठुकराता रहा और जो मुझे आज तक मिली नही।

अचानक से प्रविष्ठ चिल्लाता है - क्या...?
नवनीत के मुंह से आलू की टिक्की नीचे गिर जाती है। 

सुमेध , प्रविष्ठ और आलोक - सच में...?

आलोक मायूस होकर - हु......हु..... तेरी प्राजू तेरी नही मेरी अंजानी लड़की मेरा प्यार।

प्रविष्ठ खुश होकर - वाह भाई अब तो काम आसान हो गया। दो दोस्त जीजा साला बन जायेंगे..... 

सुमेध - नही.... तू तो अपने जज्बातों का वास्ता देकर मना किया था जा अब तड़प। आया बड़ा मेरी बहन को ठुकराने वाला। अभी चलो सब वेट कर रहे।

और सुमेध चला जाता है।
आलोक - ये बहन के प्यार में अंधा भाई अब गिन गिन के बदला लेगा । मेरी मति मारी गई थी,एक बार प्राजिका का फोटो तो देख लिया होता

नवनीत जोरो जोरो से हंसने लगता है।
प्रविष्ठ - ये चुडैल जैसे क्यू हंस रहा..?

नवनीत - मुझे कितना चिढ़ाते थे तुम लोग...? अब मै हंसूंगा और तुम लोग रोओगे....... ऊपर वाला जब भी देता ,देता झपड़ फाड़ के।

सभी गर्ल्स के पास आते है। प्राजिका भी उन लोगो के पास आती हैं।
प्राजिका - स्नेहल ये है मेरे भाई सुमेध 

स्नेहल हैरानी से सुमेध को देखती है।
स्नेहल - आ....आप प्राजू के भाई..?

सुमेध - हा.... ये बात हम आर्मी कैंप में भी छिपाए तुमसे।

प्राजिका - क्या दोनो लोग जानते हो एक दुसरे को..?

स्नेहल - हा तू राज दादू से बोकलर मूझे परमिशन दिलवाई थी न... वहां आर्मी कैंप में यहीं खडूस और सडू कैप्टन थे जिसकी बात फोन पर करती थी तुझसे।

सुमेध - खडूस और सडू कैप्टन ?

स्नेहल - वो....वो पुरानी बात हो गई अब तो हम ......

सभी एक साथ - हम....?

स्नेहल - आर्मी कैंप से जब जा रही थी सुमेध जी एक पैकेट दिए थे बोले ट्रेन में खोलना। और जब ट्रेन में मै खोली तो लाल दुपट्टा था क्युकी सुमेध जी मेरा दुपट्टा फाड़ दिए थे और एक खत था।

प्राजिका - नॉट बैड भाई.... खत...?

स्नेहल - हा उसमे लिखा था स्नेहल..... ये बात अभी तुमसे बोल रहा क्युकी पता है आज के बाद हम नही मिलेंगे। तुम और आलोक एक दूसरे से प्यार करते हो..... पर मै पहली नजर से ही तुमसे प्यार करने लगा था। पर मैं अपने दोस्त के प्यार के बीच नही आ सकता, तुम्हे डाट लगाता रुडली बात करता कि तुमसे दूर रह पाऊं,,पर नही रह पाया........ तुम भूल जाओ इस बात तो जो मै अभी बताया। बस तुम्हे बिना बताए रह नही पाया। जरूरी नही हम जो चाहे हमे मिल ही जाए

सभी एक साथ - ओह हो

स्नेहल - पर मै तो इनसे पहले से ही प्यार करने लगी थी। तो बस उस दिन यकीन हो गया सुमेध जी भी मुझसे प्यार करते है। और जब पता चला शादी में मिलेंगे हम तो सुमेध जी का दिया दुपट्टा पहन आई और सुमेध जी समझ गए मेरे दिल का हाल। और टैक्सी में सुमेध जी बताए कि आलोक जी क्लियर कर दिए बात। कि वो किसी लड़की को चाहते है जिसको न जानते है न मिले है।

प्राजिका ताली बजाते हुए - वाह क्या प्यार है आपका 

आलोक घबराते हुए सुमेध को देख - शुक्रिया।

प्रविष्ठ - ओह चलो सुमेध की गाड़ी पटरी पर आ गई।

स्नेहल - अब बस आलोक जी को उनका प्यार कही दिख जाए

नवनीत धीरे से - दिख गया वो भी बड़ी जोरो से

अचानक से सुकून उनके पास आकर - क्या मै आप लोगो के साथ बैठ जाऊं..?

नवनीत - नही....!

स्नेहल - सुकून जी आईए न...! नवनीत जी आप इन्हे क्यू मना कर रहे....आप तो

नवनीत - कुछ नही.....! मै बस नही जानता इस लड़की को।
और चला जाता है। 
सुकून - शायद मै कुछ ज्यादा ही बुरे लहजे में बात कर ली इनसे....ज्यादा गुस्सा है क्या..?

आलोक - अरे मान जाएगा

प्रविष्ठ - नही मानेगा.....इतने सालो से जानता हु । जल्दी किसी बात का बुरा नही मानता पर मान गया तो.......

सुकून - कोई बात नही। मै गुस्सा की हू माफी भी मै मांगुगी।

तभी मुद्रा की मां आती है और बाकी लोगो के मम्मी पापा।
मुद्रा की मां - आज सब यहीं होटल में ही रुकेंगे..... चलो लडकियो चेंज कर लो । सबको आराम करना है।

सभी गर्ल्स साथ में मुद्रा के साथ जाती है। और बॉयज साथ मे होटल रूम में जाते है। 
राज दादा अपने रूम में होते है कि श्याम मोहन दादा और जग्गू दादा उनके पास आते है।

राज दादा बिना उनकी ओर देखे - तुम लोग क्यू आए हो...?

श्याम मोहन दादा - क्या यार राजू..... कितने दिन बाद मिले अब तो खुलकर बात कर।

जग्गू दादा - ये जय अपने विरु से कितने साल अकेला रहा  अब नही। आज निकाल दे अपने सारे जख्म को दिल से। हम फिर से साथ होंगे।

राज दादा - हम ...? हम पूरे कहा है...? वो आएगा क्या..?

इधर नवनीत बेड पर लेटे हुए - कुछ गड़बड़ है....! 

प्रविष्ठ - हा तो इतना छोला नही खाना चाहिए था न..

नवनीत प्रविष्ठ के ऊपर तकिया फेक - ओए.....दादू लोगो का कुछ गड़बड़ लगता है। सिर्फ तीन....जबकि है चार यार। वो चौथा कौन है...... कुछ तो राज है ।

सुमेध - चल सो जा जग्गा जासूस। सुबह उठ कर बहुत काम करने है।
सभी सो जाते है। स्नेहल मुद्रा प्राजिका साथ में सोई होती है। रात में स्नेहल को प्यास लगती है तो वो पानी पीने के लिए जग उठाती है पर जग में पानी नहीं होता। तो वो बाहर आती है पानी लेने।
वो जैसे ही पानी लेने आती है। वहां बाहर उसे राज दादा टहलते हुए दिखते है। 
स्नेहल जल्दी जल्दी भागने लगती है वहा से। और गिर जाती है। राज दादू आकर उसे उठाते है।
राज दादा जी - आप ठीक है प... मतलब स्नेहल

स्नेहल - मै....मै ठीक हु। चलती हू 

और जाने लगती है। 
तभी राज दादा - पानी तो लेते जाइए।

स्नेहल पानी का जग उठाती है। और जाने के चक्कर में खुद पर  गिरा देती है।
राज दादा उसके पास आते हुए - ये क्या की आप...? रुकिए...मै ...

स्नेहल पीछे हटते हुए - क....क्या..? मै ठीक हु

राज दादा जी उसका हाथ पकड़ - चलिए बाहर तौलिया है ले लीजिए आप भींग गई है।

स्नेहल रुआसी होकर - छोड़िए मुझे......मुझे आपके साथ नही जाना

राज दादा - आपकी तबियत खराब हो जायेगी 

स्नेहल जोरो से चिल्लाते हुए - छोड़िए मुझे.....छोड़िए

तब तक सभी स्नेहल की आवाज सुन बाहर आ जाते है।
सभी स्नेहल को रोते हूटे और राज दादा को स्मेहल का हाथ पकड़े देखते है।

तभी एक औरत - हाय राम क्या जमाना आ गया ... उम्र तो देखो पोती की उम्र की है और डोरे डाल रहा

सुमेध गुस्से मे - एक लफ्ज नही मेरे राज दादू के खिलाफ......सब लोग जाइए यहां से।

राज दादा - जैसा आप समझ रहे वैसा कुछ नही। उसके ऊपर पानी गिर गया और हम इसे तौलिया देने ले जा रहे थे। 

श्याम मोहन दादा - राजू.....तुझ पर कौन शक करेगा...? शायद ही आज तक तुझसे सच्चा प्यार कोई किया हो।

जग्गू दादा - परिवार वालो को छोड़ बाकी लोग जाइए अपने रूम में।

सभी लोग चले जाते है। 
सुमेध स्नेहल के पास आता है।
सुमेध - स्नेहल
स्नेहल सुमेध के गले लग जाती है। 

ब्रिगेडियर सर अचानक से राज दादा को देख - सर जी....आप...? मै आज आपको पार्टी में देख ही नही पाया। और दोनो सर भी साथ..?

नवनीत - चक्कर क्या है...? आखिर इतने  जिगरी यार दूर क्यू हुए..?

सुमेध - और परी.... परी कौन थी दादू...? और आपके दोस्त

राज दादा - एक जिंदगी थी हमारी...और एक जान था हमारा । दोनो धोखेबाज निकले। 

जग्गू दादा - वो चौथा यार हमारा कैप्टन मनविंदर सिंह था जिसे हम मन्नू कहते थे

नवनीत हैरानी से - मनविंदर...सिंह तो

श्याम मोहन दादा जी - तुम्हारे दादा सुख विंदर का बड़ा भाई।

तभी सुख विंदर दादा - नही भैया....नवनीत मनविंदर भाई साहब का ही पोता है।

अचानक से तीनो दादा जी हैरानी से नवनीत को देखने लगते है।

स्नेहल - आखिर क्या राज है...? क्यू राज दादा जी मुझे कब से घूर रहे....जैसे जैसे..... जानते हो मुझे...?

राज दादा - क्युकी ये हम यारो की कहानी.....हमारी, श्यामू,जग्गू, मन्नू और.......

सभी - और...?

राज दादा - हमारी परी की कहानी..... माय आर्मी लव..... स्पाई लव स्टोरी........

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अब चालू होगी असली प्यार की कहानी , असली जंग और दोस्ती....... एक स्पाई की बेहद इश्क की दास्तां.......

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4 Comments

Amir

26-Feb-2022 05:25 PM

very nice

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Niraj Pandey

25-Feb-2022 06:44 PM

बहुत ही बेहतरीन भाग

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Lotus🙂

25-Feb-2022 05:18 PM

Behtarin

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