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माय आर्मी लव ♥️ ए स्पाई लव स्टोरी.....(भाग - 12)

भाग - 12

अगले दिन  सभी अपने घर के लिए निकलते है सुमेध प्रविष्ठ के साथ उसके घर के लिए निकलता है। चारो एक दूसरे के गले लगते है। और अपने अपने ट्रेन में बैठ जाते है। और सभी अपने घर पहुंचते है।

इधर प्रविष्ठ सुमेध के साथ जैसे ही बनारस के स्टेशन पर उतरता है जोरो से चिल्लाता है हर हर महादेव । 

सुमेध - ओए क्यू डरा रहा है सबको..?

प्रविष्ठ - ऊ का है न गुरु....हमरे बनारस में सब ऐसे ही बोलते है । और हम लोग खुश होने पर महादेव को याद करते है । ई बनारस है जनाब सुबह महादेव की जय जयकार तो शाम आजान से खत्म होती है। यहां किसी की कोई जाति धर्म नही सब बनारसी है। और सबको बनारस अपने रंग में रंग लिया है। 

सुमेध - इंप्रेसिव अब तो मुझे भी बनारस घूमना है

प्रविष्ठ - हा पहले घर तो चल.... वही से गंगा मईया के दर्शन हो जाएंगे।

दोनो बनारस का नजारा देखते हुए गलियों से होकर प्रविष्ठ के घर पहुंचते है। 
घर के बाहर जगजीवन दादा जी कई लोगो से बात कर रहे होते है और घर को सजाने का काम चल रहा होता है।
प्रविष्ठ - जग्गू दादा

सुमेध - कहा... कौन..? बनारस का कोई दादा है क्या..?

प्रविष्ठ - अरे जगजीवन दादा को सब लोग जग्गू दादा कहते हैं।
प्रविष्ठ अपने दादा जी के गले मिलता है। सुमेध भी उनसे मिलता है दादा जी दोनो को अंदर लेकर आते है। प्रविष्ठ को मां दोनो की आरती उतारती है। दोनो अंदर आते है और पानी पीते है।
प्रविष्ठ की मां ( नैना जी ) - तो अब फुरसत मिली मां से मिलने की..?

प्रविष्ठ - मां के सेवा में ही तो था, भारत माता। और वहां मै न होता तो आप लोगो को सेफ कैसे रखता। और इस बार तो दो बेटे आए और अभी दो आयेंगे एक सीधा साधा है तो एक बम का गोला है।

नैना जी - हा हा बातो में उलझाना कोई तूझसे सीखे। वैसे ये सुमेध है न जिसके बारे में तू बताया था..?

सुमेध - जी मै सुमेध शेखावत

अचानक से जग्गू दादा सुमेध को देख - शेखावत..? 

सुमेध - जी राजस्थान से हु सुमेध शेखावत

प्रविष्ठ - क्यू क्या हुआ दादा जी..?

जग्गू दादा - न...ही कुछ नही..!

तभी प्रविष्ठ की दादी जी - अरे चुप रहिए। इतने दिन बाद पोता आया देखो तो कितना पतला हो गया, इस बार मोटा करके भेजूंगी।

प्रविष्ठ - हा दादी इतना मोटा कर दो कि खुद एक बम बन जाऊं,,,फिर मुझे खुद को डिफ्यूज करना पड़े,,,नही तो ये लोग मुझे आतंकवादी पर फेक देंगे वैसे भी मेरे भर से मर जाएंगे सब।

सभी हंसने लगते है। तभी प्रविष्ठ के पापा प्रविष्ठ का कान पकड़ते हुए - बस बाते बनाने को बोल दो।

प्रविष्ठ बुलंद आवाज में  - पापा इसी बातो से तो डरते है सब पूरी धरती कांप जाती है

तभी जग्गू दादा - ठीक है शादी में डीजे नही आएगा तू ही गा लेना।

सुमेध - सही बोले आप दादा जी।

नैना जी - चलो आराम कर लो तुम लोग । मै तुम लोगो के पसंद का खाना बनाती हु। प्रविष्ठ का तो मुझे पता है सुमेध तुम्हारी क्या पसंद है..?

सुमेध - कुछ भी खाना।

नैना जी - अरे कोई चीज जो मां के हाथ की पसंद हो..?

सुमेध - नही.... कुछ भी चलेगा। मौका ही नही मिला मां के हाथो खाने का।

और वहा से उठकर चला जाता है प्रविष्ठ उसके पास आता है। दोनो छत पर जाकर गंगा नदी को बहते हुए देखते है।
धूप के वजह से पानी हीरे की तरह चमक रहा था, और निरंतर बहे जा रहा था।
प्रविष्ठ - मां के जिक्र से अपनी मां की याद आई क्या..? कोई बात नही इस बार जाना तो सबसे गीले सिकवे मिटा मिलना और फिर से सब ठीक हो जाएगा

सुमेध - तुझे कैसे पता ...? आलोक बताया है न तुम लोगो को सब..?

प्रविष्ठ - हा तभी तो पहले से सब पता है। ये सब छोड़ अब बनारस आया है तो खुलकर ये कुछ दिन खुश रह मजे कर
वैसे भी बनारस में आकर कोई दुखी नही रह सकता। और मुद्रा कल आ रही.....

सुमेध - और कौन कौन...?

प्रविष्ठ - हा उसके मम्मी पापा और रिश्तेदार भी आ रहे।

सुमेध - और...?

और किसे याद किया जा रहा सुमेध बाबू...? 

सुमेध और प्रविष्ठ मुड़ते है तो नवनीत और आलोक होते है।
प्रविष्ठ - तुम दोनो...?

सुमेध - कब आए..?

नवनीत - बताता हु बताता हु शांति से बैठ,अपना ही घर समझ।

सभी छत पर रखे झूले पर बैठते है
आलोक - सच कहते है बनारस में बड़ा सुकून है।

प्रविष्ठ - ये क्या बोल दिया..?

आलोक नवनीत को देखता है। 
नवनीत - सच में....यह मुक्ति का धाम है। आज मुक्ति दिलाता हु भाई मणिकर्णिका घाट पास है या दूर..? 

आलोक - बस रहम कर भाई। तू तो मेरी जान लेने पर तुल गया 

नवनीत - नही नही तेरी पिक्चर बनाऊंगा, दशाअश्वमेघ से मणिकर्णिका तक आलोक का सफर।

सभी हंसने लगते है।
सुमेध - तो तुम लोग घर नही गए...?
नवनीत - मेरा घर कश्मीर से पास ही था पंजाब मिल भी लिया घर वालो से। दादू तो खुश ही हो गए बहुत। 

प्रविष्ठ - तो साथ मे क्यू नही लाया..? अकेले आयेंगे क्या..?

नवनीत - अरे हा मेरे दादा तो बहुत छोटे है पांच साल के.... कैसे आयेंगे अकेले..?

आलोक - क्या नवी तू भी.... अरे परसो सगाई वाले दिन सब आएंगे। तो हम सोचे पहले ही आकर सरप्राइज दे दे।

नवनीत - और खातिरदारी

सुमेध - कर दे..?

नवनीत - नही करवा ले। देख मै दोस्त हु तो मेहमान हु। ये सेंटी बाते करके की घर का बच्चा है तंबू बांधने का काम और खाना परोसने का काम बिल्कुल मत देना

प्रविष्ठ - बेगैरत.... दोस्त के शादी में दोस्त ही तो पूड़ी सब्जी बाटने का काम करता है। तू ही तो जाएगा कड़कती धूप में मंडी से आलू लाएगा गरम गरम......क्युकी गर्मी से आलू आलरेडी पक जायेगा। अरे तुझे तो गिड़गिड़ाना चाहिए कि चचा मुझे काम दो....मेरे दोस्त की शादी में मै काम करूंगा।

नवनीत - लेकिन हम कौनो काम न करब गुरु....! 

प्रविष्ठ - ये कब सीखा..?

आलोक - ऑटो वाले को पूरा स्कैन कर लिया। बोला बनारस जा रहा हु तो फूल बनारसी बनूंगा। और उसके सर पर गन लगाकर सेल्फी भी लिया,,और वो मजे से खीचाया भी 

सुमेध - ये कौन सा तरीका है..?

नवनीत - मेरा है...! ये छोड़ सगाई की सारी तैयारी हुई..? क्या पहन रहा..? देख हम चारो सेम सेम पहनेंगे या तो शेरवानी या तो जैकेट...!

सुमेध - सगाई वाले दिन प्राजू भी आ जाएगी 

आलोक - क्या..?

सुमेध - तुझे क्या दिक्कत है मेरी बहन से..? अरे नही कराऊंगा तेरी शादी प्राजू से खुश। कभी नही बोलूंगा।

आलोक मुस्कुराते हुए - थैंक्स तू समझा मेरे जज्बात

तभी नीचे से नैना जी आवाज लगाती है सबको खाने के लिए। सभी नीचे दौड़ते हुए जाते है। और साथ में खाना खाते है। 
खाना खाने के बाद सभी जगजीवन दादा के रूम में बैठे होते है और उनसे बाते कर रहे होते है।
जग जीवन दादा जी एक एलबम देख रहे होते है।
आलोक - दादा जी आप क्या देख रहे..?

जगजीवन दादा जी एल्बम बंद करते हुए - कुछ पुरानी भूली बिसरी यादें वापस अपने जहन में बसा रहा था। 

नवनीत - मतलब...?

जगजीवन दादा जी - आओ पास बैठो बताता हु।
सभी दादा जी के पास आकर बैठ जाते है। 
जगजीवन दादा जी - जब मै नया नया आर्मी कैंप गया मै भी प्रविष्ठ जैसा था..!

सुमेध - जांबाज...!

जगजीवन दादा जी - ना ना पागल । फिर मुझे मिले तीन यार। एक इतना मजाकिया कि हम हंस हंस के पागल हो जाते थे, एक पगला श्यामू, और एक राजपुताना शान शौकत लिए । बस यहीं जवानी की यादें बुढ़ापे में जीने का सहारा बन जाती है।
प्रविष्ठ - तो एक दिन मैं भी आपके जैसा एल्बम देख याद करूंगा सब

दादा जी - नही.... कभी ऐसा मत सोचना। बल्कि हमेशा साथ रहो तुम यार ये सोचो।

आलोक - दादा जी अपने यारो का नाम बताइए हम सब उन्हे खोज के लाएंगे।

जगजीवन दादा - उनका नाम.....

अचानक से प्रविष्ठ का फोन बजता है। प्रविष्ठ फोन देखता है।
प्रविष्ठ - मै अभी बात करके आया...!

आलोक - कौन है...? यही बात करले।

नवनीत - अरे समझ यार शादी होने वाली है तो जरूरी फोन होगा। 

सभी हंसने लगते है। प्रविष्ठ बाहर आता है। और फोन पिक करता है 
प्रविष्ठ - हेलो मुद्रा जी।
मुद्रा - आप मुझे सिर्फ मुद्रा बोल सकते है न..? 
प्रविष्ठ - हा अभी उतना खुलकर हम लोग बात कहा किए..?
मुद्रा - क्युकी आप दिनभर बिजी जो रहते थे। बस सुबह शाम तो बैंक आते थे उसमे भी बात कहा किए बस निहारते थे।
प्रविष्ठ हंसने लगता है। मुद्रा चुप हो जाती है।
प्रविष्ठ - क्या हुआ मुद्रा..?
मुद्रा - आपकी हंसी बड़ी प्यारी है सुन रही थी।
प्रविष्ठ - पहली बार मेरी आवाज किसी को प्यारी लगी, नही तो सबको भारी ही लगती है। तो कल कितने बजे आ रही ...?
मुद्रा - दस बजे पहुंच जाऊंगी।
प्रविष्ठ - कौन सा ट्रेन है..?
मुद्रा - बेगमपुरा एक्सप्रेस
प्रविष्ठ - ठीक है तब मै दो बजे स्टेशन आ जाऊंगा
मुद्रा - अरे मै तो सुबह दस बजे पहुंच जाऊंगी।
प्रविष्ठ - तुम दस बजे आने को बोली, टिकट पर लिखा है दस बजे पर बेगम पूरा को तो नही पता न...! वो अपने ही चाल से आयेगी झूमते हुए
मुद्रा - तो रखू फोन..?
प्रविष्ठ - तो रखिए
ऐसे ही दोनो रखो रखो करते रहते है। काफी टाइम हो जाता है।
अचानक से नवनीत फोन लेकर - हा भाभी जी आप सो जाइए.... रात के ग्यारह बज गए ये प्रविष्ठ तो ऐसे ही कन्फ्यूज करता रहेगा । आपको नींद आ रही होगी ठीक से नही सोएंगी तो आंखो के नीचे काले गढ्ढे आ जायेंगे, फिर सारे बाराती आपको देख भाग जायेंगे इससे अच्छा सो जाइए
मुद्रा फोन रख देती है।
प्रविष्ठ - ये काले गड्ढे क्या होते है कोई नई बीमारी है क्या..!
नवनीत - तुम पुराने जमाने में लड़के it's डार्क सर्कल्स ब्रो।
सुमेध - अब चल भाई सो जा। 
आलोक - चल छत पर सोते है। मजा आएगा। 
चारो गद्दे लिए छत पर जाते है और रात में गंगा घाट से आती आवाज और आसमान में एक तारा ( क्यूकी मै लेटकर इन चारो जैसे ही महसूस करते हुए सिन लिख रही और मेरे आसमान में बस एक तारा दिख रहा😗😅)
चारो बाते करते करते सो जाते है ।
अगली सुबह भोर के अंधेरे में विट्सल बजती है चारो सैल्यूट मार खड़े हो जाते है
सामने जग्गू दादा होते है।
दादा जी - नहाने का टाइम हो गया जिसको तैरना आता है ठीक नहीं तो लोटा ले लो।
आलोक - खेतो में जाना मना है
दादा जी - स्वच्छ भारत अभियान चल रहा और तुम लोगो के दिमाग में कैसी बाते आ रही..? जब दिमाग ही गंदा है तो देख कैसे साफ होगा। अरे गंगा घाट चलकर नहा लो।
सुमेध - हम सब आर्मी मैन है हम सबको तैरना आता है।
दादा जी सिटी बजाते हुए - चलो जवानों। लेफ्ट राइट लेफ्ट......लेफ्ट राइट लेफ्ट.......!

सभी को दातुन पकड़ा कर - घाट जाते जाते दात भी साफ हो जाएंगे चलो
सभी मुंह में दातुन डाले गंगा घाट आते है। सुबह के पांच बजे गंगा घाट पर आरती हो रही होती है। हर ओर घंटियों की आवाज और श्रद्धालुओ की भीड़।और महादेव के नाम का जय घोष। सभी आरती देख फिर नहाते है। 
नहाकर पूजा करके सब घर आते है। आज सुबह से ही हलवाई अपने काम पर लगे होते है क्युकी कल सगाई जो  थी घर में।
सभी तैयार होकर ब्रेक फास्ट करते है।
नैना जी - बेटा सुबह फल खाने चाहिए लो सेब खाओ
प्रविष्ठ , सुमेध और आलोक खांसने लगते है। 
नवनीत - मां में सेब खाना छोड़ दिया।

नैना जी - अच्छा जो मन करे वो सुकून से खाओ

नवनीत - मां.......क्यू बार बार आप यही सब बोल रही..?

प्रविष्ठ - मेरी मां की आदत है गलत टाइम पर गलत चीज ही बोलती है । 

नैना जी - क्या हुआ कुछ गलत बोली क्या..? कि जैसे चैन सुकून ही छीन लिया।

नवनीत - मां पराठे खत्म हो गए 
नैना जी - अभी तो प्लेट में पांच पराठे है

नवनीत पांचों पराठे मुंह ने डाल - अब खत्म ले आओ न 

नैना जी चली जाती है नवनीत पानी पी पीकर पराठा निगलता है। और तीनो उसको हंसते हुए देखते है।
नवनीत - ज्यादा हंसी आ रह...? एक दिन मेरा भी दिन आएगा तुम लोगो पर हसूंगा।

प्रविष्ठ - ठीक है चल स्टेशन मुद्रा आ रही तुम लोग भी मिल लेना

चारो स्टेशन दोपहर में आते है जहां कई लोग अपनो का वेट कर रहे थे तो किसी को छोड़ने आए थे, कई विदेशी सैलानी नजारा देख फोटो खींचने में लगे थे तो कुली इधर उधर समान ले जा रहे थे। अचानक से ट्रेन आने की एनाउंसमेंट होती है । और कुछ समय बाद ट्रेन से मुद्रा के मम्मी पापा बाहर आते है और उसके कुछ रिश्तेदार। फिर मुद्रा बाहर आती है। प्रविष्ठ उसे देख खुश हो जाता है।

चारो लोग जाकर उनका सामान बाहर लेकर आते है और  कार में रखवाते है।
मुद्रा - कैसे है आप लोग..?
आलोक - हम तो बढ़िया है। आप लोगो को कोई परेशानी नहीं हुई न.?
प्रविष्ठ - चलिए होटल तक छोड़ देते है। 
मुकेश जी - नही दामाद जी हम चले जायेंगे, आप क्यू कष्ट ले रहे..?
प्रविष्ठ - इसमें कष्ट की क्या बात ..? हमे भी खुशी मिलेगी
सुमेध इधर उधर देख रहा होता है।
मुद्रा - किसे खोज रहे है सुमेध जी..?

सुमेध - किसी को भी तो नही...! चलिए भाभी

मुद्रा - तो देवर जी मेरी सहेली को छोड़ के जाना है क्या..? आप जरा मदद कर देंगे क्या..? कही समान लाते हुए गिर पड़ रही होगी। आप अपने साथ होटल लाइएगा

सुमेध - कौन सी फ्रेंड..?

मुद्रा उंगली दिखा कर - वो रही....!

सुमेध देखता है तो सफेद सूट कर लाल चुन्दरी का दुपट्टा लिए स्नेहल सामान को संभालते आ रही थी। और जैसे ही सुमेध को देखती है मुस्कुराने लगती है।

सुमेध - भाभी आप कमाल हो....आप इस पगलैठ को क्यू पसंद कर ली..? आपको तो कोई अच्छा मिल जाता 

प्रविष्ठ मुंह बनाकर - कर मेरी टांग खिंचाई 

मुद्रा जी - हा कोई अच्छा मिल जाता पर प्रविष्ठ नही मिलते।

प्रविष्ठ मुद्रा को प्यार से देखने लगता है।
सुभद्रा जी - बेटा अभी हम है। बाद में देख लेना तेरी ही है।

सभी मुद्रा और उसके परिवार को होटल में छोड़ने जाते है। सुमेध स्नेहल का सामान टैक्सी में रखता है और दोनो साथ में बैठते है। दोनो खामोशी से बैठे होते है।
सुमेध - तुम ये दुपट्टा पहनी मतलब.......

स्नेहल शरमाते हुए - हा पहनना ही था। आखिर यही तो सिग्नल है न.?

सुमेध स्नेहल को देखता है और मुस्कुराता है और स्नेहल सुमेध के कंधे पर सर रख उसका हाथ पकड़ लेती है। 
दोनो होटल आते है और सभी को होटल में पहुंचा कर घर आते है।
नवनीत - आज तो बहुत थक गए , कल तो पूरे मेहमान होंगे घर पर।
आलोक - आज तो स्नेहल भी आ गई....पर सुमेध तू और स्नेहल न तो  कन्फ्यूज दिखे न दिल की बात न कुछ क्लियर किए.....तो भी साथ में....माजरा क्या है...? तू स्नेहल से बात किया था क्या फोन पर..?

सुमेध - नही। स्नेहल से मै बात नही किया। फिर भी हमारी बात हो गई। और वो बिना कुछ बोले सब दिल की बात बता दी

प्रविष्ठ - लेकिन क्या..? कैसे...? कब..?

सुमेध - सगाई के बाद बताता हु पहले आराम करो सब कल बहुत ताम झाम होगा।

अगले दिन सभी सगाई की तैयारियो में लग जाते है। और सगाई बनारस के एक बड़े से होटल में होती है। मुद्रा और प्रविष्ठ के परिवार वाले पहुंच गए होते है। चारो तैयार होकर बाहर सब सजावट देख रहे होते है। 
जग्गू दादा आकर प्रविष्ठ को गले लगाते है।
दादा जी - तुम लोगो के परिवार वाले कब आ रहे..?
आलोक - आते ही होंगे.... देखिए सब मेहमान आना चालू हो गए
सुमेध फोन पर बात करते हुए - हा प्राजिका राज दादू को लेकर होटल ब्लू पैलेस में आ जाना।
नवनीत - आ गए क्या..? चल मेरे भी दादू आ गए है।
सभी साथ में आ रहे होते है कि स्नेहल लहंगा संभालते हुए आती है और सुमेध उसे देखने लगता है। 
तभी स्नेहल सामने किसी को देख खुशी से उछल जाती है।
स्नेहल - प्राजू......😁😌
सामने प्राजिका होती है तो स्नेहल के पास आती है लेकिन गले न मिलकर उसे मार भागती है स्नेहल उसके पीछे भागती है।
आलोक बाहर से अपने दादा श्याम मोहन तिवारी के साथ आ रहा होता है। और नवनीत अपने दादा जी को लिए।
सुमेध सामने देख - वो रहे मेरे राज दादा
जगजीवन जी जैसे ही सुमेध के दादा को देखते है हैरान हो जाते है। और सबके दादा एक दूसरे को देखने लगते है।
अचानक से प्राजिका को धक्का देने के चक्कर में स्नेहल राज दादा से टकरा जाती है और प्राजिका आलोक से टकरा उसकी बाहों में गिर जाती है।
आलोक जैसे ही अपने बाहों में प्राजिका को देखता है खो जाता है।
स्नेहल नीचे सर किए - सॉरी जी सॉरी जी

राज दादा - कोई बात नही....

अचानक से स्नेहल अपना चेहरा ऊपर करती है और राज दादा बोलते बोलते रुक जाते है साथ ही बाकियों के दादा जितना एक दुसरे को देख शॉक नही हुए उतना स्नेहल को देख शॉक हो जाते है ।
राज दादा के मुंह से बस एक शब्द निकलता है ,,, परी.....

शेष अगले भाग में.........

आपकी प्रज्ञा मिश्रा ( श्रेयू )

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5 Comments

Sachin dev

15-Apr-2022 03:07 PM

Very nice 👌

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Archita vndna

19-Feb-2022 04:04 PM

Kafi achchi kahani h aapki. Padhte hue lgta h sari chije samne ho rahi h. Nicely writen

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Bahut achcha likha h aapne, padhne me rochakata bani hui h

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