माय आर्मी लव ♥️ ए स्पाई लव स्टोरी.....(भाग - 11)
भाग - 11
सुमेध उस डाटा हैकर की जानकारी निकालने चला जाता है , और कामयाब भी होता है और उस इंसान को पकड़। लिया जाता है। इसके लिए सुमेध को काफी शबासी और तारीफ मिलती है पर सुमेध मुस्कुराता कैसे क्युकी उसकी मुस्कुराहट तो स्नेहल के साथ चली गई थी। सुमेध और बाकी सब भी अपनी रोज मर्रा की ड्यूटी में लग जाते है और नवनीत रोज सेब लिए प्रविष्ठ के साथ ब्रिगेडियर सर के घर जाता। अब प्रविष्ठ भी ठीक हो गया होता है।
सभी साथ मे शाम में बैठे होते है।
प्रविष्ठ - मेरे दादा जी आ रहे। मुद्रा के परिवार वालों से शादी की बात करने।
नवनीत - लख लख बधाइयां यारा। अब जल्द ही तेरी शादी हो जायेगी। फिर सुमेध की स्नेहल से,मेरी सुकून से, और ये आलोक तो कुवारा ही मरेगा पता नही किस लड़की के चक्कर में पड़ा है।
आलोक - प्लीज ऐसे मत बोलो। मै अकेला नही उसके यादों के सहारे रहूंगा। हो सकता है कभी किसी मोड़ पर मुलाकात हो जाए।
नवनीत - और उसके भाई और बाप से तेरी मुक्कालात होगी।
आलोक - ऐसी बात नही है। मेरा सुमेध बात करेगा अगर इसके भाई हुए तो।
सुमेध - लेकिन वो लड़की नही मिली तो...? क्या तू मेरी बहन से शादी करेगा..?
सभी सुमेध को देखने लगते है।
सुमेध - मै अपनी प्राजु से बहुत प्यार करता हु। वो भी मेरी हर बात मानती है। और मैं चाहता हु उसकी शादी ऐसे लड़के से हो जो बहुत लॉयल हो....और तू उस लड़की के लिए इतना लॉयल है जिसे देखा भी नहीं तो मेरी बहन के लिए कितना लॉयल होगा।
आलोक - सुमेध थैंक्स तू मुझे इस काबिल समझा। पर तू मुझे लॉयल बोला। तो मै लॉयल सिर्फ उस लड़की के लिए ही हू...... मै तुम्हारी बहन को नही जानता अगर शादी हुई तो मै उसकी केयर करूंगा पर शायद प्यार न कर पाऊं। तू समझ रहा है न..?
सुमेध - कोई बात नही..! मै उसके लिए कोई और लड़का खोज लूंगा। प्रे करूंगा कि जल्द से जल्द तुझे तेरा प्यार मिल जाएं। बाकि मेरी प्राजू तो बड़ी सभ्य संस्कारी और बड़ी भोली है।
प्रविष्ठ - तो जल्द ही छुट्टी होने वाली है तो शादी तय हो गया तो सबको बनारस चलना होगा।
नवनीत - हा बोल अभी जाकर बैठ जाए। बस सुकून और ब्रेगीडीयर सर को याद से बुला लेना।
सभी हंसने लगते है।
अगली सुबह प्रविष्ठ स्टेशन अपने दादा जी को लेने जाता है। और आर्मी कैंप में उन्हें लिए आता है। और बाकी तीनों दोस्तो से मुलाकात कराता है।
प्रविष्ठ - ये है मेरे दादा जी जगजीवन शर्मा रिटायर्ड फौजी
सभी दादा जी से मिलते है।
जगजीवन दादा जी उन तीनो को बड़े गौर से देखते है।
जगजीवन दादा जी - तुम लोगो की दोस्ती देख मुझे मेरी दोस्ती याद आ गई मेरे भी तीन यार थे।
नवनीत - थे मतलब..?
जगजीवन दादा जी - कुछ ऐसा हुआ कि हम अलग हो गए फिर मिले ही नही। हिम्मत नही हुई फिर से एक दूसरे से बात करने की।
सुमेध - ऐसा क्या हुआ..?
जगजीवन दादा जी - छोड़ो वर्षो बीती बातो को। प्रविष्ठ चल मुद्रा के घर ले चल। मै पूरी तैयारी करवा लिया हलवाई को ऑर्डर भी दे दिया,मंडप सज रहा बस तेरे ससुराल वाले मान जाए।
प्रविष्ठ - इतनी तैयारी दादू..? अब तो डर लग रहा अंकल आंटी नही माने तो..?
दादा जी - कैसे नही मानेंगे....जग्गू को कोई मना नही कर पाया आज तक।
नवनीत - जग्गू कौन है..?
दादा जी - ये राज की बात है। तूझे बाद में बताऊंगा अभी चलो मुद्रा के घर।
सभी तैयार होकर सगुण का समान लिए मुद्रा के घर आते है। प्रविष्ठ से डोर बेल बजाया नही जा रहा था उसको पसीने छूट रहे थे।
आलोक - क्या हुआ बजा..!
प्रविष्ठ - यहां खुद मेरी बजी पड़ी है , इतना डर तो बम डिफ्यूज करने में कभी नही लगा।
नवनीत - दुर हट अभी एक गोली मारूंगा लॉक पर।दरवाजा खुल जाएगा।
आलोक - कोई काम सुकून के साथ नही कर सकता क्या..?
नवनीत खंबे से झूलते हुए - मानती ही नही साथ आने को।
दादा जी डोर बेल बजाते है।
मुद्रा के पापा डोर ओपन करते है।
मुद्रा के पापा ( मुकेश जी ) - अरे बच्चो तुम लोग..? साथ मे आप कौन..?
जगजीवन दादा जी - हर हर महादेव हम प्रविष्ठ के दादा।
तभी सुभद्रा जी आती हुई - अरे आइए आइए।
सभी अंदर आकर बैठते है। चारो लोग दादा जी की ओर देख रहे होते है।
मुकेश जी - जी बोलिए..!
जगजीवन दादा जी - सीधे काम की बात कर आता हु।
प्रविष्ठ धीरे से अपने दोस्तो से - अब देखना मेरे दादू का जलवा।
जगजीवन दादा जी - बाथरूम खाली है क्या..?
चारो अपना सर पिट लेते है। मुकेश जी दादा जी को बाथरूम का रास्ता दिखाते है।
तभी मुद्रा आती है। प्रविष्ठ मुद्रा को देखता है।
सुभद्रा जी - और बेटा कैसा चल रहा सब..?
नवनीत - सब चल रहा था बस ये प्रविष्ठ ही नही चल रहा था। पर अब ये भी चल रहा।
कुछ देर में दादा जी आते है मुद्रा और उसकी मां सबके लिए नाश्ता बनाने लगती है।
सुमेध - दादा जी बात तो करिए।
मुकेश जी - कैसी बात..?
जगजीवन दादा जी - जी हम मुद्रा का हाथ मांगने आए है।
तभी सुभद्रा जी आते हुए - सिर्फ हाथ ही क्यू पूरी मुद्रा ले जाइए।
मुद्रा सबके लिए चाय लाती है।
सुभद्रा जी - मुद्रा मुझे बता चुकी है प्रविष्ठ के बारे में आज ही इसके पापा से बात करने वाली थी कि आप लोग भी बात करने आ गए।
सभी खुश हो जाते है।
मुकेश जी - क्या ऐसी बात है..? प्रविष्ठ जैसे लड़के से कौन अपनी बेटी की शादी नही कराना चाहेगा..? बाऊ जी मुझे खुशी होगी।
जगजीवन दादा जी - तो अभी कुछ दिनों में 40 दिन की छुट्टी होगी जैसा कि आर्मी वालो का नियम है। तो उन्ही छुट्टीयों में शादी करा दिया जाय बच्चो का तो सही रहेगा।
सुभद्रा जी - तब तो बाऊ जी कोई अच्छा सा दिन शादी के लिए फिक्स कराइए।
जगजीवन दादा जी - लेकिन मेरी एक इच्छा है।
मुकेश जी - जी बोलिए..?
दादा जी - मै चाहता हु प्रविष्ठ मुद्रा की शादी बनारस से हो।
मुकेश जी - अरे इतने पावन जगह से हमे क्या दिक्कत होगी। तो अब छुट्टीयो में जल्द से जल्द मुद्रा प्रविष्ठ की शादी करा देते है।
दादा जी मुकेश जी के गले मिलते है। और मुद्रा दादा जी के पाव छूती है और वो उसे आशीर्वाद देते है । और सगुण का समान देते है।
दादा जी - हम फोन पर आगे की बात कर लेंगे। और डेट आपको बता देंगे
सभी दादा जी के साथ खुश होकर आर्मी कैंप आते है।और आर्मी कैंप में सभी ब्वॉयज मिलकर मिठाईयां बांटते है।
दादा जी रात में आर्मी कैंप में ही रुकते है चारो लोगो के साथ।
रात में चारो दादा जी से बात कर रहे होते है क्युकी आज उनकी नाइट सिफ्ट नही थी।
जगजीवन दादा जी - बहुत सालो बात यहां आया.....ये जगह यहां की वादिया सब पहले जैसा कुछ नही बदला । बस हम यार ही बदल गए।
आलोक - आपके भी यार थे..?
जगजीवन दादा जी - मै जय, तो एक विरु था। एक मनु और एक श्यामू। साथ मे ट्रेनिंग साथ में पोस्टिंग , साथ में कई जंग भी लड़े......
सुमेध - तो सब लोग अब कहा है...?
जगजीवन दादा जी - बहुत दूर है। अब सो जाओ जवानों कल ड्यूटी है न..? और हा शादी में सब लोग परिवार को लेकर आना।
सभी साथ में सो जाते है। और अगले दिन जगजीवन दादा जी बनारस के लिए रवाना हो जाते है।
सब अपने ड्यूटी और फर्ज में लगे होते हैं। एक दिन सभी को हॉल में बुलाया जाता है और बताया जाता है कि परसो से चालीस दिन की छुट्टी मिल रही।
सभी लोग अपने परिवार वालो से मिलने के लिए बेताब हो जाते है। आखिर इंडियन आर्मी पहाड़ों पर , तपती गर्मी में अपने परिवार से दूर अपने देश के लिए ही रहते है न.....तभी तो वो लोग ग्रेट होते है।
और उसी दिन शाम में प्रविष्ठ को फोन आता है घर से कि शादी अगले हफ्ते तय हो गई है। प्रविष्ठ ये बात अपने दोस्तो को बताता है। सभी उसके गले लग जाते है।
और अपनी पैकिंग करने लगते है।
आलोक - कितने दिनों बाद मां से और दादू से मिलूंगा।
प्रविष्ट - लेकिन याद से मां और दादू को लेकर आना शादी में......जो नही लाया मै बनारस से चिल्लाऊंगा और आवाज तुम लोगो के घर तक आएगी शीशे फोड़ दूंगा खिड़कियों के।
नवनीत - हा हा भाई आ जायेंगे.....अच्छा याद से सुकून और सर जी को बुला लेना। मुझे कार्ड नहीं देगा चलेगा मै ऐसे जी पूड़ी बाटने आ जाऊंगा बस सुकून को बुला लेना
प्रविष्ठ - अरे हा भाई स्लेशल न्योता देने ही जा रहा सर को।
नवनीत - चल चल इसी बात पर मुझे भी ले चल
आलोक - चलो तब। सुमेध.... ओ सुमेध कहा खोया है..?
सुमेध अचानक होश में आकर - कही नही....! मै आ जाऊंगा न... जब सब यहां से बनारस आयेंगे उन्ही के साथ
प्रविष्ठ - यहां से मतलब..? तू अपने घर नही जायेगा..!
आलोक - सुमेध आज तक अपने घर नही गया। अपनी बहन और दादा जी से बाहर ही मिलता है।
नवनीत - सोच एक बार अपने मम्मी पापा के बारे में...! उन्हे मन नही करता होगा तुझे देखने का..?
सुमेध - नही जाना चाहता मै उस जगह , जहा किसी को मेरी फिकर नही। सब नफरत करते है वहां...! मै हर साल जैसे इस साल भी आर्मी कैंप में ही रहूंगा जैसे हर आर्मी कैंप में रहता था।
प्रविष्ठ - अच्छा चल पहले सर के पास उसके बाद आकर बात करते है।
सभी ब्रिगेडियर सर के घर आते है और डोर नॉक करते है।
"अभी आई", सुकून को अंदर से आवाज आती है।
सुकून आकर गेट खोलती है। चारो लोग उसे हेलो बोलते है।
सुकून - हाय.....लेकिन पापा नही है।
नवनीत - क्या..? कब..? कैसे हुआ ये..? अरे अभी सर पर 20 - 30 बाल और बचे थे....उसे तो सवार लिए होते
( जोरो से रोते हुए ) ससुर जी आई मीन सर जी
सुकून गुस्से में - जिंदा है....बाहर गए है। तुम्हारे जैसे फालतू नही पापा।
प्रविष्ठ - हम यहां न्योता देने आए है। सर को ये मिठाई दे दीजिएगा।
सुकून - किसकी शादी..?
नवनीत - मेरी..क्यू जलन हो रहा..?
सुकून - जलन..? पता ही था कि तुम किस किस्म के लड़के हो...? यहां मुझे फसाने के लिए चाल चल रहे, वहां किसी और से शादी फिक्स.....तो वो तो घर पर रहेगी। तो यहां तब भी मेरे आगे पीछे ही चक्कर लगाओगे क्या..?
नवनीत गुस्से में - बस.....एक शब्द नही। समझती क्या हो खुद हो...? शादी प्रविष्ठ की है। मै मजाक किया। पर मजाक किया भी किस लड़की से जिसे किसी के इमोशन की फिक्र नहीं। तुम्हारे आगे पीछे घूमता हू इसका मतलब ये नही कि फालतू हु...प्यार किया था कभी तुमसे। पर शायद तुम कभी नही समझोगी क्युकी तुम्हारा ईगो आड़े आ रहा। तो मुबारक हो तुमको तुम्हारा ईगो.... गुड बाय
और गुस्से में मिठाई फेक चला जाता है। तीनो लोग उसके पीछे उसे शांत करने जाते है।
सुमेध - नवनीत बात तो सुन..!
आलोक - सुन तो यारे
प्रविष्ठ - अरे खोपड़ी गरम है किसी को उड़ा न दे ..!
तभी अचानक से सामने से ब्रिगेडियर सर आते हुए दिखते है।
प्रविष्ठ , सुमेध और आलोक - ले गए।
ब्रिगेडियर सर - हाय बच्चो। कहा से आ रहे..?
नवनीत - कही से नही सर।
ब्रिगेडियर सर - अरे नवनीत बेटा तुम्हारा ये मजाकिया नेचर मुझे बड़ा अच्छा लगने लगा है। तुम्हारे दादा परदादा भी ऐसे थे क्या..?
तीनो नवनीत को देखते है जिसका हाथ उसके गन पर था।
आलोक धीरे से - ये ठोकेगा नही न किसी को..?
प्रविष्ठ - क्या पता..?
नवनीत - मेरे दादा कैप्टन मनविंदर सिंह बहुत काबिल आर्मी ऑफिसर थे। मै उन्ही के जैसा ही सब कहते है। अब जाऊ सर..?
ब्रिगेडियर सर - क्या.....क्या.....क्या तुम किसके पोते हो..?
नवनीत - कैप्टन मनविंदर सिंह
ब्रिगेडियर सर - क्या तुम मेरे गुरुदेव के पोते..? पहले क्यू नही बताया।
और नवनीत को गले लगा उसका माथा चूम लेते है।
प्रविष्ठ हैरानी से - इन्हे क्या हुआ..? कल तक तो नवनीत फूटी आंखों नही सुहाता था।
सुमेध - वही तो मै भी सोच रहा।
नवनीत - अरे सर जी छोड़िए। क्या कर रहे..?
ब्रिगेडियर सर - अरे मेरे बच्चे, जिगर के टुकड़े , मेरे सोन पापड़ी तू तो हीरा है हीरा। तो कब आऊ तेरे घर..?
नवनीत - लेकिन आप मेरे घर क्यू आयेंगे..?
ब्रिगेडियर सर - अरे मै आऊंगा। वैसे तुम लोग मेरे घर के तरफ से आ रहे क्या...?
प्रविष्ठ - हा सर आपको न्योता देने गए थे मेरी शादी का । मिठाई भी दिए.....मतलब दिए थे
आलोक - गलती से गिर गया
ब्रिगेडियर सर सोचते हुए - हा मै जरूर आऊंगा। कुछ दिन पहले ही आ जाऊंगा सुकून को लेकर।
नवनीत - कोई जरुरत नही है
ब्रिगेडियर सर - तू भी न बेटा बड़ा मजाकिया है।
और हंसते हुए चले जाते है । सभी उनको जाते हुए देखते है वो नाचते हुए जा रहे थे
नवनीत - कभी कभी लगता है इन्हे दौरे पड़ते है.।
तीनो - शायद...!
फिर सभी अपने रूम में आते है और पैकिंग करने लगते है।
आलोक - सुमेध चल मेरे घर। मां भी याद कर रही तुझे।
सुमेध - कोई बात नही। ठीक हु मै यहां..! सुकून के साथ जाओ
नवनीत - सुकून..? नाम मत ले। मै क्यू जाऊ उसके साथ तू क्या कर लेगा बोल
प्रविष्ठ - अरे नवी....वो शांति सुकून इसकी बात कर रहा
नवनीत - तब ठीक है।
आलोक - क्यू उतर गया सुकून का भूत..?
नवनीत - हा पूरी तरह से
सुमेध बाहर चला जाता है।तभी सुमेध का फोन बजता है।
आलोक फोन उठाकर - हेलो...!
उधर राज दादा होते है - हा सुमेध..!
आलोक - प्रणाम दादा जी। सुमेध बाहर है मै ले जाता हु फोन उसके पास
राज दादा जी हु कह खामोश हो जाते है पर उधर से किसी लड़की के चिल्लाने की आवाज आती है।
" हिम्मत कैसे हुई मेरे लिए सेम वैसी ही ड्रेस लाने की जैसी वो मेरे कॉलेज की राम्या पहनती है.??
" अरे बेटा मुझे क्या पता कौन तेरे क्लास में क्या पहनता है, देख अच्छी तो है "
आलोक मन में - ये कौन बवाल है सुमेध के घर..?
अचानक से एक आदमी की आवाज आती है " ये क्या किया कैची से ड्रेस क्यू फाड़ दी..?
" अब भी आप कहेंगे ये ठीक है..? जाइए और दूसरी ड्रेस लेकर आइए... और सिर्फ आधे घंटे के अंदर "
तभी राज दादा की आवाज आती है - बेटा सबसे अच्छा तोहफा मेरे पास है तुम्हारे लिए.....सुमेध से बात करने वाला ही घर आने के लिए।
वो लड़की जोरो से चिल्लाकर - ये.......भाई आयेंगे
आलोक मन में - कान के परदे फाड़ देगी ये लड़की...!
वो लड़की फोन लेकर - आई लव यू..... आई लव यू मुझे पता था आप आएंगे मेरे पास
आलोक - जी....जी मै सुमेध नही। बस जा ही रहा फोन लेकर उसके पास।
और फोन सुमेध को देता है।
सुमेध - हेलो
राज दादा जी - हेलो.....! आप आ रहे है घर।
सुमेध - नही।
राज दादा जी - ये ऑर्डर है। कितने साल अपने घर से दूर रहेंगे..? आपके दादा जी भी चल बसे और आपको देख नही पाए।
सुमेध - मेरे दादा सिर्फ आप है।
राज दादा जी - बस कुछ दिनो के लिए आ जाइए।
सुमेध - मै प्रविष्ठ के शादी के बाद आऊंगा कुछ दिन रहने .....लेकिन बाहर वाले घर में रहूंगा उस शेखावत परिवार के साथ नही।
राज दादा जी - ठीक है
तभी वो लड़की - भाई आई लव यू भाई मुझे पता था आप आओगे क्युकी इस साल मै भी घर आ गई जो पढ़ाई पूरी करके। बस जल्दी आना। क्युकी आप जानते है मेरी जिद पूरी न हो तो पूरा घर सर पर उठा सकती हू
सुमेध मुस्कुराते हुए - हु.....मेरी प्राजू....
और फोन रखता है।
आलोक - ये बम ब्लास्ट लड़की कौन थी...?
सुमेध घूर कर - मेरी बहन प्राजिका
आलोक - लेकिन तू तो बोला शांत सभ्य संस्कारी लड़की..?
सुमेध - हा तो दिखने में ऐसी ही है। और बेस्ट है मेरी प्राजू......तू अपने उस गुमनाम लड़की के बारे में सोच।
आलोक - वो तो ऐसी बिलकुल नहीं। कितनी मासूम...पाक चेहरा
तभी नवनीत आते हुए - प्यार एक धोका है.....समझे
और जिसने प्यार किया उसने ही उसे ठोका है।
प्रविष्ठ - आज तो शायरी हो रही एक प्यार में तो एक तकरार में। अच्छा सुमेध राज दादू को भी बुला लेना।
सुमेध - पर राज दादा किसी पार्टी या शादी में नही जाते। किसी से नही मिलते
प्रविष्ठ - तू कहना कि तू तभी घर जाएगा जब वो बनारस आयेंगे। फिर देखना भागते हुए आएंगे।
आलोक - हा अच्छा आइडिया है। और स्नेहल को भी बुला ले।
प्रविष्ठ - सुमेध नंबर दे..!
सुमेध - किसका ..?
प्रविष्ठ - स्नेहल का
सुमेध - नही है..!
प्रविष्ठ - स्नेहल से प्यार करता है और उसका नंबर ही नही...?
सुमेध - तो मुद्रा से मांग न...
आलोक - हा और फिर सुमेध को नंबर सेंड कर देना। फिर सुमेध रातों रातों को दीवाने जैसे बाते करेगा हाय जान....क्या कर रही..? आई मिस यू...!
सुमेध - शट अप
प्रविष्ठ - हा हा अब तो प्यार ही प्यार होगा हर जगह। सुकून की जिंदगी
प्रविष्ठ और आलोक हाई फाई देते है। सुमेध उन्हे देखता है।
अचानक से तीनो की नजर नवनीत पर जाती है जो खा जाने वाली नजरो से देखता है तीनो को....!
नवनीत - बोला न यू प्यार के शब्द मत बोलो😡😡
प्रविष्ठ आलोक सुमेध भागते हुए - ये पागल हो गया। पहले सुकून के पीछे पागल था अब उसके वजह से पागल है
गलती हो तो आप लोग भी बता देना 🙏
राधिका माधव
31-Jan-2022 12:56 PM
Very nicely written ma'am
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The story
31-Jan-2022 01:24 AM
Kafi achcha likha h aapne
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Arman
29-Jan-2022 06:06 PM
Waah army based ek behtreen kahani, aa Kamal dhamal bemisal lekhati ho, bahut achcha lagta h padh kar.. waiting for next
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