सार्थक और शापित कैनवस
विनीत एक 25 वर्षीय नौकरी पेशा पढ़ा लिखा समझदार युवक है..... वह अपनी मां के साथ ही शहर में रहता था बहुत सालों पहले एक एक्सीडेंट में उसके पिता की मृत्यु हो चुकी है....... पिछले हफ्ते ही उसके नाम एक पत्र आया था, जिसके साथ ही कुछ प्रॉपर्टी पेपर्स भी थे।
जिसे पढ़ने के बाद उसे पता चला कि उस के दादाजी की गांव में एक बहुत बड़ी हवेली है जो कि उसके दादाजी और पिताजी की मृत्यु के बाद उसके नाम हो गई है ; उसी के कुछ दस्तावेज से जुड़े काम के लिए विनीत को गांव जाना था !
दो-तीन दिनों का काम था, अपनी मां को साथ ले जाकर वह उन्हें परेशान नहीं करना चाहता था, इसलिए वह अकेले ही गांव के लिए निकल गया।
विनीत जैसे ही गांव में पहुंचा, उसे एक बहुत ही अलग एहसास हुआ, सारी चीजें उसे जानी पहचानी सी लग रही थी और वह सारी जगह भी ऐसा लग रहा था, कि वह पहले यहां आ चुका है, वह सारे रास्ते भी जानता था और बड़ी ही आसानी से वह अपनी हवेली तक पहुंच गया।
हवेली के पास ही वकील और कुछ लोग उसका इंतजार कर रहे थे, उन्होंने उसे बताया कि उनके दादाजी की वसीयत के अनुसार यह हवेली आपके पिता के बाद अपने आप ही आपके नाम हो जाएगी ; लेकिन आपके कुछ हस्ताक्षर चाहिए, उसके बाद ही आप इस हवेली के अधिकारिक मालिक बन पाएंगे इसके अलावा और भी कुछ जमीन गांव में आपके नाम पर है।
"कानूनी रूप से हवेली पर आपका अधिकार होने के बाद अगर आप चाहे तो इस हवेली को बेच भी सकते हैं " - वहीं पास में खड़े एक दूसरे व्यक्ति ने सलाह दी।
विनीत बोला - "नहीं, मुझे यह हवेली बेचनी नहीं है यह मेरी पुश्तैनी हवेली है.... मेरे बाप दादा का आशीर्वाद है।"
"ठीक है, तो फिर हम लोग कल सवेरे आकर इस बारे में पूरी बात करेंगे और उसके बाद यही से अदालत चले जाएंगे; फिर जैसा आपको सही लगे वह करिएगा" - इतना कहकर वकील वहां से चला गया
वकील के चले जाने के बाद विनीत अपनी हवेली के अंदर गया, विनीत कभी भी अपने दादाजी से नहीं मिला था और ना ही उस ने उन्हें देखा था, वह शहर में ही पैदा हुआ था और वहीं पर पला बढ़ा था ; लेकिन हवेली की एक एक चीज उसे जानी पहचानी सी लग रही थी...उसे ऐसा लग ही नहीं रहा था कि वह यहां पहली बार आया है।
हवेली में घूमते घूमते ही अचानक वह एक बड़े से कमरे में पहुंच गया , वहां पर बहुत सारी तस्वीरें पेंटिंग्स बनी हुई रखी थी । विनीत को पेंटिंग बनाने या देखने में कोई रुचि नहीं थी लेकिन अभी उसे यह सारी पेंटिंग बहुत ही आकर्षक व सुंदर लग रही थी।
वह ना चाहते हुए भी उस कमरे में अंदर की तरफ बढ़ता ही चला जा रहा था; कई सारी पेंटिंग सफेद कपड़ो से ढकी हुई थी....
उत्सुकता वश विनीत ने एक-एक करके वह सारी ढकी हुई पेंटिंग्स भी खोल दी और सब को ध्यान से देखने लगा, सभी तस्वीरें बहुत ही ज्यादा सुंदर और आकर्षक लग रही थी।
उस कमरे के बीच में एक बड़ा सा कैनवस ढका हुआ रखा था और कई सारे रंग और ब्रश भी थे, जिन से पेंटिंग बनाई जाती है और सबसे आखिर में विनीत ने उस कैनवस का कपड़ा भी हटा दिया।
कैनवस का कपड़ा हटाते ही विनीत ने देखा कि वह कैनवस बिल्कुल खाली था, उस पर कोई भी चित्र या किसी की भी तस्वीर बनी हुई नहीं थी। यह देखकर उस ने मन में सोचा कि खाली कैनवास को ढककर कौन रखता है!
फिर भी खाली कैनवस देखकर उस का मन पेंटिंग बनाने को करने लगा और विनीत वहां पड़े रंग ब्रश उठाकर किसी इंसान की तस्वीर बनाने लगा; उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कर रहा है ? उस ने तो कभी भी पेंटिंग बनाना नहीं सीखा और जिस की पेंटिंग वह बना रहा है, उस इंसान को भी उसने कभी नहीं देखा ;लेकिन उसके हाथ खुद को पेंटिंग बनाने से रोक नहीं पा रहे थे.....
पेंटिंग पूरी हो जाने के बाद जब विनीत की नजर पेंटिंग पर पड़ी तो उसके हाथ से ब्रश छूटकर जमीन पर गिर गया: उसने देखा कि उसने अपनी ही तस्वीर बनाई है, लेकिन तस्वीर में उसने पुराने जमाने के कपड़े पहने हुए हैं , उसे बिल्कुल भी समझ नहीं आया कि यह सब क्या हो रहा है? उस ने जल्दी से रंग ब्रश वहीं छोड़कर दरवाजे की तरफ जाना चाहा, उस कमरे से बाहर निकलने के लिए; लेकिन अचानक ही वह दरवाजा बंद हो गया और फिर विनीत वहां से निकलने का कोई और रास्ता ढूंढने लगा; उस ने दरवाजे को खोलने की भी बहुत कोशिश की लेकिन दरवाजा नहीं खुला।
बाहर निकलने के सभी सम्भव प्रयास कर लेने के पश्चात अंततः विनीत थक हार कर वही कमरे में बेहोश होकर गिर पड़ा ; कुछ समय बाद घड़ी में अर्ध रात्रि का समय हुआ और घड़ी ने 12 घंटे बजाएं, उन घंटों की आवाज से ही विनीत होश में आया उसे ऐसा लगा जैसे वह नींद से जागा हो और जागते ही उसने एक नज़ारा देखा जो कि बिल्कुल अविश्वसनीय था।
पहले तो उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ उसे लगा कि वह कोई स्वप्न देख रहा है, उसने बार-बार अपनी आंखें मली लेकिन नज़ारा वही रहा।
वह जब उठा तो उसने देखा जिस कैनवस पर उसने अपनी तस्वीर बनाई थी, वह फिर से बिल्कुल खाली था और उसकी बनाई तस्वीर एक किनारे रखी हुई थी और बाकी तस्वीरों में बने सभी इंसान या जानवर या जो भी चीज बनी थी, वह सब सजीव और जीवित उसी कमरे में थी; सिर्फ उसकी तस्वीर को छोड़कर जो कि उसने बनाई थी, उसे यह सब बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है उसके साथ।
यह सब देखकर विनीत बुरी तरह से डर गया और फिर से उस कमरे से बाहर निकलने का मार्ग खोजने लगा , लेकिन जब उसे वहां से बाहर निकलने का कोई और रास्ता समझ नहीं आया तब वह ज़ोर ज़ोर से चीख कर पूछने लगा - "क्या है यह सब ?कौन है यहां?" और मुझ से क्या चाहते हो तभी उसकी बनाई तस्वीर भी जिंदा हो गई, और खुद की तस्वीर को बोलते देखकर विनीत डर गया.... और उस जगह से पीछे हटने लगा....
तभी उस तस्वीर ने उस से कहा कि "डरो मत, मैं तुम्हें कुछ भी नहीं करूंगा ; क्योंकि तुम मेरा ही तो पुनर्जन्म हो, पिछले जन्म में मेरा नाम सार्थक था और मैं एक बहुत ही बड़ा चित्रकार था , मैंने बहुत सी अविश्वसनीय सजीव सी लगने वाली पेंटिंग्स बनाई थी और मेरे चित्रों को देखकर सब यही कहते थे कि यह तो बिल्कुल सजीव लग रहा है यदि मैं किसी मानव का चित्र बना देता तो वह ऐसा लगता कि जैसे अभी बोल पड़ेगा।
अपनी कला की इतनी प्रशंसा सुनकर मैं बहुत खुश होता था, मगर मेरा लालच बढ़ने लगा था और मैं मन ही मन जा सोचने लगा कि यदि सच में ऐसा हो जाए कि मेरे कैनवस पर बनी हर वस्तु हर चित्र यदि सजीव हो जाए तू मेरी ख्याति दूर-दूर तक पहुंच जाएगी और मैं सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हो जाऊंगा।
इसके लिए मैंने बहुत कठिन परिश्रम किया, बहुत दूर-दूर तक साधु-संत ,महात्माओं से मिला ; लेकिन किसी के पास भी मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं था, सब को यह बात असंभव सी लगती थी लेकिन फिर भी मैंने आशा नहीं छोड़ी.....
और मेरी मेहनत सफल भी हुई , एक दिन मुझे पता चला कि पास के जंगल के आश्रम में एक बहुत ही सिद्ध पुरुष रहने आए हैं; यह सुन कर मैं वहां गया और उनसे मिलने से पहले दूर से ही उनके आश्रम और वहां के पशु पक्षियों का बहुत ही सुंदर चित्र बनाकर उनके लिए उपहार में लेकर गया।
चित्र को देखकर वह महात्मा बहुत ही प्रसन्न हुए और उन्होंने मुझसे कहा - "अद्भुत है तुम्हारी कला, जो भी बनाते हो, बिल्कुल सजीव लगता है, बिल्कुल असली लगता है , मैं तुम्हारी कला से प्रसन्न हूं; बोलो क्या चाहते हो मुझसे?" मैंने उनसे कहा - "मैं तो वही चाहता हूं जो आप पहले ही अपने मुख से बोल चुके हैं!"
महात्मा ने मेरी तरफ से देखकर पूछा - "क्या तात्पर्य है तुम्हारा?" तो मैंने उन्हें अपनी इच्छा साफ-साफ बता दी, तो महात्मा ने कहा - "ठीक है अगर तुम्हारी यही इच्छा है तो मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि अपने कैनवस पर जो भी चित्र तुम बनाओगे; वह सब रात के 12:00 बजे से सुबह के 4:00 बजे तक सजीव हो जाएंगे लेकिन यह सब तब तक ही रहेगा जब तक किसी और को इस बारे में पता ना चले;जिस दिन तुम्हारे इस रहस्य का पता किसी और को चल गया उसी क्षण तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी और तुम स्वयं अपने कैनवस में हमेशा के लिए कैद होकर रह जाओगे।"
महात्मा के वचन सुनकर मुझे अपनी गलती का आभास हुआ कि मैंने अत्यधिक लालसा में स्वयं को ही हानि पहुंचाई थी; ऐसा वरदान मांगना या उसकी इच्छा रखना ही गलत था, मैंने तुरंत ही महात्मा से क्षमा मांगी तो महात्मा ने कहा - "अब तो तुम्हें तुम्हारा मनचाहा वरदान मिल गया, तो अब दुखी क्यों हो रहे हो?"
मैंने कहा - "आप तो सर्व ज्ञाता हैं, सब जानते ही हैं, ऐसी कला को मैं भला कब तक दुनिया से छुपा कर रख पाऊंगा भला? एक ना एक दिन तै किसी को पता चल ही जाएगा और तब मेरी मृत्यु हो जाएगी जो कि सही भी है। मेरे इस लालच का परिणाम तो मुझे मिलना ही था, लेकिन कृपया मुझे मेरी मुक्ति का मार्ग भी बताएं।"
मेरी यह बात सुनकर महात्मा ने कहा - "मेरे वरदान के अनुसार मृत्यु के पश्चात 50 वर्षों तक तुम अपने ही कैनवास में कैद रहोगे और तुम्हारी बनाई तस्वीरें भी तब तक जिंदा होती रहेंगी, जब तक तुम्हारी आत्मा को मुक्ति ना मिल जाए, 50 वर्षों बाद तुम्हारे ही एक अंश का पुनर्जन्म ठाकुर के वंश में होगा, जब वह तुम तक स्वयं पहुंच जाएगा, तुम उसे मुक्ति का मार्ग बता देना, तुम्हारी आत्मा है इस श्रापित कैनवस से मुक्त हो जाएगी।"
इतना कहकर उस तस्वीर ने बोलना बंद कर दिया; तो विनीत ने उत्सुकतावश उससे पूछा - "तो क्या मैं...... मैं ही आपका पुनर्जन्म हूं?"
तस्वीर ने जवाब दिया - "हां, तुम ही हो तुम्हारा चेहरा मुझ से मिलता है और 50 वर्ष पश्चात तुम ही वह पहले इंसान हो, जो इस हवेली के इस कमरे तक पहुंच पाए हो?"
अब विनीत का डर बिल्कुल कम हो चुका था, उसे इस बात पर पूर्ण विश्वास था कि वहां पर मौजूद कोई भी तस्वीर उसे किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगी।
उसने घड़ी में वक्त देखा , अभी रात के 1:00 बज रहे थे तो विनीत ने तस्वीर से आगे पूछा - "तो फिर आप की मृत्यु कैसे हुई और आप मेरी हवेली के इस कमरे में ही कैद कैसे हुए?"
तस्वीर में पुनः बोलना शुरू किया - "महात्मा से मिलकर आने के बाद भी मैंने पेंटिंग बनाना जारी रखा, क्योंकि यह मेरा शौक भी था और जीविका चलाने का साधन भी और मुझे सिर्फ यही काम आता था, मैं चाह कर भी यह काम बंद नहीं कर सकता था।"
"मेरी पेंटिंग्स बनाने की प्रसिद्धि तुम्हारे दादा जी तक भी पहुंची; तो उन्होंने मुझे अपनी हवेली में बुलवाया और मुझसे, अपनी और अपने परिवार के सभी सदस्यों की तस्वीर बनाने को कहा - "तो मैंने इसके लिए उनसे 1 माह का वक्त मांगा" मैंने कहा इतने सारे लोगों की तस्वीर बनाना है कम से कम एक माह का समय लगेगा" तो उन्होंने कहा कि "आप हमारी हवेली में ही रहकर 1 माह तक सभी का चित्र बना सकते हैं!"
क्योंकि तुम्हारे दादाजी ने इस गांव के सबसे अमीर और शक्तिशाली व्यक्ति थे , तो मुझे उन का कहना मानना ही पड़ा और मैं यहीं रुक कर उनकी और उनके परिवार के सभी सदस्यों के चित्र बनाने में लग गया , रात को सभी जब सो जाते तो मेरी बनाई हुई सभी पेंटिंग जीवित हो उठती थी और आवाज भी करती थी, मैं कमरे को अंदर से बंद करके यह सुनिश्चित करने की कोशिश करता रहता था, कि उनकी आवाज से इस कमरे से बाहर ना जाए और किसी को यह पता ना चल पाए , लेकिन अभी मुझे हवेली में रहते 3 दिन ही बीते थे कि एक रात तुम्हारे दादाजी की आंख खुल गई और उन्होंने मेरे कमरे से आते हुए शोर को सुन लिया और आकर मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाने लगे मैं दरवाजा खोलना नहीं चाहता था और मैं यह भी नहीं चाहता था इस बारे में पता चले कि मेरी बनाई तस्वीरें 12:00 बजे के बाद जीवित हो उठती है???
लेकिन तुम्हारे दादा जी दरवाजा न खोलने पर दरवाजा तोड़ने और मुझे जान से मारने की धमकी दी, तो मजबूरन मुझे दरवाजा खोलना पड़ा, इसके बाद उन्होंने अंदर का नज़ारा देखा और उन्होंने इस रहस्य को पूछा तो मैंने उन्हें सब सच बता दिया , पहले तो उन्हें मेरी बात पर विश्वास उन्हें लगा कि मैं कोई तांत्रिक या जादूगर हूं जो उनके परिवार को मारने आया हूं, फिर मैंने उन्हें विश्वास दिलाया कि "ऐसा कुछ भी नहीं है यह सब एक वरदान या यूं कह लो की श्राप के कारण है।"
और साथ साथ मैंने उन्हें यह भी बता दिया कि मेरी मृत्यु के बाद उस कमरे को बंद कर दिया जाए और किसी को भी यह कमरा खोलने की आज्ञा ना हो...
सब रहस्य बताने के बाद जैसे ही तुम्हारे दादा जी को मेरी बात पर पूर्णता विश्वास हो गया, उसी क्षण मेरी मृत्यु हो गई और मेरी आत्मा तब से इस कैनवस में निवास करती है:
तुम्हारे दादा जी ने मेरे कहे अनुसार ही कमरा हमेशा के लिए बंद कर दिया और तुम से पहले यह दरवाजा आज तक किसी ने भी नहीं खोला था ।
और पिछले 50 सालों से मैं तुम्हारी राह देख रहा था कि तुम आओगे और मुझे मुक्ति का मार्ग मिलेगा…..
सार्थक की कहानी सुनकर विनीत को बहुत ही दया आई और उसने उसकी मदद करने की सोची ।।।
विनीत ने उससे पूछा कि - "क्या है तुम्हारी मुक्ति का मार्ग और मैं कैसे तुम्हारी सहायता कर सकता हूं?"
इस पर वह तस्वीर पुनः बोली - "आज सुबह 4:00 बजे से पहले तुम्हें यहां रखी मेरी सारी पेंटिंग्स को जलाना होगा और सबसे अंत में इस कैनवास को भी; लेकिन याद रखना यदि सुबह के 4:00 बज गए , तो मेरी मुक्ति नहीं हो पाएगी और तुम्हारी आत्मा भी मेरे और मेरी इन पेंटिंग्स के साथ यह इसी कमरे में रह जाएगी?"
पूरी बात खत्म करके , जब विनीत ने घड़ी पर नजर डाली तो 3:00 बज चुके थे, उसने कहा मुझे जल्दी करना होगा तुम यहीं रुको मैं माचिस और मिट्टी का तेल वगैरह लेकर आता हूं; सार्थक की बोलती तस्वीर ने कहा- "ठीक है?"
उसके बाद विनीत कमरे से बाहर चला गया , उस ने पूरी हवेली में ढूंढा, लेकिन उसे कहीं पर भी मिट्टी का तेल और माचिस नहीं मिली , उस ने सोचा इतनी रात को वो माचिस और मिट्टी का तेल कहां से लाए हवेली इतने दिनों से बंद है तो यहां पर कोई भी चीज आसानी से नहीं मिलेगी, यह सोच कर वह हवेली से बाहर निकल गया।
वह उस गांव में किसी को भी नहीं जानता था; उसे समझ नहीं आ रहा था किस से मदद मांगे और साथ ही वह यह भी जानता था कि कोई उसकी इस बात पर विश्वास भी नहीं करेगा।
सर्दी का वक्त था, तो सभी गांव वाले अपने घरों में सोए हुए थे, तभी उस ने हवेली के सब से पास वाले घर का दरवाजा खटखटाया और दरवाजा खोलने वाले से बोला - "मैं यहां हवेली में रहने आया हूं मुझे ठंड लग रही है, लकड़ियों का इंतजाम मैंने कर लिया है, मुझे थोड़ा मिट्टी का तेल और एक माचिस मिलेगी ? "
लेकिन उस घर के लोगों ने एक अजनबी की मदद करने से साफ इन्कार कर दिया?
समय बीतता जा रहा था , विनीत को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, वह सड़क के किनारे एक पत्थर पर बैठ गया। उस ने मन में सोचा कि वह ऐसे हार नहीं मान सकता और वह दूसरे घर में मदद मांगने गया। अब तक 3:30 से ज्यादा बज चुके थे , घड़ी पर उसका ध्यान गया और उसने इस घर के लोगों से भी वही कहा - जो पिछले घर के लोगों से कहा था इस घर के लोग सीधे सरल स्वभाव के थे, उन्होंने उसे कुछ मिट्टी का तेल और माचिस दे दी।।।।
उन लोगों का शुक्रिया अदा करके विनीत दौड़ करअपनी हवेली की तरफ आया और जल्दी से उस कमरे में आ गया उसने घड़ी की तरफ देखा तो 3:55 हो रहा था .....
4:00 बजने में सिर्फ 5 मिनट ही बाकी है, उस ने सार्थक की बोलती तस्वीर की तरफ एक नज़र देखा, जिस की आंखें और चेहरा अब निर्जीव होने लगा था, यह देखकर 1 मिनट के लिए तो विनीत की सांसे थम गई और उसे लगा कहीं उसने आने में देर तो नहीं कर दी, फिर उसने जल्दी से सभी तस्वीरों पर मिट्टी का तेल छिड़का और माचिस जलाई, लेकिन हाथों के कांपने और मन के डर की वजह से उस से माचिस भी नहीं जल रही थी।
माचिस की कई तिलियां बर्बाद होने के बाद अंततः विनीत से एक तीली जल गई और उसने जल्दी से सभी तस्वीरों में आग लगा दी और अंत में उस शापित कैनवास को भी उठा कर आग में डाल दिया उन सब तस्वीरों के जलते ही उसे सार्थक की आत्मा भी मुक्त होकर आकाश की ओर जाते हुए दिखी।
अब तक घड़ी में भी ठीक 4:00 बज चुके थे, लेकिन 4:00 बजने से पहले विनीत ने अपना काम पूरा कर लिया था और सार्थक की आत्मा को मुक्ति दिलाई थी।
उसके बाद वह उस कमरे को बंद करके वहां से निकल गया और बाहर हॉल में ही सो गया।
सुबह वकील और गांव के कुछ लोग उसे फिर मिलने आए, उन सब को उस ने कुछ भी नहीं बताया जो कुछ भी कल रात को हुआ क्योंकि अगर वह बताता भी तो शायद उस की बात पर कोई विश्वास ही नहीं करता।
अपने वकील के साथ अदालत जाकर हवेली और गांव की सभी संपत्ति की रजिस्ट्री अपने नाम पर करवाई और अपना काम पूरा करके वापस अपने शहर लौट आया।
लौटते वक्त उसके मन में एक अजीब सी शांति और सुकून था और शारीरिक रूप से भी वहां किसी बोझ के उतर जाने के जैसा हल्का महसूस कर रहा था, लेकिन अपने घर पहुंच कर विनीत ने अपनी मां को भी इस बारे में कुछ भी नहीं बताया!
समाप्त।।।
सिमरन
Kumawat Meenakshi Meera
26-May-2021 05:49 PM
Nice
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Simran Ansari
27-May-2021 09:58 AM
Thank you
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नीलम शर्मा
26-May-2021 05:21 PM
बहुत अच्छी स्टोरी👌👌
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Simran Ansari
27-May-2021 09:58 AM
Thanks for appreciate
Reply
Akassh_ydv
26-May-2021 05:04 PM
बहुत सुंदर रचना... कहानी बहुत अच्छी लगी । पर कुछ चीजों की कमी महसूस साफ साफ महसूस किया मैंने... जैसे किए एक हॉरर बेस्ड स्टोरी है तो इसमें डर और भय का तड़का और जोर दार तरीके से लगाया जा सकता था। पर ये सब चीजें कोई मायने नही रखतीं... पूरे में से बस थ
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Simran Ansari
27-May-2021 09:58 AM
Thank you so much , ye ek suspense story thi, horror zyada nahi thi baaki doosri horror stories jaldi hi post karenge darawani waali 🙏🙏🙏
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