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माय आर्मी लव ♥️ ए स्पाई लव स्टोरी.....(भाग - 5)

भाग - 5

सुमेध अपने मुस्तैदी के बाद अपने दोस्तो के साथ बैठा डिनर कर रहा होता है कि स्नेहल आती है।
स्नेहल - क्या मै आप लोगो के साथ बैठ खा सकती हू?? ऐसे मै आप लोगो को देख पाऊंगी कि आप ड्यूटी के टाइम कैसे होते है और ड्यूटी के बाद कैसे??
प्रविष्ठ - हा हा क्यों नही,,,आइए आप हम लोगो के टेबल पर बैठिए
सुमेध प्रविष्ठ को घूरता है।
स्नेहल सुमेध के बगल में बैठती है । 
सुमेध उठते हुए - आलोक तू इधर आ
और आलोक को अपनी जगह बैठा देता है। स्नेहल सबके पिक्स भी लेने लगती है
स्नेहल - आप लोग अपनी फैमिली से दूर रहते है याद तो बहुत आती होगी न।
एक फौजी - हा याद तो आती है।  पर अपने परिवार और देश के सुरक्षा के लिए ही तो उनसे दूर है न तो कोई गम नही।
नवनीत - अरे हम लोग खुद परिवार जैसे है ,,, ड्यूटी के बाद गाने गाते है बाते करते है और मजे करते है।
तभी नवनीत थाली बजाते हुए गाने लगता है।

हो हो हो..
संदेशे आते हैं
हमें तड़पाते हैं
तो चिट्ठी आती है
वो पूछे जाती है
के घर कब आओगे
के घर कब आओगे
लिखो कब आओगे
के तुम बिन ये घर सूना सूना है
सभी लोग मिलकर गाने लगते है।
संदेशे आते हैं
हमें तड़पाते हैं
तो चिट्ठी आती है
वो पूछे जाती है
के घर कब आओगे
के घर कब आओगे
लिखो कब आओगे
के तुम बिन ये घर सूना सूना है
तभी आर्मी चीफ आते है। सब उन्हे देख शांत हो जाते है ।
तभी वो गाने लगते है ।
किसी दिलवाली ने
किसी मतवाली ने
हमें खत लिखा है
ये हमसे पूछा है
किसी की साँसों ने
किसी की धड़कन ने
किसी की चूड़ी ने
किसी के कंगन ने
किसी के कजरे ने
किसी के गजरे ने
महकती सुबहों ने
मचलती शामों ने
अकेली रातों में
अधूरी बातों ने
तरसती बाहों ने और पूछा है तरसी निगाहों ने
के घर कब आओगे, लिखो कब आओगे
के तुम बिन ये दिल सूना सूना है
फिर सभी गाने लगते है 
संदेशे आते हैं
हमें तड़पाते हैं
तो चिट्ठी आती है
वो पूछे जाती है
के घर कब आओगे
के घर कब आओगे
लिखो कब आओगे
के तुम बिन ये घर सूना सूना है
आलोक -मोहब्बत वालों ने, हमारे यारों ने
हमें ये लिखा है, कि हमसे पूछा है
नवनीत - हमारे गाँवों ने, आम की छांवों ने
पुराने पीपल ने, बरसते बादल ने
खेत खलियानों ने, हरे मैदानों ने
बसंती बेलों ने, झूमती बेलों ने
लचकते झूलों ने, दहकते फूलों ने
चटकती कलियों ने, और पूछा है गाँव की गलियों ने
के घर कब आओगे, के घर कब आओगे
लिखो कब आओगे
के तुम बिन गाँव सूना सूना है
संदेशे आते हैं
हमें तड़पाते हैं
तो चिट्ठी आती है
वो पूछे जाती है
के घर कब आओगे
के घर कब आओगे
लिखो कब आओगे
के तुम बिन ये घर सूना सूना है
ओ ओ ओ..
प्रविष्ठ -कभी एक ममता की, प्यार की गंगा की
जो चिट्ठी आती है, साथ वो लाती है
मेरे दिन बचपन के, खेल वो आंगन के
वो साया आंचल का, वो टीका काजल का
वो लोरी रातों में, वो नरमी हाथों में
वो चाहत आँखों में, वो चिंता बातों में
बिगड़ना ऊपर से, मोहब्बत अंदर से, करे वो देवी माँ
यही हर खत में पूछे मेरी माँ
के घर कब आओगे, के घर कब आओगे
लिखो कब आओगे
के तुम बिन आँगन सूना सूना है
संदेशे आते हैं
हमें तड़पाते हैं
स्नेहल भी सबके साथ हंसते हुए गाने लगती है।
सुमेध चुप चाप बैठा होता हैं।
स्नेहल - आप नही गाएंगे? अपने परिवार वालो के लिए?
सुमेध - नही मुझे उनकी याद नही आती
स्नेहल - आप भी अजीब है,,अपने परिवार वालो के साथ कौन ऐसे करता है?
सुमेध - तुम कौन होती हो डिसाइड करने वाली की मै परिवार को याद करू या नही? होती कौन हो मेरी? रिसर्चर हो बस अपना काम करो , आज साथ में है कल को अलग होंगे। बस अपना काम करो
और उठकर चला जाता है। स्नेहल दुखी हो जाती है।

आलोक - प्लीज आप बुरा मत मानना.... सुमेध बहुत अच्छा है बस उसके परिवार वालो के बारे में कोई बात करे तो दुखी हो जाता है।

स्नेहल - हा...अब मुझे चलना चाहिए।

और चली जाती है। प्रविष्ठ ,आलोक और नवनीत कमरे में आते है। जहां सुमेध आंखे बंद किए हुए बैठा होता है।
आलोक - सुमेध ..... यार उसे कुछ पता नहीं था तेरे बारे में। क्या गलती बेचारी की

नवनीत - अब कुछ बोल दे भाई,,,, नही तो क्या चाहता है प्रविष्ठ बोले और कान फट जाए हमारे?

सुमेध - मै ठीक हु

प्रविष्ठ आलोक और नवनीत सुमेध को गले लगाकर - जब दोस्त बोले मैं ठीक हु .....मतलब वो ठीक नही है ।

सुमेध उन्हे कस के गले लगा लेता है। फिर सभी सो जाते है। इधर स्नेहल अपने कमरे की बालकनी में बैठी सुमेध के बारे में सोच रही होती है।

स्नेहल - कोई इतना खडूस कैसे हो सकता है? मै कुछ गलत बोली क्या? उनका नाम सुमेध नही कैप्टन अकडू होना चाहिए

और जाकर सो जाती है। 
अगली सुबह रोज की तरह आर्मी कैंप में सभी अपने रूटीन में लग जाते है। स्नेहल अपने काम का दरवाजा खोलती है तो जमीन पर फूलो का बुके रखा होता है और उसमे एक कार्ड पर कीप स्माइलिंग लिखा होता है।
स्नेहल इधर उधर देखते हुए बाहर आती है।

स्नेहल - कौन रखा होगा? 

तभी उसे आलोक दिखता है जो जा रहा होता है।
स्नेहल मुस्कुराते हुए - ओह कैप्टन आलोक थैंक यू । 

इधर नहा धोकर प्रविष्ठ बैंक के बाहर आकर छुप कर किसी को खोजने लगता है।

तभी पीछे से - मुद्रा नही आयेगी आज....

प्रविष्ठ मुड़ते हुए - लेकिन क्यू?

मुड़ता है तो स्नेहल खड़ी रहती है। 

प्रविष्ठ - अरे स्नेहल जी आप ?

स्नेहल - जी मै। लेकिन आप यू रोज रोज बैंक के चक्कर क्यू लगाते है? 

प्रविष्ठ - बैंक आर्मी कैंप के एरिया में आता है। बाय चांस कोई बम रख के चला गया तो... मुझसे अच्छा बॉम डिफ्यूजर कहा मिलेगा

स्नेहल - बहाने मत बनाइए कैप्टन.....चुप चाप सारी बात बताइए । आपको बैंक पसंद है या बैंक वाली?

प्रविष्ठ इधर उधर देखते हुए - मै चलता हु,,,,

स्नेहल - मुद्रा से उसके घर जाऊंगी शाम मे मिलने। आप फ्री हो तो चलेंगे क्या साथ में?।

प्रविष्ठ - देखता हु ... शा..य..द ही फ्री रहु

स्नेहल - ओके,, बेचारी बीमार हो गई है

प्रविष्ठ - क्या? कैसे? कब? 

स्नेहल - अच्छा मै चलती हू,,आपको बहुत काम है

प्रविष्ट स्नेहल के पीछे घूमते हुए - अरे नही न। रात में स्पेशल ड्यूटी होगी हम लोगो की,,,सुबह फ्री हु तभी तो बैंक आया था .....

स्नेहल - नॉर्मल बुखार है। तो मै मिलने जा रही। अकेले जाऊंगी 

प्रविष्ठ - आपकी जिम्मेदारी आर्मी चीफ हम लोगो को दिए है। आप अकेले नहीं जाएंगी। 

स्नेहल मुस्कुराते हुए - ठीक है तब शाम मे मिलते है।

इधर सुमेध बैठा लेप टॉप पर कुछ कर रहा होता है।
नवनीत और आलोक उसे देखते हुए - भाई रात में ड्यूटी है,,सुबह में तो आराम करो। 

तभी प्रविष्ठ नाचते हुए आता है - ओह मै तो साहब बन गया,,,साहब बन के कैसा तन गया

सुमेध - इसे क्या हुआ?

नवनीत आलोक - क्या पता?

प्रविष्ठ आलमारी से सफेद शर्ट निकाल प्रेस करने लगता है। 
नवनीत - भाई इतनी तैयारी? रिश्ता आने वाला है क्या?

प्रविष्ट - आया नही है पर आ जाएगा....

तीनो - मतलब

प्रविष्ठ - कुछ भी तो नही ....देखो शाम में बहुत जरूरी मीटिंग के लिए जा रहा हु,,दो घंटे में आ जाऊंगा

आलोक - मीटिंग? ब्रिगेडियर सर आए है क्या? 

नवनीत - अरे उनका नाम काहे ले रहा ? तोप है तोप ,,,एक तो मुझसे क्या दुश्मनी है मेरे ऊपर ही फट जाते है?

प्रविष्ठ - कांड भी ऐसे होते है तेरे,,, सर दर्द की गोली मांगे तुझे तो तू बंदूक की गोली दे आया। और मीटिंग कोई सिरियस नही है बस आस पास के शहर के सुरक्षा और निगरानी के लिए

सुमेध - हा तो हम भी चलते है।

प्रविष्ठ - अरे तू तो बिलकुल नहीं आएगा.....

सुमेध - मतलब? 

प्रविष्ठ - कुछ नही .....कुछ नही । अरे आराम करो दोस्तो रात में भयंकर वाली ड्यूटी है कि नही? 

और बाहर भाग जाता है ।
आलोक - ये अजीब बिहेब नही कर रहा?

नवनीत - पक्का कुछ छिपा रहा है? बहुत सालो से जानता हु इसे । आज शाम में पीछा करते है इसका कि कहा जाने की तैयारी हो रही!

शाम मे प्रविष्ठ अच्छे से तैयार होकर स्नेहल के क्वोटर के पास जाता है जहां स्नेहल उसका वेट कर रही होती है।
तीनो चुपके से उनका पीछा करते है।
सुमेध - ये इस चश्मिश के साथ किस मीटिंग पर जा रहा?

नवनीत - कही..... डेट पर तो नही जा रहे दोनो?

सुमेध - क्या??

आलोक - तू क्यू जल रहा?

सुमेध - मै क्यू जलु? लेकिन मैं नही चाहता मेरे दोस्त उस चश्मिश से शादी करे!.

तीनो पीछा करते हुए मुद्रा के घर पहुंचते है 
आलोक - ये तो उसी लड़की का घर है जहा कुछ दिन पहले हम मिशन पर आए थे,,,और प्रविष्ठ उस लड़की को बचाया जो आर्मी कैंप के बैंक में काम करती है 
तभी सुमेध जोर से छिकता है और स्नेहल और प्रविष्ठ उनकी और मुड़ते है ।
प्रविष्ठ - तुम लोग??

नवनीत - हा हम.... तो यही है मीटिंग ?

प्रविष्ठ - भाईयो अभी मत पिटना.... मुद्रा जी का तबीयत खराब है तो स्नेहल जी अपने दोस्त से मिलने अकेले आती क्या? मै तो फर्ज निभा रहा था

तीनो - ओह हो फर्ज???

स्नेहल - आप लोग आ गए है तो चलिए न.....

सुमेध - नही ऐसे किसी के घर में नही जाना चाहिए

स्नेहल - मेरी फ्रेंड का घर मतलब आप लोगो की फ्रेंड का घर,,,,आलोक जी आप समझाइए 

आलोक - चल न यार
सभी स्नेहल और प्रविष्ठ मुद्रा के घर में जाते है ।
अंदर मुद्रा की मम्मी स्नेहल और बाकियों को देख खुश हो जाती है।

मुद्रा की मम्मी - अरे आप लोग? मोस्ट वेलकम सर

प्रविष्ठ - आंटी जी बेटा कहिए,,आपके बेटे जैसे है सब

नवनीत बडबडा कर - हा और ये दामाद बनने की फिरात मे है आंटी जी 

मुद्रा की मा - क्या?

प्रविष्ठ - अरे आंटी जी इसे आदत है बड़बड़ करने की । 

मुद्रा की मां - बैठो बच्चो.....
तभी मुद्रा दौड़ते हुए आती है और स्नेहल के गले लग जाती है।
स्नेहल - तबीयत कैसी है?

मुद्रा - अरे मै ठीक हु.... और आप लोग? अच्छा लगा आप आए

प्रविष्ठ - हमे भी अच्छा लगा आपसे मिल

नवनीत आलोक और सुमेध - हा प्रविष्ट को कुछ ज्यादा ही अच्छा लगा आपसे मिल

मुद्रा प्रविष्ठ की और नजरे करती है।
प्रविष्ट - मेरे भाई बड़ा मजाक करते है मुद्रा जी। आप बताइए

मुद्रा - तो आप यहां पैसे निकलवाने नही न आए है? देखिए वो काम बैंक मे ही होगा
प्रविष्ठ - ह...हा न ना
सभी हंसने लगते है। प्रविष्ठ दूसरी ओर देखने लगता है।
मुद्रा से थोड़ी देर बात कर सभी आर्मी कैंप आते है।
स्नेहल - जी मै चलती हू । थैंक्स आप लोग मेरे साथ आए
और स्नेहल जैसे ही जाती है तीनो मिलकर प्रविष्ठ को मारने लगते है।
प्रविष्ठ - मार क्यू रहे हो? 
तीनो मारते हुए - मुद्रा जी है जरूरी मीटिंग 
प्रविष्ठ - भाई मै तुम लोगो को बताने वाला ही था

नवनीत - कब बताता जब शादी का कार्ड छप जाता ??

प्रविष्ठ - बस कर...सब देख रहे है ऐसे सरे आम कैप्टन की पिताई

सुमेध - तू इसी लायक है।

तभी नवनीत का फोन बजता है। वो कॉल उसकी मां का होता है।

नवनीत फोन पर बात करने लगता है। बात करते करते अचानक से उसके चेहरे के भाव बदल जाते है और फोन हाथ से गिर जाता है
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कहानी को आगे जानने के लिए बने रहिए मेरे साथ
कभी अलविदा ना कहना............

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12 Comments

Sachin dev

15-Apr-2022 03:04 PM

Nic part 👌

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देविका रॉय

28-Jan-2022 11:18 PM

N ab to kahani se judne ka MN kar rha h. Mera, itna achcha likhi ho aap..

Reply

Preeta

28-Jan-2022 11:05 PM

Very well written Ma'am

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