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धन्य-धन्य हे! श्रेष्ठ मानव



हो धरती के सर्वश्रेष्ठ तुम प्राणी मानव
फिर ऐसी क्या इच्छा जो बन बैठे दानव।।
बुद्धि, ज्ञान, कौशल में तुम उत्तम, सर्वोत्तम
प्रभु धर तेरा रूप बने मर्यादा-पुरुषोत्तम।।

लेकिन प्रभु के नियम-विधि को तुमने तोड़ा
जन्नत सी धरती पर बम का गोला छोड़ा।।
नदिया, पर्वत, झरने, जंगल मधुर, मनोरम
इनके अंचल में भर डाला मौत का मातम।।

चारो ओर जल रही नफरत की यूँ अग्नि
कल पीले हुए हाथ आज विधवा हुई भगिनी।।
दो गज भू की खातिर बने हो खून के प्यासे
एक-दूजे को काटो लेकर हाथ गंड़ासे।।

भूखा माँग रहा रोटी तुम मार भगाते
मंदिर में तुम दूध, मिठाई, फूल चढ़ाते।।
सड़कों पर लाचार यूँ कितने लोग तड़पते
पावन-प्रेम की शुद्ध व्यथा कूड़े में पाते।।

रक्षक बन बैठा भक्षक यूँ हुई गवाही
न्याय के पन्नों पर अब भ्रष्टाचार की स्याही।।
जेल में जाना नेताओं की पहली योग्यता
दुराचार कर बन जाते तुम हो भाग्य-विधाता।।

कहते हो लक्ष्मी बेटी, पत्नी और सुता को
फिर कैसे करते हो नंगा -?? उनके बदन को।।
जिंदा जलाओ, रेप करो, तेजाब भी डालो
दे मूंछों पर ताव खुद को मर्द बना लो।।

मात-पिता को तुम उनके घर से निकालो
पाप कटे यही सोच गंगा में दिए जला लो ।।
सारे प्राणी त्रस्त तुझी से हुए हैं मानव
दौलत की खातिर हुआ तू मयदानव।।

गिरगिट को आए शर्म तू ऐसे रूप बदलता
सातों चूहे खाकर बिल्ला माला जपता।।
धन्य, धन्य हे! मानव, तेरी धन्य मानवता
जिस थाली में खाता उसी में छेद भी करता।।
हाँ, जिस थाली में खाता उसी में छेद भी करता।।


----विचार एवं शब्द-सृजन----
----By---
----Shashank मणि Yadava’सनम’----
----स्वलिखित एवं मौलिक रचना----

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11 Comments

Suryansh

06-Jan-2022 07:14 AM

Outstanding speechless

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Swati chourasia

17-Dec-2021 11:59 PM

Very beautiful 👌

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जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

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Abhinav ji

17-Dec-2021 11:37 PM

Bahut hi sundar likhe hain

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जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

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