Ananya Pandey

लाइब्रेरी में जोड़ें

बड़े अच्छे लगते हैं -10-Dec-2021

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"बड़े अच्छे लगते है"

ये बारिश,ये मौसम ,पेड़ की छाँव 

और..?

और तुम!

वो मिलना...
वो घड़ी वो गीत और तुम
तुम्हारे बाद भी
जैसे ठहर से गये हो...
यहीं कहीं इसी जगह इसी पेड़ के नीचे
थोड़े-थोड़े धुंधले
दरके हुए शीशे की तरह

जानती हो ---
हर संबंध बंधा होता है 
किसी सूत्र के दोनों सिरे से
एक सिरा तुम खोल गये
दूसरा अब तक बंधा हुआ उसी बंधन में
पिंजरे में कैद बेचैनी 
अक़्सर फड़फड़ाती है आसमाँ में
उमड़ते घुमड़ते बादल देख
बारिश की बूंदे भिगो जाती तन-मन

फिर वही मौसम वही बारिश 
लेकिन पसरा होता है सिर्फ़ सन्नाटा
अब कोई गीत नहीं गुनगुनाता किसी की 
खिलखिलाहट नहीं गूँजती
लेकिन महसूस होता है जैसे तुम 
आज भी हाथों को घुटने से बांधे बैठी हो 
मेरी पीठ की ओर पेड़ से टेक लगाये...

बताओ....
 तुम मुझको महसूस करती हो न
 मन की गिरह का वो एक सिरा 
 जो अब तक बंधा हुआ है  
 वहीं कहीं एक हुक सी उठती है न
 जब इस ओर से जाती हुई बारिश की बूंदे
 उस ओर तुम्हें छू कर गुज़रती है 
 कहो न --न चाहते हुए भी तुम्हारे होंठ 
 फिर वही गीत गुनगुनाते है ना...

   "बड़े अच्छे लगते है"

   ये बारिश,ये मौसम, पेड़ की छाँव

   "और"
  
   और तुम..!!
.....................    
प्रिया पाण्डेय रोशनी

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9 Comments

Shrishti pandey

10-Dec-2021 11:40 PM

Bahut achche

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Barsha🖤👑

10-Dec-2021 10:13 PM

Nice

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Ananya Pandey

10-Dec-2021 08:05 PM

आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद

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