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यकीन

यक़ीन : हजरत राबिया अल-बसरी
एक बार दो व्यक्ति राबिया से मिलने आये । बातचीत के दौरान राबिया ने खाने को पूछा तो वो भूखे थे इसलिए मना नहीं किया । राबिया के पास दो रोटियाँ थी । वह दोनों ही रोटियाँ उन दोनों को खिलाने वाली थी लेकिन तभी एक भिखारी मांगता हुआ आ पहुँचा । राबिया ने वह दोनों रोटियाँ उस भिखारी को दे दी । अब उन लोगों के खाने के लिए कुछ भी नहीं बचा ।

थोड़ी ही देर बाद राबिया की एक सेविका उनके लिए रोटियाँ लेकर आई । राबिया ने रोटियों को गिना तो 18 रोटियाँ थी । उसने वापस कर दिया । सेविका ने बहुत मनाया लेकिन राबिया नहीं मानी । कुछ देर बाद वो सेविका फिर आई, इस बार उसके पास 20 रोटियाँ थी । राबिया ने कुबूल कर ली और उन दोनों व्यक्तियों के सामने रख दी ।

यह सब देखकर वह दोनों अचंभित थे । उनमें से एक व्यक्ति गंभीरता से पूछा – “ यह सब क्या है ? 18 रोटियाँ हमारे लिए बहुत ज्यादा थी फिर भी आपने 20 होने पर ही क्यों कुबूल की ।” तो राबिया बोली – “मेरे पास दो ही रोटियाँ थी जो मैं आपको देना चाहती थी लेकिन तभी भिखारी आ गया । इसलिए मैंने उसे दे दी । मेरा खुदा से वादा है, कि वो मुझे एक के बदले दस देगा, तो फिर मैं कम क्यों लूँ । मैंने दो रोटियाँ दी तो खुदा के वादे के अनुसार मुझे बीस रोटियाँ मिलना चाहिए । बस इसीलिए मैंने 18 रोटियों को कुबूल नहीं किया ।  

धन्यवाद


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1 Comments

Sana Khan

03-Dec-2021 05:29 PM

Good

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