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बचपन

जब भी याद आती है

मेरे भोले बचपन की
कभी दिल सहम जाता है , तो कभी खुश हो जाता है
क्या लिखूँ मैं अपने बचपन को
यादें जो कभी चहरे पर मुस्कान
 तो कभी आँखों में नमी लाया करती है ।

वो भी क्या दिन थे जब ना ख़ुशी की वजह थी 
ना रोने की वजह था 
पाठशाला के भीड़ में भी 
अनजानों को पहली बार दोस्त बनाया था ।

सफर उस दौर का बहुत सुहाना था
दोस्ती का मतलब भी पहली बार समझ आया था
जब जरूरत थी किसी की तब दोस्तों ने ही हाथ थामा था
किसी एक को मार पड़ी तो सबने मिलके उसको संभाला था

फिर न जाने वो दिन क्यों आया,
एक दोस्त के घर ना लौटने के अफ़सोस से  
उसका एक आखरी संदेश था ।

बेवजह किसी गाड़ी ने कुचला उसका शरीर था
फिर लौट नहीं पायी अपने घर वो
उसने वही दम तोड़ दिया था
बीती बातों को याद करते करते गुज़ार दिया 
उसके साथ हमने जो जीया
 वो हमारा आखिरी बचपन था ।।

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