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देवमूर्ती

में स्थापित सुधा की पावन प्रांजल देवमूर्ति को उसने कठोरता से उठाकर बाहर फेंक दिया था। मन्दिर की मूर्तिमयी पवित्रता, बिनती को अपमानित कर दिया था और मन्दिर के पूजा- उपकरणों को अपने जीवन के आदर्शों और मानदंडों को उसने चूर-चूर कर डाला था, और बुतशिकन विजेता की तरह क्रूरता से हँसते हुए मन्दिर के भग्नावशेषों पर कदम रखकर चल रहा था। उसका मन टूटा हुआ खँडहर था जिसके उजाड़, बेछत कमरों में चमगादड़ बसेरा करते हैं और जिसके ध्वंसावशेषों पर गिरगिट पहरा देते हैं काश कि कोई उन खंडहरों की ईटें उलटकर देखता तो हर पत्थर के नीचे पूजा-मन्त्र सिसकते हुए मिलते. हर धूल की पर्त में घंटियों की बेहोश ध्वनियों मिलती, हर कदम पर मुरझाये हुए पूजा के फूल मिलते और हर शाम सवेरे भग्न देवमूर्ति का करुण रुदन दीवारों पर सिर पटकता हुआ मिलता... लेकिन चन्दर ऐसा वैसा दुश्मन नहीं था। उसने मन्दिर को चूर-चूर कर उस पर अपने गर्व का पहरा लगा दिया था कि कभी भी कोई उस पर खंडहर के अवशेष कुरेदकर पुराने विश्वास, पुरानी अनुभूतियाँ, पुरानी पूजाएँ फिर से न जगा दें। बुतशिकन तो मन्दिर तोड़ने के बाद सारा शहर जला देता है, ताकि शहर वाले फिर उस मन्दिर को न बना पाएँ ऐसा था चन्दर अपने मन को सुनसान कर लेने के बाद उसने अपनी जिंदगी अपना रहन-सहन, अपना मकान और अपना वातावरण भी सुनसान कर लिया था। अगहन आ गया था, लेकिन उसके चारों ओर जेठ की दुपहरी से भी भयानक सन्नाटा था।

बिनती जब से गयी उसने कोई खत नहीं भेजा था। सुधा के भी पत्र बन्द हो चुके थे। पम्मी के दो खत आये। पम्मी आजकल दिल्ली घूम रही थी, लेकिन चन्दर ने पम्मी को कोई जवाब नहीं दिया। अकेला अकेला बिल्कुल अकेला.. सहारा मरुस्थल की नीरस भयावनी शान्ति और वह भी जब तक कि काँपता हुआ लाल सूरज बालू के क्षितिज पर अपनी आखिरी साँस तोड़ रहा हो और बालू के टीलों की अधमरी छायाएँ लहरदार बालू पर धीरे-धीरे रेंग रही हो। बिनती के ब्याह को पन्द्रह दिन रह गये थे कि सुधा का एक पत्र आया.... "मेरे देवता, मेरे नयन, मेरे पंथ, मेरे प्रकाश!

आज कितने दिनों बाद तुम्हें खत लिखने का मौका मिल रहा हैं सोचा था, बिनती के ब्याह के महीने भर पहले गाँव आ जाऊँगी तो एक दिन के लिए तुम्हें आकर देख जाऊँगी। लेकिन इरादे इरादे हैं और जिंदगी जिंदगी। अब सुधा अपने जेठ और सास के लड़के की गुलाम है। व्याह के दूसरे दिन ही चला जाना होगा। तुम्हें यहाँ बुला लेती, लेकिन यहाँ बन्धन और परदा तो ससुराल से भी बदतर है।

मैंने बिनती से तुम्हारे बारे में बहुत पूछा। वह कुछ नहीं बतायी। पापा से इतना

मालूम हुआ कि तुम्हारी थीसिस छपने गयी है। कन्वोकेशन नजदीक है तुम्हें याद है, वायदा

था कि तुम्हारा गाउन पहनकर मैं फोटो खिंचवाऊँगी। वह दिन याद करती हूँ तो जाने कैसा

होने लगता है। एक कन्वोकेशन की फोटो खिंचवाकर जरूर भेजना। क्या तुमने बिनती को कोई दुःख दिया था? बिनती हरदम तुम्हारी बात पर आँसू भर लाती है। मैंने तुम्हारे भरोसे बिनती को वहाँ छोड़ा था। मैं उससे दूर माँ का सुख उसे मिला नहीं. पिता मर गये। क्या तुम उसे इतना भी प्यार नहीं दे सकते? मैंने तुम्हें बार-बार सहेज दिया था। मेरी तन्दुरुस्ती अब कुछ-कुछ ठीक है, लेकिन जाने कैसी है। कभी-कभी सिर में दर्द होने लगता है। जी मिचलाने लगता है। आजकल वह बहुत ध्यान रखते हैं। लेकिन वे मुझको समझ नहीं पाये। सारे सुख और आजादी के बीच में कितनी असन्तुष्ट हूँ। मैं कितनी परेशान हूँ। लगता है हजारों तूफान हमेशा नसों में घहराया करते हैं।

चन्दर, एक बात कहूँ अगर बुरा न मानो तो आज शादी के छह महीने बाद भी मैं यही कहूँगी चन्दर कि तुमने अच्छा नहीं किया। मेरी आत्मा सिर्फ तुम्हारे लिए बनी थी, उसके पेशे में वे तत्व हैं जो तुम्हारी ही पूजा के लिए थे। तुमने मुझे दूर फेंक दिया, लेकिन इस दूरी के अँधेरे में भी जन्म-जन्मान्तर तक भटकती हुई सिर्फ तुम्हीं को ट्रेंगी इतना याद रखना और इस बार अगर तुम मिल गये तो जिंदगी की कोई ताकत, कोई आदर्श, कोई सिद्धान्त, कोई प्रवंचना मुझे तुमसे अलग नहीं कर सकेगी। लेकिन मालूम नहीं पुनर्जन्म सच है या झूठ! अगर झूठ है तो सोचो चन्दर कि इस अनादिकाल के प्रवाह में सिर्फ एक बार.. सिर्फ एक बार मैंने अपनी आत्मा का सत्य ढूँढ पाया था और अब अनन्तकाल के लिए उसे खो दिया। अगर पुनर्जन्म नहीं है तो बताओ मेरे देवता क्या होगा? करोड़ों सृष्टियाँ होंगी, प्रलय होंगे और मैं अतृप्त चिनगारी की तरह असीम आकाश में तड़पती हुई अँधेरे की हर परत से टकराती रहूँगी, न जाने कब तक के लिए ज्यों-ज्यों दूरी बढ़ती जा रही है, त्यों-त्यों पूजा की प्यास बढ़ती जा

रही है। काश मैं सितारों के फूल और सूरज की आरती से तुम्हारी पूजा कर पाती। लेकिन जानते हो, मुझे क्या करना पड़ रहा है मेरे छोटे भतीजे नीलू ने पहाड़ी चूहे पाले हैं। उनके पिंजड़े के अन्दर एक पहिया लगा है और ऊपर घंटियाँ लगी हैं। अगर कोई अभागा चूहा उस चक्र में उलझ जाता है तो ज्यों-ज्यों छूटने के लिए वह पैर चलाता है त्यों-त्यों चक्र घूमने लगता है, घंटियाँ बजने लगती हैं। नीलू बहुत खुश होता है लेकिन चूहा थककर बेदम होकर नीचे गिर पड़ता है। कुछ ऐसे ही चक्र में फँस गयी हूँ, चन्दर! सन्तोष सिर्फ इतना है कि घंटियाँ बजती हैं तो शायद तुम उन्हें पूजा के मन्दिर की घंटियों समझते होगे। लेकिन खैरा सिर्फ इतनी प्रार्थना है चन्दरा कि अब थककर जल्दी ही गिर जाऊँ! मेरे भाग्य ! खत का जवाब जल्दी ही देना। पम्मी अभी आयी या नहीं?

तुम्हारी, जन्म-जन्म की प्यासी सुधा । " चन्दर ने खत पढ़ा और फौरन लिखा-

"प्रिय सुधा तुम्हारी पत्र बहुत दिनों के बाद मिला। तुम्हारी भाषा वहाँ जाकर बहुत निखर गयी है। मैं तो समझता हूँ कि अगर खत कहीं छुपा दिया जाये तो लोग इसे किसी रोमांटिक उपन्यास का अंश समझे, क्योंकि उपन्यासों के ही पात्र ऐसे खत लिखते हैं. वास्तविक जीवन के नहीं।

खैर मैं अच्छा हूँ। हरेक आदमी जिंदगी से समझौता कर लेता है किन्तु मैंने जिंदगी से समर्पण कराकर उसके हथियार रख लिये हैं। अब किले के बाहर से आनेवाली आवाजें अच्छी नहीं लगती न खतों के पाने की उत्सुकता, न जवाब लिखने का आग्रह | अगर मुझे अकेला छोड़ दो तो बहुत अच्छा होगा। मैं विनती करता हूँ. मुझे खत मत लिखना आज विनती करता हूँ क्योंकि आज्ञा देने का अब साहस भी नहीं. अधिकार भी नहीं, व्यक्तित्व भी नहीं खत तुम्हारा तुम्हें भेज रहा हूँ। कभी जिंदगी में कोई जरूरत आ पड़े तो जरूर याद करना बस इसके अलावा

कुछ नहीं।

अपने में सन्तुष्ट चन्द्रकुमार कपूर!" उसके बाद फिर वही सुनसान जिंदगी का ढर्रा खँडहर के सन्नाटे में भूलकर आयी हुई बाँसुरी की आवाज की तरह सुधा का पत्र सुधा का ध्यान आया और चला गया खँडहर का सन्नाटा, सन्नाटे के उल्लू गिरगिट और पत्थर काँपे और फिर मुस्तैदी से अपनी जगह पर जम गये और उसके बाद फिर वहीं उदास सन्नाटा, टूटता हुआ-सा अकेलापन और मूर्च्छित दोपहरी के फूल सा चन्दर ...

नवम्बर का एक खुशनुमा विहान सोने के काँपते तारे सुबह की ठण्डी हवाओं में उलझे हुए थे। आकाश एक छोटे बच्चे के नीलम नयनों की तरह भोला और स्वच्छ लग रहा था। क्यारियाँ शरद के फूलों से भर गयी थीं और एक नयी ताजगी मौसम और मन में पुलक उठी थी चन्दर अपना पुराना कत्थई स्वेटर और पीले रंग के पश्मीने का लम्बा कोट पहने लॉन पर टहल रहा था। छोटे-छोटे पिल्ले दूब पर किलोल कर रहे थे। सहसा एक कार आकर रुकी और पम्मी उसमें से कूद पड़ी और क्वॉरी हिरणी की तरह दौडकर चन्दर के पास पहुँच गयी- हलो माई ब्वॉय, में आ गयी!""

चन्दर कुछ नहीं बोला, "आओ, ड्राइंगरूम में बैठो!" उसने उसी मुर्दा-सी आवाज में कहा उसे

पम्मी के आने की कोई प्रसन्नता नहीं थी। पम्मी उसके उदास चेहरे को देखती रही, फिर उसके कन्धे

पर हाथ रखकर बोली, 'क्यों कपूर कुछ बीमार हो क्या?"

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