लाइब्रेरी में जोड़ें

गुनाहों का देवता

उदासी है।" सुधा ने गहरी साँस ली. "आज जाने क्यों बदन टूट रहा है।" बैठे ही बैठे बदन उमेठते हुए कहा।

दूसरे दिन चन्दर गया तो सुधा को बुखार आ गया था। अंग-अंग जैसे टूट रहा हो और आँखों में ऐसी तीखी जलन कि मानो किसी ने अंगारे भर दिये हों रात भर वह बेचैन रही. आधी पागल-सी रही। उसने तकिया, चादर, पानी का गिलास सभी उठाकर फेंक दिया, बिनती को कभी बुलाकर पास बिठा लेती, कभी उसे दूर ढकेल देती। डॉक्टर साहब परेशान, रात भर सुधा के पास बैठे, कभी उसका माथा, कभी उसके तलवों में बर्फ मलते रहे। डॉक्टर घोष ने बताया यह कल की गरमी का असर है। बिनती ने एक बार पूछा, "चन्दर को बुलवा दें?" तो सुधा ने कहा, 'नहीं, मैं मर जाऊँ तो मेरे जीते जी नहीं ।" बिनती ने ड्राइवर से कहा, "चन्दर को बुला लाओ।" तो सुधा ने बिगड़कर कहा, "क्यों तुम सब लोग मेरी जान लेने पर तुले हो?" और उसके बाद कमजोरी से हॉफने लगी। ड्राइवर चन्दर को बुलाने नहीं गया।

जब चन्दर पहुँचा तो डॉक्टर साहब रात-भर के जागरण के बाद उठकर नहाने धोने जा रहे थे। "पता नहीं सुधा को क्या हो गया कल से! इस वक्त तो कुछ शान्त है पर रात भर बुखार और बेहद बेचैनी रही है और एक ही दिन में इतनी चिड़चिड़ी हो गयी है कि बस... डॉक्टर साहब ने चन्दर को देखते ही कहा।

चन्दर जब कमरे में पहुँचा तो देखा कि सुधा आँख बन्द किये हुए लेटी है और बिनती उसके सिर पर आइस बैग रखे हुए है। सुधा का चेहरा पीला पड़ गया है और मुँह पर जाने कितनी ही रेखाओं की उलझन है, आँखें बन्द हैं और पलकों के नीचे से अंगारों की आँच छनकर आ रही है।

चन्दर की आहट पाते ही सुधा ने आँखें खोलीं। अजब-सी आग्नेय निगाहों से चन्दर की ओर देखा और बिनती से बोली, "बिनती इनसे कह दो जाएँ यहाँ से।" बिनती स्तब्ध, चन्दर नहीं समझा, पास आकर बैठ गया, बोला, "सुधा, क्यों पड़ गयी न, मैंने कहा था कि गैरेज में मोटर साफ मत करो। परसों इतना रोयी सिर पटका. कल धूप खायी। आज पड़

रही! कैसी तबीयत है?

सुधा उधर खिसक गयी और अपने कपड़े समेट लिये, जैसे चन्दर की छाँह से भी बचना

चाहती है और तेज, कड़वी और हाँफती हुई आवाज में बोली, "बिनती, इनसे कह दो जाएँ यहाँ से।"

चन्दर चुप हो गया और एकटक सुधा की ओर देखने लगा और सुधा की बात ने जैसे चन्दर

का मन मरोड़ दिया। कितनी गैरियत से बात कर रही है सुधा! सुधा, जो उसके अपने व्यक्तित्व से

ज्यादा अपनी थी, आज किस स्वर में बोल रही है! "सुधी, क्या हुआ तुम्हें" चन्दर ने बहुत आहत हो

बहुत दुलार-भरी आवाज में पूछा। मैं कहती हूँ जाओगे नहीं तुमः फुफकारकर सुधा बोली, "कौन हो तुम मेरी बीमारी पर सहानुभूति प्रकट करने वाले मेरी कुशल पूछने वाले मैं बीमार हूँ मैं मर रही हूँ. तुमसे मतलब ! तुम कौन हो? मेरे भाई हो! मेरे पिता हो। कल अपने मित्र के यहाँ मेरा अपमान कराने ले गये थे।" सुधा हॉफने लगी।

"अपमाना किसने तुम्हारा अपमान किया, सुधा पम्मी ने तो कुछ भी नहीं कहा? तुम पागल तो नहीं हो गयी?" चन्दर ने सुधा के पैरों पर हाथ रखते हुए कहा ।। "पागल हो नहीं गयी तो हो जाऊँगी।" उसने पैर हटा लिये, "तुम पम्मी, गेसू, पापा डॉक्टर सब लोग मिलकर मुझे पागल कर दोगे। पापा कहते हैं ब्याह करो, पम्मी कहती है मत करो, गेसू कहती है तुम प्यार करती हो और तुम तुम कुछ भी नहीं कहते। तुम मुझे इस नरक में बरसों से सुलगते देख रहे हो और बजाय इसके कि तुम कुछ कहो तुमने मुझे खुद इस भट्टी में ढकेल दिया!.. चन्दर, मैं

   0
0 Comments